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आपकी पुरानी कंपनी नहीं दे रही ग्रेच्‍युटी का पैसा, अपनाएं ये रास्‍ता, मूल धन के साथ ब्‍याज भी मिलेगा

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नौकरीपेशा व्‍यक्ति को नौकरी के दौरान पैसे के लिहाज से कई लाभ मिलते हैं. इनमें से एक है ग्रेच्युटी (Gratuity). ग्रेच्‍युटी कर्मचारी को नियोक्ता (Employer) की तरफ से मिलती है. आमतौर पर ग्रेच्‍युटी के रूप में मिलने वाली रकम तब मिलती है, जब कर्मचारी नौकरी छोड़ता है या उसे नौकरी से हटाया जाता है या फिर वो रिटायर होता है. कर्मचारी की मृत्यु होने या दुर्घटना की वजह से नौकरी छोड़ने की स्थिति में उसे या उसके नॉमिनी को ग्रेच्युटी की रकम दी जाती है. लेकिन, कई बार कंपनी या नियोक्‍ता नौकरी छोड़ने पर कर्मचारी को ग्रेच्‍युटी देने में आनाकानी करता है. अगर नियोक्‍ता ऐसा करता है तो वह कानून का उल्‍लंघन करता है.

अगर आप किसी कंपनी में 4 साल 240 दिन काम कर लेते हैं तो आप ग्रेच्युटी के हकदार हो जाते हैं. कंपनी के लिए यह अनिवार्य है कि तय समय सीमा के बाद अगर आप कंपनी छोड़ते भी हैं तो भी आपको ग्रेच्युटी दे. कंपनी के ग्रेच्‍युटी देने से इंकार करने पर भी आपके पास अपना यह हक लेने के कई विकल्‍प हैं.

कितने दिन में आता है ग्रेच्युटी का पैसा?
नौकरी छोड़ने के बाद ग्रेच्युटी निकालने के लिए अप्लाई करना होता है. इसके लिए आप अपने एम्प्लॉयर के पास आवेदन करना होगा. नियम के मुताबिक, अप्लाई करने के 30 दिन के अंदर पैसा बैंक अकाउंट में पहुंच जाएगा. अगर कंपनी इस अवधि के बाद भी ग्रेच्युटी राशि खाते में नहीं डालती है, तो उसे बाद में ब्‍याज सहित यह राशि देनी होगी.

न मिले ग्रेच्‍युटी तो उठाएं ये कदम
अगर कंपनी आपको निर्धारित समय के भीतर ग्रेच्‍युटी नहीं देती है तो सबसे पहले आप अपने नियोक्ता को लीगल नोटिस भेजें. नोटिस के बाद भी नियोक्ता ग्रेच्युटी देने में नाकाम रहता है तो आप इसकी शिकायत कंट्रोलिंग अथॉरिटी से कर सकते हैं. आमतौर पर जिले के लेबर कमिश्नर ऑफिस में एक असिस्टेंट लेबर कमिश्नर कंट्रोलिंग अथॉरिटी होता है.

अधिकारी दिलाएंगे पैसा
अगर आप ग्रेच्‍युटी के हकदार हैं तो अधिकारी कंपनी को आदेश देगा कि आपकी ग्रेच्युटी दी जाए. यह आदेश पारित होने के 30 दिन के अंदर कंपनी को ग्रेच्‍युटी राशि का भुगतान करना होता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो उसके बाद 15 दिन के अंदर अधिकारी कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की शुरुआत कर सकता है.

क्या है सजा?
नियोक्ता ग्रेच्‍युटी का भुगतान न करने का दोषी पाया जाता है तो उसे ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 (Payment of Gratuity Act,1972) के उल्लंघन का दोषी माना जाएगा, जिसमें 6 महीने से लेकर 2 साल तक की सजा का प्रावधान है. हालांकि, कई बार इस मामले को आपस में सुलझा लिया जाता है. ऐसे में नियोक्ता को कर्मचारी को ग्रेच्युटी का भुगतान तो करने का आदेश तो दिया ही जाता है, साथ में विलंब अवधि का ब्याज भी चुकाने को कहा जाता है. इसके अलावा कई बार नियोक्ता पर जुर्माना भी लगाया जाता है.

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