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चीन के कम्युनिकेशन सेट से पाकिस्तानी सेना आतंकियों को करती है अपडेट, भारत के पास नहीं है तोड़

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सूचना क्रांति के दौर में हर देश खुद को नई तकनीक से लैस कर रहा है जिसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है. लेकिन इन्हीं तकनीक को अब अराजक तत्व और आतंकी संगठनों ने अपना एक बड़ा हथियार बना लिया है. 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में शुरू हुईं आतंकी गतिविधियों से लेकर अब तक भारतीय सेना तकनीकी तौर पर मजबूत हुई है तो पाकिस्तान अपने ऑल वेदर फ्रेंड चीन के साथ मिलकर अपनी फौज के साथ-साथ आतंकी संगठन को भी अपग्रेड करने में लगा है. हाल के कुछ दिनों में जम्मू में हुए आतंकी हमले के बाद जो कम्युनिकेशन सेट मिल रहे हैं वो ना सिर्फ इनक्रिप्टेड हैं बल्कि उन्हें ट्रेस करना भी मुश्किल हो रहा है.

जानकारी के मुताबिक, ये कम्युनिकेशन सेट तो चीन से आए थे पाकिस्तानी फौज के पास. लेकिन इनका इस्तेमाल आतंकी कर रहे हैं. अगर इस अल्ट्रा सेट की खासियत की बात करें तो चीन ने पाकिस्तानी सेना को अल्ट्रासेट दिए थे. ये एक एसा सेट है जो कि सैटेलाइट फोन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है और रेडियो सेट की तरह भी. ये सैटेलाइट आधारित कम्यूनिकेशन सिस्टम पूरी तरह से कोडेड है. हर सेट का अलग कोड होता है और इनक्रिपटेड है. यानी इस सेट के माध्यम से जिन दो लोगों के बीच बात हो रही है, उसे कोई तीसरा किसी भी तकनीक की मदद से सुन नहीं सकता है. अगर दो या दो से ज़्यादा आतंकी गुट के पास ये सेट हैं तो ही उस पर वही बात कर सकते हैं. अगर किसी गुट के पास कोई दूसरा सेट है तो वो उनसे संपर्क नहीं कर सकता.

लेकिन पाकिस्तानी सेना आसानी से बातचीत को ट्रैक कर सकती है, सुन सकती है और गाइड भी कर सकती है. क्योंकि इस सैटेलाइट का कोड उसके पास ही है. लेकिन उस नेटवर्क में भारतीय सेना का घुसना मुश्किल हो रहा है. सेट अगर ऑन है और उसका इस्तेमाल किया जा रहा है तो लोकेशन को मॉनिटर की कोशिशों की जा सकती है. लेकिन क्या मैसेज है उसे इंटरसेप्ट करना मुश्किल है.

जम्मू में तो सेना अब एरिया मैपिंग के जरिए इस बात का पता लगाने में जुटी है कि ये अल्ट्रा सेट कहा एक्टिव है. और एक बार वो ट्रैक हो गया तो आतंकियों की लोकेशन आसानी से पता चल जाएगी. इस अल्ट्रा सेट के कोड फिलहाल चीनी कंपनी और जिसने उनसे खरीदा है यानी कि पाकिस्तान फौज के पास ही है. CPEC के मद्देनजर चीन, पाकिस्तान को नई-नई तकनीक से लैस करने में जुटा है. पाकिस्तानी सेना अब धीरे-धीरे चीनी नेविगेशन पर शिफ़्ट हो रही है और चीनी तकनीक को इस्तेमाल कर रही है.

पाकिस्तानी सेना अमेरीकी जीपीएस की जगह अब पूरी तरह से चीनी Beidou ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) पर शिफ्ट हो रही है. साल 2013 में इस पर दोनों देशों के बीच करार भी हुआ था. चूंकि चीन के साथ भारत का सूचनाओं के आदान-प्रदान से जुड़ा कोई समझौता तो नहीं है. एसे में उनके सैटेलाइट के जरिए कौन क्या बात कर रहा है. उसे जानना मुश्किल है. ये कोडेड सैटेलाइट सेट को तोड़ने या ब्रीच करने की सुविधा फिलहाल भारतीय सेना के पास नहीं है. अमेरिका के साथ भारत के इंटेलिजेंस इंपुट शेयरिंग है और अगर आतंकी उस अमेरीकी जीपीएस या कम्यूनिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल कर रहा है तो उसका तोड़ भारतीय सेना के पास है.

आतंकियों का रेडियो सेट से इंटरनेट और सैटेलाइट सेट तक का सफर
1990 के दशक में जो भी कम्युनिकेशन सेट आतंकी इस्तेमाल में लाते थे वो रेडियो फ्रीक्वेंसी पर आधारित थे. इनमें I-com सेट, केनवुड सेट, मोटोरोला रेडियो सेट हुआ करते थे जो एक तय की गई फ्रीक्वेंसी बैंडविड्थ जिसमें लो बेंडविड्थ से लेकर हाई बैंडविड्थ काम करते थे, जिन्हें इंटरसेप्ट करना और आतंकियों के उनके आकाओं से की जाने वाली बातचीत को आसानी से सुना जा सकता था. और ये सेट काफी लंबे समय तक इस्तेमाल में लाया गया. और अब भी थोड़ा बहुत लाया भी जा रहा है. धीरे-धीरे तकनीक के साथ-साथ कम्युनिकेशन यानी पाकिस्तान में बैठे आतंकी आकाओं के बाद जब भारतीय सेना उनके रेडियो फ्रीक्वेंसी नेटवर्क को पकड़ कर उन्हें ढेर करने लगी तो पाकिस्तानी फौज ने उन्हें सैटेलाइट फोन और इंटरनेट कॉलिंग के जरिए इजरायली थोराया सैट फोन और वायस ऑन इंटरनेट प्रोटोकॉल, वॉटस्एप इंक्रिपटेड मैसेजिंग पर शिफ़्ट कर दिया. रही सही कसर अमेरीका के अफगानिस्तान में छोड़े गए इरेडियम सैटेलाइट कम्युनिकेशन सेट ने पूरी कर दी. कश्मीर में वो सैटेलाइट एक्टिव होते भी दिखे हैं.

अल जेहाद रेडियो का मुजाहिद तराना
धारा 370 के हटाए जाने के बाद कश्मीर घाटी में इंटरनेट बंद था. ऐसे में उनके इंटरनेट कॉलिंग जैसी सुविधा पर भी पाबंदी लग गई थी. उस वक्त LOC के पास रहने मौजूद पाकिस्तानी आतंकियों को कोड वर्ड के साथ पीओके से रेडियो के जरिए संदेश भेजना शुरू किया गया था. ये VHF यानी वेरी हाई फ्रीक्वेंसी अमूमन इस तरह की फ्रीक्वेंसी का सेना ही इस्तेमाल करती है और पाकिस्तान की सेना आतंकियों को ये फ्रीक्वेंसी मुहैया करा कर कश्मीर में आतंकियों को पैगाम भेजने का काम कर रही थी. खुफिया एजेंसी ने नॉर्थ कश्मीर के दूसरी ओर पीओके में एक ऐसे ही ट्रांसमिशन टावर को इंटरसेप्ट किया था जिसके जरिए आतंकी अपने साथियों से संपर्क करने के कोशिश कर रहे थे. अल जेहाद रेडियो के नाम से भी जाना जाने वाले इस रेडियो स्टेशन सिर्फ मुजाहिद तराना ब्राडकास्ट किया जा रहा था जिनमें आतंकी तंजीमें आतंकियों को पैगाम भेजने की कोशिश भी कर रहे थे. और ऐसा अब भी होता है. वो इस VHF ट्रांसमिशन टावर के जरिए मुजाहिद तरानों और उनके बीच से कॉल साइन के कोड के जरिए आतंकियों को मैसेज भेजने की भी कोशिश की जा रही थी. ज़्यादातर कश्मीर में मौजूद लश्कर, जैश और अल बद्र के आतंकियों को संदेश भेजने के लिए इस VHF टावर का इस्तेमाल किया जाता है.

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