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सरगुजा पीजी कॉलेज के विधि विभाग को BCI की हरी झंडी, देश में कहीं भी लड़ सकेंगे हक की लड़ाई

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सरगुजा संभाग के एकमात्र विधि अध्ययन केन्द्र पीजी कॉलेज स्नातकोत्तर महाविद्यालय को बार काउंसिल ऑफ इण्डिया (BCI) द्वारा मान्यता प्रदान की गई है. बार काउंसिल ऑफ इण्डिया से मान्यता मिलने के साथ ही अब अम्बिकापुर विधि विभाग के छात्र देशभर में कहीं भी प्रैक्टिस कर सकेंगे. 15 दिसंबर को पीजी कॉलेज के विधि विभाग को बार काउंसिल ऑफ इण्डिया द्वारा मान्यता दिया गया.

गौरतलब है कि पीजी कॉलेज अम्बिकापुर में विधि स्नातक की पढ़ाई साल 1972 से संचालित की जा रही है. महाविद्यालय द्वारा विधि स्नातक पाठ्यक्रम की बीसीआई से सम्बद्धता के लिए सालों से प्रयास किया जा रहा था. साल 2014 से इसके लिए कोशिश हो रही थी, किंतु सरगुजा विश्वविद्यालय की स्थापना के पश्चात विवि के बार काउन्सिल ऑफ इण्डिया से सम्बद्ध नहीं होने के कारण मान्यता मिलने में अड़चन आ रही थी.

मान्यता मिलने पर खुशी से झूम उठे प्राध्यापक, छात्र
बार काउंसिल बार इंडिया से मान्यता मिलने की जैसे ही जानकारी मिली पीजी कॉलेज में खुशी की लहर दौड़ गई. विधि विभाग परिसर में प्राचार्य सहित विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, अध्यापकों और विद्यार्थियों के द्वारा केक काटकर जश्न मनाया गया. अभी तक मान्यता नहीं मिलने से छात्र दुविधा में थे. बार काउंसिल से मान्यता मिलने पर छात्रों में उम्मीद की लहर दौड़ गई है.

15 दिसंबर को मिली मान्यता पत्र
कॉलेज के प्राचार्य ने बताया कि बीसीआई की टीम द्वारा जून 2019 में और जुलाई 2023 में दो बार विधि विभाग का निरीक्षण किया गया था. इसके पहले भी कई बार बीसीआई द्वारा निरीक्षण का समय दिया गया था, लेकिन अंतिम समय पर निरीक्षण को टाल दिया जाता था. जुलाई 2023 में निरीक्षण के बाद बीसीआई से नियमित सम्पर्क कर अपेक्षित सभी आवश्यक दस्तावेजों को भेजा गया था. बार काउंसिल ऑफ इण्डिया की मान्यता समिति द्वारा गहन निरीक्षण के बाद आखिरकार 15 दिसंबर को विधि विभाग अम्बिकापुर के अंतर्गत संचालित विधि स्नातक पाठ्यक्रम को मान्यता पत्र जारी किया गया.

बकाया भुगतान से खुली मान्यता की राह
प्राचार्य डॉ. रिजवान उल्ला ने बताया कि छात्रहित को देखते हुए साल 2016 में पहली बार सरगुजा विश्वविद्यालय द्वारा बीसीआई से संबद्धता हेतु आवेदन दिया गया था. इसी साल महाविद्यालय द्वारा बीसीआई को बकाया फीस का साढ़े चौबीस लाख रुपये का भुगतान किया गया था, जिसके बाद मान्यता का मार्ग प्रशस्त हुआ.

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