राजनांदगांव(दावा)। हमें कमियां निकालने वाले अपनी आंखों के चश्मे को बदलना होगा। अगर दुर्योधन बनकर देखोगे तो कमियां ही नजर आएंगी और यदि युधिष्ठिर बनकर देखोगे तो किसी में कमियां ही नजर नहीं आएंगी। नजारों को बदलने की नहीं, हमें अपने नजरिए को बदलने की जरूरत है। हम सभी यह संकल्प लें कि मैं आज से कभी किसी की कमी नहीं निकालूंगा, जब भी किसी को देखुंगा तो उसमें विशेषताएं देखुंगा। क्योंकि जो दूसरों में कमियां देखता है वह कमजोर हो जाता है और जो दूसरों में विशेषताएं देखता है वह विशिष्ट हो जाता है। अगर आपको किसी एक में कमी नजर आए तो उससे बात कीजिए, पर आपको हर एक में कमी नजर आए तो अपने-आपसे बात कीजिए।
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने गुरुवार को श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ द्वारा सदर बाजार स्थित जैन बगीचा प्रांगण में आयोजित तीन दिवसीय प्रवचन माला के दूसरे दिन जीवन जीने की कला विषय पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अंतरमन की सुंदरता जन-जन को प्रभावित करती है। संतप्रवर ने कहा कि आदमी के जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी और विशेषता की पहचान है उसके जीवन में पलने वाला स्वभाव और आदत। आपकी सुंदर वस्तुओं की प्रशंसा करने वाला व्यक्ति आपकी नहीं बल्कि उस वस्तु को देने या दुकान में उपलब्ध कराने वाले की करता है, पर आपकी जबान, आपका स्वभाव-नेचर यदि अच्छे हैं तो इसमें तारीफ आपकी होती है। इतना ही नहीं आदमी अगर गोरा है तो गोरेपन में उसकी तारीफ नहीं है। चेहरे की सुंदरता में तारीफ उसके मॉं-बाप की होती है, पर स्वभाव यदि सुंदर है तो तारीफ आदमी की खुद की होती है। बिना पैसे-टके का ये सत्संग रूपी ंब्यूटी पार्लर आपके तन को नहीं, ये आपके मन को सुंदर बनाने के लिए है। ‘तन को प्रभावित करती है, मन को प्रभावित करती है, अंतरमन की सुंदरता जन-जन को प्रभावित करती है। अपनों को प्रभावित करती है, गैरों को प्रभावित करती है। अंतरमन की सुंदरता पूरे जग को प्रभावित करती है।’ अगर आदमी का अंतरमन निर्मल-पवित्र और सुंदर है तो ये तय मान कर चलो, वो जहां जाएगा वहां राज करेगा।
जीवन निर्माण में सबसे बड़ी भूमिका आदतों की
संतश्री ने आगे कहा- परमात्मा ने हमें जो कुछ देना था, नौ महीने में देकर बाहर निकाल दिया। आंखें, कान, जबान, हाथ-पैर अंग-उपांग सब दे दिए। गजब की बात तो ये है कि परमात्मा को जो देना था, वह सब उन्होंने 9 माह में दे दिया, हमारे जिंदगी के केवल वे दो परसेंट काम होते हैं जो उुपर वाला केवल नौ महीने में दे देता है और 98 परसेंट काम वे होते हैं जिन्हें परमात्मा हम पर 90 साल के लिए छोड़ देता है। भगवान ने जबान, कान दिए पर तय हमें करना होगा कि उस जबान से हम क्या बोलते, कानों से क्या सुनते हैं। भगवान ने सब अंग हमें दिए पर तय हमें करना होगा कि उनसे हम क्या काम करतेे-कराते हैं। ये जिंदगी भगवान ने हमारे हाथ छोड़ दी है, अब यह तय स्वयं को करना है कि मैं अपनी सारी जिंदगी नैतिकता, पवित्रता के साथ जिउंगा। हर व्यक्ति के जीवन निर्माण में भाग्य से भी बढक़र अगर किसी की भूमिका होती है तो वह है उसकी अपनी आदतों की।
एक बुरी आदत पूरी जिंदगी को तहस-नहस कर देती है
संतश्री ने कहा कि आदमी की जैसी आदतें होती है, वैसा ही उसका भविष्य बनता है। वैसे ही उसके संस्कार, वैसी ही उसकी जबान होती है। आदतोंं के अनुरूप ही आदमी के पांव भी उसी ओर जाया करते हैं, इसीलिए अपनी आदतों के प्रति हमेशा सजग रहें। जैसे एक गंदी मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है, वैसे ही एक बुरी आदत हमारी पूरी जिंदगी को तहस-नहस कर देती है। तय हमें करना होगा कि हम अच्छी आदतों को अपनाएं या बुरी आदतों में पड़ जाएं।
गॉड बनें या न बनें पर गुड जरूर बने
गुड बनने की प्रेरणा देते हुए संतश्री ने समझाया कि भगवान को अंग्रेजी में गॉड कहते हैं, जिसकी स्पेलिंग जीओडी है, यदि जीओडी को पलट कर बोलें तो वह डॉग बन जाया करता है। ऐसे ही अगर जिंदगी में आदमी गलत रास्ते पर चला जाए तो वह जीओडी-गॉड नहीं रहता, उल्टा होकर डीओजी हो जाया करता है। जिंदगी में गॉड बन पाएं कि न बन पाएं, पर यह तय मान कर चलो कि पचास दिन की यह प्रवचनमाला ये दावा जरूर करती है कि आपको जिंदगी में जीओओडी-गुड जरूर बना देगी।
जैसी होगी संगत वैसी आएगी रंगत
संतश्री ने कहा कि हमारी अच्छी आदतें जीवन के विकास का द्वार भी खोलती हैं और हमारी गलत आदतें हमारे जीवन को नीचे भी लेकर जाती हैं। गलत आदतें जीवन में विध्वंस का कारण बन जाती हंै, जीवन को नकारने, जीवन को नेगेटिव बनाने का कारण बनती हैं। एक बात तय है कि जिन सीढिय़ों से आदमी उुपर जाता है, नीचे उतरने के लिए भी वे ही सीढिय़ां काम आती हैं, इसीलिए आदमी अपनी आदतों के प्रति हमेशा सजग रहे। 50 प्रतिशत हमारे जीवन का निर्माण हमारी आदतों से होता है, भाग्य की भूमिका तो बहुत कम होती है। जीवन निर्माण में भाग्य की भूमिका पिता की तरह है और आदतों की भूमिका मां की तरह। इसीलिए कहा जाता है- जैसा पिए पानी वैसी बोले वाणी, जैसा खाए अन्न-वैसा रहे मन, जैसा करेगा आहार वैसा करेगा व्यवहार, जैसी होगी संगत वैसी आएगी जीवन में रंगत। दिनभर अगर आदमी ने अगर प्याज-लहसुन खाया है तो शाम को डकारें इलायची-केसर की नहीं आने वाली। हमारी आदतें ज्यादातर संगत से प्रभावित होती हैं। जैसी आदमी की संगत होती है, वैसी ही उसकी रंगत हो जाया करती है।
खामियों को जीतना व खासियत को जीना इसी का नाम है जिंदगी
संतप्रवर ने श्रद्धालुओं से आह्वान कर कहा कि बुरी आदतों को हम जीत लें और अच्छी आदतों को जी लें। हर आदमी में दो चीजें होती हैं- कुछ खामियां होती हैं और कुछ खासियतें। खामियों को जीतना और खासियत को जीना इसी का नाम जिंदगी है। दुनिया में कुछ लोग होते हैं जो जाने से पहले अपने बच्चों के लिए विश छोडक़र जाते हैं और कुछ महान लोग होते हैं जो गुडविल छोडक़र जाते हैं। याद रखें- अगर पहचान से काम मिला तो एक बार मिलेगा, पर काम से पहचान बन गई तो जीवनभर काम मिलेगा। इसलिए जीवन में विश के भरोसे ना रहो, कर सकते हो तो हमेशा गुडविल पर भरोसा करना। अच्छी आदतें, अच्छे संस्कार दुनिया के किसी मॉल में नहीं मिलते, ये जब भी मिलते हैं तो घर के अच्छे माहौल में मिलते हैं।
दूसरे में कमियां नहीं उसकी खूबियां देखें
संतश्री ने आगे कहा- आदतें दो तरह की होती हैं, कुछ बाहर के निमित्तों से आती हैं, कुछ भीतर से पैदा होती हैं। गुटखा-तम्बाखू खाना, शराब पीना आदमी बाहर से सीखता है लेकिन कुछ हमारी जन्मजात भीतर की कमजोरियां भी होती हैं, जिन्हें हम वर्षों से जीएं जा रहे हैं-ढोए जा रहे हैं और उन आदतों ने हमारे जीवन को बड़ा दु:खी किया है पर हम उन आदतों से बाहर निकाल नहीं पा रहे हैं। आदमी के जीवन की पहली बुरी आदत है- दूसरों की कमियां निकालने की आदत। दूसरी बुरी आदत होती है- सामने वाले का मजाक उड़ाने, नेगेटिव बोलने की आदत। आज से जीवन की इस कमजोरी को हमें जीतना है, वह है- दूसरों की कमजोरियां देखने की आदत। याद रखें कमियां आपमें भी हैं और जबान सामने वाले के पास भी है। जो दूसरों की कमियां निकालता है, उसे ही कमीना कहा गया है। ऐसे आदमी की चले तो वह कोयल, गुलाब और समुद्र में भी कमियां निकाल दे। ‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय, जो दिल देखा आपणा मुझसा बुरा न कोय। दूसरों में कोई कमियां नहीं हैं, कमी है हमारे नजरिये में।
इन बुरी आदतों को जीतने का लें संकल्प
आज संतप्रवर ने श्रद्धालुओं को सात प्रकार की बुरी आदतों का स्वयं में अवलोकन कर उन्हें जीतने का संकल्प दिलाया। वे बुरी आदतें हैं- दूसरों में कमियां निकालना, दूसरों का मजाक उड़ाना, दूसरों की आलोचना करना, हमेशा टेढ़ा और नकारात्मक बोलना, उम्र में बड़े होने के अधिकार से हमेशा टोका-टाकी करना, अच्छे कार्यों में भी टांग खींचने और टांग अड़ाने की आदत और दूसरों को बेवजह दुखी करने की आदत। संतश्री ने परहित के सद्गुण को जीने प्रेरित करते कहा कि याद रखें- दुआ कभी जिंदगी का साथ नहीं छोड़ती और बददुआ कभी जिंदगी का पीछा नहीं छोड़ती, इसीलिए सदा दूसरों का भला करो किसी को दुख मत करो। धर्मसभा में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने श्रद्धालुओं को खुशी पाने के मंत्र देते हुए कहा कि खुशी हमारे भीतर है बाहर नहीं, खुश रहने के लिए हर काम खुश होकर के करें, दूसरों को खुशियां बांटे और किसी से ज्यादा अपेक्षा न पालें तो आप सजा खुशमिजाज इंसान बनने में सफल हो जाओगे. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के अध्यक्ष मनोज बैद और मीडिया प्रभारी आकाश चोपड़ा ने बताया कि शनिवार को राष्ट्रसंतों के सानिध्य में सदर बाजार स्थित जैन बगीचा प्रांगण में सुबह 6:15 बजे संबोधि ध्यान योग शिविर और 9 बजे दिव्य प्रवचन व सत्संग का आयोजन होगा जिसमें सभी शहरवासी भाग ले सकते हैं।