देश की अर्थव्यवस्था पर निगरानी की जिम्मेदारी आरबीआई के पास होती है. इसी तरह शेयर बाजार की जिम्मेदारी सेबी के पास होती है. लोगों के स्वास्थ्य पर कितना पैसा खर्च होगा और उसके बदले उन्हें क्या-क्या मिलेगा इसका फैसला इरडा करता है. यानी आपका और आपके देश का पैसा बढ़ेगा या घटेगा, इकॉनमी उठेगी या बैठेगी यह सब मुख्य रूप से इन 3 एजेंसियों के हाथ में होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनके शिखर पर बैठने वालों का चुनाव कैसे किया जाता है.
अक्सर इन पदों पर बैठे लोगों राजनीतिक दलों के निशाने पर आ जाते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इनकी नियुक्ति में राजनीति हावी होती है? आइए जानते हैं कि इनके प्रमुख कैसे नियुक्त किये जाते हैं.
कैसे होती है सेबी प्रमुख की नियुक्ति?
सेबी प्रमुख के चेयरपर्सन और हर पूर्णकालिक सदस्य की नियुक्ति में केंद्र सरकार सीधे तौर पर शामिल होती है. इसकी नियुक्ति फाइनेंशियल सेक्टर रेग्युलेटरी अपॉइंटमेंट्स सर्च कमिटी (FSRASC) की सिफारिश पर केंद्र सरकार द्वारा की जाती है. केंद्र को सिफारिश देने वाली कमिटी में कैबिनेट सचिव, प्रधानमंत्री के अतरिक्त प्रधान सचिव, आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव और सेबी के मौजूदा चेयरपर्सन शामिल होते हैं. इसके अलावा इस कमिटी में 3 और लोग होते हैं जिनकी सिफारिश केंद्र सरकार करती है.
कैसे होती है इरडा प्रमुख की नियुक्ति?
इरडा के प्रमुख की नियुक्ति भी ठीक उसी प्रक्रिया से होती है जिस प्रक्रिया से सेबी का प्रमुख चुना जाता है. इंश्योरेंस रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IRDAI) की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, FSRASC के पास यह शक्ति भी होती है कि वह इस पोस्ट के लिए उन लोगों के नाम की भी सिफारिश कर सकते हैं जिसने इस पद के लिए आवेदन ही न किया हो. उनकी सिफारिश के बाद केंद्र सरकार नियुक्ति पर मुहर लगाती है.
आरबीआई गवर्नर की नियुक्ति
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और डिप्टी गवर्नर की नियुक्ति भी केंद्र सरकार द्वारा ही की जाती है. केंद्र सरकार को वित्त मंत्री की ओर से नाम की सिफारिश मिलती है. गवर्नर और डिप्टी गवर्नर की नियुक्ति के नियम आरबीआई एक्ट के सेक्शन 8(1) (a) के तहत होती है. आरबीआई के डिप्टी गवर्नर की संख्या 4 से अधिक नहीं हो सकती है. इसके अलावा 10 नॉन-ऑफिशियल डायरेक्टर्स की भी नियुक्ति की जाती है जिसकी सिफारिश केंद्र सरकार ही करती है. जाहिर है कि इन तीनों ही पदों पर सत्ताधारी दल का प्रभाव होता है. यही कारण है कि विपक्षी पार्टियों द्वारा माधबी पुरी बुच को निशाने पर लिया जा रहा है.