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शेख हसीना यूं ही नहीं बांग्लादेश से भागने को हुईं मजबूर, PM-इन-वेटिंग रहमान ने रचा पूरा खेल……

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बांग्लादेश में इन दिनों हिंसक विरोध प्रदर्शन और भारी उथल-पुथल से जूझ रहा है. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बांग्लादेश से भागकर भारत में शरण ले रखी है और उनकी जगह मोहम्मद यूसुफ के नेतृत्व में एक कामचलाऊ सरकार गठित की जा चुकी है. शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ अब होता दिख रहा है. खबर है कि आईएसआई ने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) नेता और पीएम-इन-वेटिंग तारिक रहमान के साथ मिलकर शेख हसीना के खिलाफ पूरी साजिश रची.

पता चला है कि रहमान ने एक खाड़ी देश में आईएसआई के साथ बैठकें कीं, जहां बांग्लादेश में बवाल मचाने का पूरा प्लान बना. दरअसल खालिदा जिया के बेटे रहमान पिछले 15 साल से लंदन में निर्वासन में जिंदगी बिता रहे हैं. हालांकि कुछ महीने पहले अचानक से वह बेहद एक्टिव हो गए. इस दौरान उन्होंने खाड़ी देश की यात्रा भी की, जहां आईएसआई के अधिकारियों से उनकी सीक्रेट मीटिंग हुई. इसी मीटिंग में पूरा प्लान बना कि कैसे बांग्लादेश में लोगों को भड़काकर शेख हसीना को सत्ता से बेदखल किया जाए.

प्रदर्शनकारियों को भड़काने में दिखा हाथ
बांग्लादेश में जब मुक्तियोद्धाओं (स्वतंत्रता सेनानी) के परिवार को आरक्षण के खिलाफ छात्रों का गुस्सा फूटा और वे सड़कों पर उतरे तब भी रहमान उन्हें लंदन से ही बैठकर भड़काते दिखे. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कई वीडियो और पोस्ट डाले, जिसमें वह प्रदर्शनकारियों से शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने की अपील करते दिखे.

वर्ष 2001-06 के बीच बांग्लादेश में जब खालिदा जिया प्रधानमंत्री थीं, तब सत्ता की बागडोर एक तरह से रहमान के ही हाथों में थी. आईएसआई और कट्टरपंथियों के साथ उनका गहरा और पुराना नाता है. इस दौरान उन पर भारतीय हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगा था. रहमान ने मालदीव की ही तरह बांग्लादेश में भी इंडिया आउट अभियान चलाया था, जिसका मकसद भारतीय सामानों का बहिष्कार करना था. इस अभियान से रहमान जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम जैसे कट्टरपंथियों को खुश करके शेख हसीना के खिलाफ सियासी जमीन मजबूत करना चाहते थे.

हसीना पर जानलेवा हमले के जुर्म में मिली थी उम्रकैद
इसी दौरान 21 अगस्त, 2004 को अवामी लीग की एक रैली में हसीना को निशाना बनाया गया था. इस हमले में हसीना बाल-बाल बच गईं, लेकिन उनके सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा था. इस हमले में रहमान का नाम आया था, हालांकि तब तक वह देश छोड़कर भाग चुके थे. बांग्लादेश की अदालत में उनकी गैरमौजूदगी में ही केस चलाया गया और अक्टूबर 2018 में उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई थी. अदालत ने उन्हें ‘भगोड़ा’ घोषित कर दिया था.

इस बीच, अंतरिम सरकार में कट्टरपंथी हिफाजत-ए-इस्लाम के एक पूर्व उपाध्यक्ष को शामिल किए जाने से बांग्लादेशी समाज के प्रगतिशील वर्ग हैरान हैं. हिफाजत-ए-इस्लाम का गठन 2010 में चटगांव में हुआ था, जहां जमात-ए-इस्लामी परंपरागत रूप से मजबूत रही है. पिछली अवामी लीग सरकार के साथ इसका छत्तीस का आंकड़ा रहा है और उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन किए थे. हेफ़ाज़त बांग्लादेश में संस्थानों के नाम बदलना और कट्टरपंथी क़ानून लाना चाहता है.