हर साल जुलाई आते ही इनकम टैक्स रिटर्न (Income Tax Returns) भरने की जद्दोजहद आपको करनी पड़ती है. इस दौरान आपको टैक्स बचाने के लिए कई तरह के डॉक्यूमेंट की जरूरत भी पड़ती है. फिर आपका सामना होता है टैक्स छूट (Tax Exemption) और टैक्स डिडक्शन (Tax Deduction) से. भले ही यह दोनों आपके टैक्स को कम करने में काम आते हों लेकिन, ये हैं एक दूसरे से बिलकुल अलग. आइए समझते हैं इनकम टैक्स (Income Tax) की यह दोनों व्यवस्थाएं कैसे काम करती हैं.
देश में चल रहे दो सिस्टम ओल्ड टैक्स रिजीम और न्यू टैक्स रिजीम
इस समय देश में ओल्ड टैक्स रिजीम (Old Tax Regime) और न्यू टैक्स रिजीम (New Tax Regime) के नाम से दो व्यवस्थाएं चल रही हैं. न्यू टैक्स रिजीम में टैक्स छूट की ज्यादातर चीजें हटा दी गई हैं. हालांकि, ओल्ड टैक्स रिजीम के तहत आप आज भी कई तरह की टैक्स छूट और टैक्स डिडक्शन का लाभ ले सकते हैं.
क्या है टैक्स डिडक्शन
यह एक वित्त वर्ष में किए जाने वाले आपके निवेश और खर्च का विवरण होता है. इसे आप रिटर्न भरते समय आपकी कुल आय में से घटा सकते हैं. इसमें कुछ विशेष म्युचुअल फंड, ईपीएफ, पीपीएफ, लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी, ट्यूशन फीस, हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी प्रीमियम, होम लोन एवं एजुकेशन लोन की किस्त और दान का पैसा शामिल होता है. ओल्ड टैक्स रिजीम में टैक्स डिडक्शन के लिए इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C, 80D, 80G, 24 आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं.
सेक्शन 80C – इनवेस्टमेंट और खर्च – 1.5 लाख रुपये तक
सेक्शन 80CCD (1b) – एनपीएस – 50 हजार रुपये तक
सेक्शन 80D – मेडिकल प्रीमियम – 25 हजार रुपये तक
सेक्शन 80E – एजुकेशन लोन – 8 साल तक भरा जाने वाला ब्याज
सेक्शन 80TTA – सेविंग अकाउंट पर ब्याज – 10 हजार रुपये तक
सेक्शन 80TTB – ब्याज – 50 हजार रुपये तक (60 साल से ऊपर के लोगों के लिए)
क्या है टैक्स छूट
टैक्स छूट में आय के वह स्त्रोत आते हैं, जिन पर टैक्स लगता ही नहीं है. इनमें एग्रीकल्चर इनकम, हाउस रेंट अलाउंस (HRA) और लीव ट्रेवल अलाउंस (LTA) आते हैं. इन्हें इनकम टैक्स एक्ट से सेक्शन 10 में जगह दी गई है. इनमें से ज्यादातर को न्यू टैक्स रिजीम में से हटा दिया गया है.
सेक्शन 10(13) – हाउस रेंट अलाउंस
सेक्शन 10(5) – लीव ट्रेवल अलाउंस
सेक्शन 10(14) – फूड (50 रुपये प्रति मील)