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मनुष्य का मनुष्य से, दूसरे जीवों से और प्रकृति से समान व्यवहार हो – राज्यगुरू नरेश भाई

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राजनांदगांव(दावा)। ओ कान्हा महिला मंडल एवं सर्वमहिला मंडल के संयुक्त तत्वावधान में स्टेट हाईस्कूल मैदान में आयोजित श्रीमद भागवत कथा में आज कथा वाचक नरेश भाई राज्यगुरू ने बताया कि भागवत गीता मनुष्य के व्यवहार के संबंध में तीन सूत्र बताती है। यें सूत्र हैं मनुष्य का मनुष्य से, मनुष्य का दूसरे बेजुबान जीवों से और उसका प्रकृति के साथ व्यवहार समान होना चाहिए।

श्री राज्यगुरू ने कथा स्थल पर उपस्थित श्रोताजनों को अपने मुखारविंद से बताया कि भगवत कथा में बताया गया कि व्यक्ति का व्यवहार, अपने पड़ोसी से, मित्रों से, समाज से, परिजनों से कैसा होना चाहिए। भारतीय ऋषि मुनियों ने हमेशा शिक्षा दी है कि जैसा व्यवहार आप अपने अपनों से करते हैं, वैसा ही व्यवहार दूसरों से करें। सभी से समान व्यवहार करें। मेरा पराया का भाव नहीं रखें। यहीं भारत की युगों युगों की वसुधैव कुटुंबकम की भावना और परंपरा रही है। अर्थात पूरी दुनिया से समान व्यवहार, समभाव। श्री राज्यगुरू ने कहा कि कोरोनाकाल में लोगों ने जिस तरह से दूसरों की सेवा की, इलाज कराया, भोजना कराया, वे सब समान व्यवहार की भावना से संभव हुआ। इस दौरान देश में मानवता की सुगंध मिली थी, यही सेवा भाव, समान व्यवहार जीवन भर करें। यह भावना कथा श्रवण और सत्संग से आती है।

श्री राज्यगुरू ने बताया कि भगवत गीता में हरि ने दूसरे सूत्र के रूप में बताया कि मनुष्य का दूसरे जीवों से भी समान व्यवहार होना चाहिए। उन्होंने बताया कि आप अपने माता-पिता, भाई, बहन, पूर्वजों के मोक्ष और कन्याण के लिए भगवत कथा कराते हैं, उसी तरह आप अपने घर के पालतू जीवों गाय, तोता, स्वान, घोड़ा जिनमें भी आपकी आस्था है, लगाव है, उसे तारने के लिए भागवत गीता करवायें जो मनुष्य के साथ इन बेजुबान पशुओं को भी तारती है। यानी दूसरा सूत्र है कि मनुष्य जैसा व्यवहार मनुष्य से करता है, वैसा ही व्यवहार दूसरे जीवों से भी करें।

पंडित जी ने बताया कि भगवत गीता में तीसरा सूत्र यह बताता है कि मनुष्य का व्यवहार प्रकृति के साथ कैसा होना चाहिए। प्रकृति परमात्मा की पटरानी, अर्धांगिनी है। हम सुबह देर से उठते हैं, लेकिन सूरज की किरणें समय पर धरती पर पहुंच जाती है। शुद्व वायु भी समय पर बहती रहती है। शुद्व हवा यानी आक्सीजन की कीमत हमें कोरोनाकाल में अच्छी तरह से पता चली थी। मरीजों के परिजनों एक एक आक्सीजन सिलेंडर के लिए सैकड़ों रूपये खर्च कर रहे थे, यहां वहां सिलेंडर ढूंढ रहे थे। तब हमें पता चला कि वायु कितनी कीमती है। सूर्य, वायु, पानी, नदी, पर्वत, आकाश सब प्रकृति हैं, वो हमें जीवन देती हैं, इसलिए इनकी पूजा करें। उन्होंने कहा कि प्रकृति की पूजा समर्पित भाव से निष्ठापूर्वक करना हरि की पूजा ही है। हम रोज सुबह घर में सालिकराम की पूजा करते हैं,जो एक मूर्ति है। मूर्तिपूजा में विश्वाास नहीं रखने वाले इसे पत्थर की पूजा कहते हैं। लेकिन हरि ने सात साल की उम्र में गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की थी। हरि ने पर्वतों यानी गोवर्धन के संवर्धन का संदेश दिया था। पर्वत भी प्रकृति ही है। इसलिए प्रकृति के साथ भी मनुष्यवत व्यवहार करें। सालिगराम की मूर्ति जब तक मंदिर में प्र्राण प्रतिष्ठित नहीं हुई होती, तब तक एक पत्थर सदृश्य होती है। लेकिन जब भक्तजन और पंडित अपनी आस्था से, श्रद्वा से, मन से प्रेरित होकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा करते हैं तो उसमें जान आ जाती है और पत्थर, सालिगराम बन जाता है। पत्थर,पत्थर नहीं रह जाता है, चैतन्य बन जाता है और अपने भक्तों की बात सुन लेता है। इसलिए प्रकृति की पूजा हरि की पूजा है।

आज के कार्यक्रम में भाजपा पिछड़ा वर्ग प्रदेशाध्यक्ष भरत वर्मा, उद्योगपति दामोदारदास मूंदड़ा, साहू समाज के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कमल साहू, शिशु रोग विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. पुखराज बाफना, चैंबर ऑफ कामर्स के राजा माखीजा एवं अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कान्हा महिला मंडल की अध्यक्ष अर्चना दुष्यंत दास, संरक्षिका एवं कांग्रेस नेत्री शारदा तिवारी, टीना खंडेलवाल, दामिनी साहू, आरती श्रीवास्तव, सुषमा सिंह, साधना तिवारी सहित अन्य पदाधिकारी एवं सदस्यगण श्रीमद भागवत कथा के आयोजन में श्रद्वालुओं और यजमानों की समर्पित भाव से सेवा सहयोग कर रही हैं।

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