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वो दिन गए, जब कुछ देश तय करते थे एजेंडा…UNGA में गरजे विदेश मंत्री जयशंकर, आतंकवाद पर भी प्रहार, संबोधन की 10 खास बातें

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पश्चिमी देशों पर परोक्ष रूप से कटाक्ष करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को कहा कि कुछ देशों द्वारा एजेंडा तय करने और दूसरों से उसके अनुरूप होने की उम्मीद करने के दिन अब खत्म हो गए हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 78वें सत्र की आम बहस में बोलते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि कूटनीति और बातचीत ही एकमात्र प्रभावी समाधान हैं.

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें सत्र को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने कहा, ‘हमें टीका भेदभाव जैसी नाइंसाफी फिर नहीं होने देनी चाहिए. जलवायु कार्रवाई भी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों से मुंह फेरकर जारी नहीं रह सकती है. खाद्य एवं ऊर्जा को जरूरतमंदों के हाथों से निकालकर धनवान लोगों तक पहुंचाने के लिए बाजार की ताकत का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.’
जयशंकर ने कहा, ‘आधुनिकता को आत्मसात करने वाले सभ्यतागत राज्यतंत्र के रूप में हम परंपरा और प्रौद्योगिकी दोनों को विश्वास के साथ समान रूप से संग लाते हैं. यही मेल आज इंडिया को परिभाषित करता है जो भारत है.’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस महीने के पूर्वार्द्ध में भारत की मेजबानी में दिल्ली में हुए जी20 के शिखर सम्मेलन में भारत के नेता के रूप में संबोधित किया गया था. सरकार ने विभिन्न आधिकारिक जी20 दस्तावेजों में देश के नाम के रूप में भारत का उल्लेख किया.

संयुक्त राष्ट्र महासभा में विदेश मंत्री जयशंकर के संबोधन के 10 अहम बिंदू

‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का भारत का दृष्टिकोण महज कुछ देशों के संकीर्ण हितों पर नहीं, बल्कि कई राष्ट्रों की प्रमुख चिंताओं पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करता है.
भारत विविध साझेदारों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना चाहता है. गुटनिरपेक्षता के युग से, अब हम ‘विश्व मित्र – दुनिया के लिए एक मित्र’ के युग में विकसित हो गए हैं. यह विभिन्न देशों के साथ जुड़ने और जहां आवश्यक हो, हितों में सामंजस्य स्थापित करने की हमारी क्षमता और इच्छा में परिलक्षित होता है. यह QUAD के तीव्र विकास में दिखाई देता है; यह BRICS समूह के विस्तार या I2U2 के उद्भव में भी समान रूप से स्पष्ट है.

जब हम अग्रणी शक्ति बनने की आकांक्षा रखते हैं तो यह आत्म-प्रशंसा के लिए नहीं, बल्कि बड़ी जिम्मेदारी उठाने और अधिक योगदान करने के लिए होती है.

हमने 75 देशों के साथ विकासात्मक साझेदारी बनाई है. आपदा और आपातकालीन स्थिति में भी हम पहले उत्तरदाता बने हैं. तुर्की और सीरिया के लोगों ने यह देखा है.

भारत की पहल की वजह से जी20 में अफ्रीकन यूनियन को स्थाई सदस्यता मिली है. ऐसा करके हमने पूरे महाद्वीप को एक आवाज दी, जिसका काफी समय से हक रहा है. इस महत्वपूर्ण कदम से संयुक्त राष्ट्र, जो उससे भी पुराना संगठन है, सुरक्षा परिषद को समसामयिक बनाने के लिए प्रेरित होना चाहिए.

ऐसे समय में जब पूर्व-पश्चिम ध्रुवीकरण इतना तीव्र है और उत्तर-दक्षिण विभाजन इतना गहरा है, नई दिल्ली शिखर सम्मेलन भी इस बात की पुष्टि करता है कि कूटनीति और संवाद ही एकमात्र प्रभावी समाधान हैं… वे दिन ख़त्म हो गए हैं जब कुछ देश एजेंडा तय करते थे और दूसरों से उसके अनुरूप चलने की उम्मीद करते थे.

हमें टीका भेदभाव जैसी नाइंसाफी फिर नहीं होने देनी चाहिए. जलवायु कार्रवाई भी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों से मुंह फेरकर जारी नहीं रह सकती है. खाद्य एवं ऊर्जा को जरूरतमंदों के हाथों से निकालकर धनवान लोगों तक पहुंचाने के लिए बाजार की ताकत का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.

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