दुनिया की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा भारत में रहता है. अपनी भौगोलिक बाधाओं के बावजूद भारत इतनी बड़ी आबादी का पेट भरने में सफल रहा है. हालांकि हाल ही में दिल्ली के मुंगेशपुर में 52.9 डिग्री सेल्सियस टेंपरेचर रिकॉर्ड किया गया. इससे संकेत मिलते हैं कि कुदरत देश की जलवायु के लचीलेपन का कड़ा इम्तिहान ले रही है. जो इसके निवासियों और इसकी व्यापक आर्थिक महत्वाकांक्षाओं दोनों के लिए एक गंभीर चुनौती है.
रिपोर्ट के अनुसार भारत जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील है और उसके पास सीमित प्राकृतिक संसाधन हैं. इसके विपरीत यूरोप, उत्तरी अमेरिका और चीन के पास अधिक मजबूत प्राकृतिक संपदा है. भारत ने विकास के मामले में जो मामूली बढ़त हासिल की है, उसके जलवायु परिवर्तन के कारण नीचे गिरने होने का खतरा है. यानी भारत की विकास की नींव को खतरा हो सकता है. क्योंकि आर्थिक प्रगति का अधिकांश भाग अनुकूल मौसम स्थितियों पर निर्भर है. भारत में खेती जून से सितंबर तक दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश पर बहुत अधिक निर्भर करती है. भारत,खेती के मामले में दुनिया में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है.
गेंहू की पैदावार में आई कमी
प्री-मॉनसून हीटवेव एक और चुनौती बन गई है, जो मार्च से मई तक फसलों को प्रभावित कर रही है. उदाहरण के लिए, 2022 में हीटवेव ने गेहूं की पैदावार में लगभग 4.5 फीसदी की कमी कर दी. कोल्ड स्टोरेज की कमी और उच्च तापमान उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले ही उपज को खराब कर सकते हैं. इसकी वजह से सब्जियों की कीमतें बढ़ जाती हैं, जो पिछले दस महीनों में से आठ में दोहरे अंकों की दर से बढ़ी हैं. यह जीवनयापन की लागत पर असर डालता है और काफी लोगों को सस्ते, कम पौष्टिक भोजन पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करता है.
मानसून ला सकता है भयंकर बारिश!
मानसून की बारिश, गर्मी से राहत दिलाने के साथ-साथ भयंकर बारिश भी ला सकती है, खेतों में बाढ़ आ सकती है और फसलें बह सकती हैं. ओला गिरने की घटनाएं अधिक होती जा रही हैं, जैसा कि कश्मीर में देखा गया, जहां 2007 में केवल दो की तुलना में 2022 में 27 ओला गिरने की घटनाएं हुईं. हाल ही में, रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट में भी इस बात पर जोर डाला गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बार-बार होने वाले मौसम के झटके मॉनेटरी पॉलिसियों के लिए चुनौतियों के साथ-साथ आर्थिक विकास के लिए नकारात्मक जोखिम भी पैदा करते हैं.
मॉनेटरी पॉलिसियों के लिए चुनौतियां
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन ने मौसम के झटकों के अंतराल को कम कर दिया और प्रभाव को बढ़ा दिया है, जिससे मॉनेटरी पॉलिसियों के लिए चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. कृषि उत्पादन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित करने वाली प्रतिकूल मौसम की घटनाओं के माध्यम से जलवायु परिवर्तन सीधे इंफ्लेशन को प्रभावित करता है. जलवायु परिवर्तन ब्याज की दर को प्रभावित कर सकता है. जलवायु परिवर्तन के बाद के प्रभाव फर्मों, घरों और परिवारों द्वारा सामना की जाने वाली आर्थिक स्थितियों के लिए मॉनेटरी पॉलिसी को कमजोर कर सकते हैं.