Wednesday Vrat Katha: बुधवार का दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए बहुत खास माना जाता है। इस दिन जो कोई भगवान गणेश की विधिवत पूजा करता है और व्रत रखता है उस पर गणेश जी की विशेष कृपा होती है। वहीं व्रत में पूजन के बाद इस कथा को पढ़ना भी जरूरी माना गया है…
भगवान गणेश को विघ्नहरण और मंगलकरण कहकर संबोधित किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में मान्यता है कि अगर बुधवार के दिन यदि गणेश जी की विधिवत पूजा की जाए और व्रत रखा जाए तो जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही व्यक्ति को सुख-समृद्धि, बुद्धि, ज्ञान, व्यापार सुख और शुभता का आशीर्वाद मिलता है। वहीं शास्त्रानुसार माना जाता है कि जो कोई बुधवार व्रत करता है उसे गणेश जी की पूजा के बाद यह बुधवार व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए…
बुधवार व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक साहूकार की नई-नई शादी हुई थी। एक बार साहूकार की पत्नी अपने मायके गई हुई थी। नए-नए विवाह की उमंग और अकेलापन महसूस होने के कारण साहूकार उत्साहित होकर अपनी पत्नी को लेने के लिए अपने ससुराल जा पंहुचा। वहां जाने पर उसकी बड़ी खातिरदारी की गयी। लेकिन एक मुश्किल यह थी कि साहूकार अपने ससुराल पत्नी से ठीक से बात भी नहीं कर पा रहा था। तब अगले ही दिन साहूकार ने ससुराल में सबसे यह बोल दिया कि आप लोग विदाई की तैयारी कर लीजिये हमें अब जाना होगा। उस दिन बुधवार था। साहूकार के सास-ससुर ने उसे मनाने का बड़ा प्रयत्न किया कि आज बुधवार का दिन है बेटा। इस दिन बेटी की विदाई नहीं की जाती है। वहीं किसी शुभ काम के लिए जाना भी बुधवार को शुभ नहीं माना जाता।
परंतु साहूकार ने किसी की एक न सुनी और कहा कि, ‘मैं इन सब बातों में यकीन नहीं करता। आप लोग हमें विदा कर दीजिये। साहूकार की जिद के आगे उसके सास-ससुर की नहीं चली। तब मन मारकर उन्हें बेटी और दामाद को विदा करने की तैयारी करनी पड़ी। अब विदा होकर जब साहूकार अपनी पत्नी के साथ अपने घर जा रहा था तो रास्ते में उसकी पत्नी को प्यास लगी। साहूकार जब पत्नी के लिए पानी लेकर लौटता है तो इस बात से बड़ा हैरान हो जाता है कि उसकी ही शक्ल का कोई दूसरा आदमी उसकी पत्नी के साथ गाड़ी में बैठ हुआ था। इसके बाद साहूकार की पत्नी भी अपने पति जैसे दो-दो लोगों को देखकर हैरान हो गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसका असली पति कौन सा है।
तब जैसे ही साहूकार ने गाड़ी में अपनी पत्नी के पास बैठे व्यक्ति से ये पूछा कि, ‘तुम कौन हो?’ तो उस हमशक्ल ने उत्तर दिया कि, ‘मैं तो फलां नगर का एक साहूकार हूं और अपनी पत्नी को उसके मायके से लेकर अपने घर जा रहा हूं। लेकिन तुम कौन हो जो मेरा वेश रखकर यहां आए हो?’ उन दोनों के बीच की यह बहस धीरे-धीरे करते झगड़े में बदल गयी। झगड़ा बढ़ने पर वहां के सिपाही उधर आ पंहुचे और दोनों साहूकारों को पकड़ लिया। अब सिपाही भी असमंजस में पड़ गए कि दोनों की शक्ल एक जैसी कैसे है। तब सिपाही ने साहूकार की पत्नी से पूछा कि, तुम बताओ तुम्हारा असली पति कौनसा है? साहूकार की पत्नी खुद बड़ी दुविधा में थी।
इस परेशानी से बचने के लिए साहूकार ने हाथ जोड़कर भगवान से विनती करना शुरू कर दी कि, हे भगवान! यह कैसी माया है। तभी आकाशवाणी हुई कि, ‘मूर्ख आदमी ये तेरी ही गलती का नतीजा है। तूने कुछ देर पहले ही अपने सास-ससुर की बात न मानकर उनका ही नहीं बल्कि बुधदेव का भी निरादर किया है। बुधवार के दिन गमन करने की मनाही है और तू अपनी जिद के कारण अपनी पत्नी को लेकर चल पड़ा। इसी कारण स्वयं बुधदेव ने तुझे सबक सिखाने के लिए तुम्हारे जैसा वेश धारण कर लिया है।’ यह सुनकर साहूकार को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने भगवान से माफी मांगी। साथ ही साहूकार ने नियमपूर्वक बुधवार को व्रत करने का संकल्प भी लिया। इसके बाद साहूकार के वेश में खड़े हुए बुधदेव वहां से अंतर्ध्यान हुए। फिर साहूकार अपनी पत्नी को लेकर घर चला गया। तत्पश्चात वह साहूकार और उसकी पत्नी दोनों विधिवत बुधवार का व्रत करने लगे।
शास्त्रों के अनुसार मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस कथा को पढ़ता है या सुनता है उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है। वहीं इस कथा को पढ़ने या सुनने से व्यक्ति के बुधवार को यात्रा करने का दोष भी समाप्त हो जाता है।