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भारत के चक्रव्यूह में फंसेगा ड्रैगन, दुश्मन के जंगी जहाजों का काल बनेगी ब्रह्मोस मिसाइल

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चीन दक्षिण सागर के आसपास के देशों को धमकाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता और उनकी एक्सक्लूसिव इकॉनोमिक जोन (EEZ) में भी अपना कब्जा करता रहता है. फिलीपींस के साथ चीन के रिश्ते 2009 के बाद से और खराब हो गए, जब ड्रैगन ने नया नक्शा जारी किया, जिसमें उसने साउथ चाईना सी में 9 डैश लाइन लगाकर उन्हें अपना इलाका बता दिया. इसके तहत फिलीपींस के द्वीपों और EEZ का हिस्सा भी आता है और चीन का उन पर दावा ठोकने से फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान और मलेशिया के समुद्री क्षेत्र पर कब्जे का संकट बढ़ गया है. चूंकी चीन की नेवी सैनिकों और समुद्री जहाजों की संख्या के लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है. एसे में उसे काउंटर करने के लिए भारत का ब्रह्मोस मिसाइल अचूक हथियार है.

चीन की हिमाकत से निपटने के लिए फिलीपींस ने अपनी नौसेना को और मजबूत करना शुरू किया है. फिलीपींस ने 3 ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम प्राप्त करने के लिए पिछले साल भारत के साथ 374.96 मिलियन डॉलर का करार किया था. अलगे साल से ब्रह्मोस एंटी शिप सुपरसोनिक मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी भी होनी शुरू हो जाएगी. करार के मुताबिक फिलीपींस की नौसेना को भारत ने इस श्योर बेस्ड एंटी शिप मिसाइल सिस्टम के ऑपरेशन और रखरखाव की ट्रेनिंग भी दी है. इस साल 23 जनवरी से 11 फरवरी तक नागपुर में चली फिलीपींस के 21 नौसैनिकों ने ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम को हैंडल करने की ट्रेनिंग ली. ट्रेनिंग खत्म होने के बाद नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने फिलीपींस के नौसैनिकों को मिसाइल बैज दिए. फिलिपींस मरीन कोर की कोस्टल डिफेंस रेजिमेंट ब्रह्मोस एंटी शिप सुपरसोनिक मिसाइल सिस्टम को ऑापरेट करेगी.

ब्रह्मोस दुनिया की सबसे खतरनाक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों में से एक है. इसकी मारक क्षमता 290 किलोमीटर है. फिलीपींस का एक्सक्लूसिव इकॉनोमिक जोन, समुद्र तट से 200 नॉटिकल मील यानी की 370 किलोमीटर तक का इलाका है. फिलीपींस की नौसेना ब्रह्मोस मिसाइल से अपने एक्सक्लूसिव इकॉनोमिक जोन के अंदर आने वाले किसी भी चीनी जंगी जहाज को आसानी से निशाना बना सकती है. चीन ने बड़ी तेजी से फिलीपींस के अधिकार क्षेत्र में आने वाले इलाकों में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण करना शुरू किया है और इसके अलावा वह फिलीपींस की नौसेना की पेट्रोलिंग में भी अड़ंगा डालता है. इसी महीने की शुरुआत में ही चीनी नौसेना ने दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस के नौसेना की एक चौकी पर आपूर्ति ले जाने वाले जहाज को रोका और उस पर लेजर का इस्तेमाल किया. अगर चीन की घेराबंदी की बात करें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि दक्षिण चीन सागर और इसके आसपास के समुद्री इलाके में ड्रैगन के खिलाफ ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल का चक्रव्यूह तैयार हो रहा है.

दरअसल, फिलीपींस के अलावा ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम में कई और देशों ने भी रूचि दिखाई है, जिनमें इंडोनेशिया, थाइलैंड शामिल हैं. इनसे बातचीत एडवांस स्टेज में चल रही है. ब्रह्मोस के जमीन, समंदर और हवा से दागे जाने वाले तीनों वर्जन को भारतीय सेना के तीनों अंगों में शामिल किया जा चुका है. ब्रह्मोस की खासियत है कि यह रडार की पकड़ में नहीं आता. पिछले साल ही भारतीय वायुसेना की एक ब्रह्मोस मिसाइल गलती से पाकिस्तान की तरफ फायर हो गई थी और उसकी सीमा में 100 किलोमीटर अंदर जाकर गिरी थी. लेकिन पाकिस्तान के रडार उसे ट्रैक तक नहीं कर सके थे. भारत ने भी ब्रह्मोस की रेंज बढ़ाने के लिए काम शुरू कर दिया है. भारत साल 2016 में मिसाइल टेक्नोलाॅजी कंट्रोल रिजीम का सदस्य बना था. यह संस्था लंबी दूरी की मिसाइलों और ड्रोन के प्रसार को कंट्रोल करती है. अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत कोई भी देश 300 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक मार करने वाली मिसाइल प्रणाली दूसरे देश को नहीं बेच सकता.

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