Home आस्था इस चीज के बिना अधूरा होता है श्राद्ध, नहीं मिलती पितरों की...

इस चीज के बिना अधूरा होता है श्राद्ध, नहीं मिलती पितरों की आत्मा को शांति! हरिद्वार के ज्योतिषी ने बताया महत्व

16
0

हरिद्वार. साल 2024 में पितृपक्ष के दिनों की शुरुआत 17 सितंबर से हो जाएगी. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार पितृपक्ष के दिनों में अपने पितरों और पूर्वजों के श्राद्ध कर्म, पिंडदान, तर्पण आदि करने से उन्हें शांति और मोक्ष आदि की प्राप्ति होती है. अपने पितरों की आत्मा को मोक्ष देने के लिए व्यक्ति उनका श्राद्ध कर्म विधि विधान के साथ करता है. मत्स्य पुराण और गरुड़ पुराण के अनुसार बताई गई विधि के अनुसार ही व्यक्ति को अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करना चाहिए. नाराज पितरों को मनाने और पितृ दोष को खत्म करने के लिए शास्त्रों में बताई गई विधि के अनुसार अपने पितरों का श्राद्ध कर्म, पिंडदान या अन्य कर्मकांड करने का विधान बताया गया है.

पुराणों के अनुसार पितृपक्ष के दिनों में पितरों के श्राद्ध कर्म, तर्पण, पिंडदान आदि कार्यों में पवित्र कुशा का बहुत अधिक महत्व होता है. यदि श्राद्ध कर्म में कुशा का उपयोग ना किया जाए, तो पितरों को शांति नहीं मिलती है. गरुड़ पुराण के अनुसार पवित्र कुशा के बिना पितरों का श्राद्ध अधूरा रहता है. कुशा में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास रहता है. इसलिए पितृ पक्षों में श्राद्ध पूर्ण करने के लिए कुशा का उपयोग जरूर किया जाता है. वहीं कुशा का महत्व आदि अनादि काल में देवताओं और राक्षसों में हुए समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है.

पितृ पक्ष में कुशा के उपयोग होने के बारे में ओर अधिक जानकारी देते हुए हरिद्वार के विद्वान ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री ने बताया कि यदि पितरों के श्राद्ध में कुशा की अंगूठी हाथ में पहनकर और कुशा के आसान का उपयोग नहीं किया गया तो श्राद्ध पूर्ण नहीं माना जाता हैं. शास्त्रों में कुशा को बहुत पवित्र बताया गया है साथ ही पितरों का श्राद्ध पूर्ण करने के लिए श्राद्ध कर्म, तर्पण, पिंडदान आदि करते समय दाएं हाथ की अनामिका उंगली में कुशा की अंगूठी बनाकर पहनी जाती है और श्राद्ध की सभी क्रियाएं कुशा के आसन पर बैठकर ही की जाती हैं.

समुद्र मंथन से जुड़ा हैं कुशा का महत्व

पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं की कुशा का महत्व आदि अनादि काल में हुए समुद्र मंथन से भी जुड़ा हुआ है. गरुड़ पुराण के अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को मायापुरी हरिद्वार में कुशा में छुपाया गया था. हरिद्वार में हर की पौड़ी पर कुशा घाट प्राचीन है, जहां पितरों को मोक्ष देने के लिए कर्मकांड करने का सबसे अधिक महत्व बताया जाता है. प्राचीन समय में हर की पौड़ी के कुशा घाट पर काफी बड़ी-बड़ी कुशा थी. धार्मिक कार्य या श्राद्ध आदि कार्यों में कुशा का उपयोग करने से उसका महत्व ओर अधिक बढ़ जाता है. ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री बताते हैं कि पितरों का श्राद्ध कर्म, तर्पण, पिंडदान आदि करने के दौरान कुशा का उपयोग जरूर करना चाहिए, जिससे प्रेत योनि में भटक रहे पितरों को मुक्ति मिले और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके.

Note: पितरों के श्राद्ध पक्ष में कुशा के महत्व के बारे में ओर अधिक जानकारी करने के लिए आप हरिद्वार के विद्वान ज्योतिषी पंडित श्रीधर शास्त्री से उनके फोन नंबर 9557125411 और 9997509443 पर संपर्क करके पूरी जानकारी ले सकते हैं.