तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे महसूस हुआ है कि हर बात का एक मतलब होता है. यहां तक कि घास के हिलने का भी, हवा का खिड़की से आने का, और धूप का दीवार पर चढ़कर चले जाने का भी. मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ये लाइन दिल्ली के मौजूदा राजनीतिक हालात पर अरविंद केजरीवाल पर सटीक बैठता है. ग्राउंड रिपोर्ट में केजरीवाल के कुर्सी छोड़ने और आतिशी के कुर्सी पर बैठने की असली कहानी जनता के मुंह से सुन लेंगे तो पक्का विश्वास हो जाएगा कि कुछ तो बात है.
न्यूज 18 हिंदी ने कनॉट प्लेस के एलआईसी बिल्डिंग के सामने झाड़ू मार रहे चमनलाल से पूछा, कब तक झाड़ू मारोगे? जवाब में चमनलाल कहते हैं, ‘जब तक शरीर में जान है झाड़ू मारते रहेंगे.’ केजरीवाल कुर्सी छोड़ चुके हैं. आतिशी बन गई हैं सीएम? इतना सुनते हैं चमनलाल कहने लगते हैं, ‘कौन आतिशी? कहां की आतिशी? मैं तो अरविंद केजरीवाल को जानता हूं. जंतर-मंतर वाला केजरीवाल. उसके लिए झाड़ू मारा है. अच्छा आदमी है. लोग कुछ भी कहेंगे मेरे लिए बढ़िया है. बिजली-पानी फ्री कर दिया है.’
अरविंद केजरीवाल क्यों पसंद और क्यों नापसंद
चमन कहते हैं, ‘रोजाना 300, 400, 500 कभी एक रुपये भी नहीं कमाता हूं. 18 साल से चश्मा बेच रहा हूं. तुर्कमान गेट के पास घर है. अलीगढ़ का रहने वाला हूं, लेकिन दिल्ली अब रच बस गया हूं. तीन बेटियों का बाप था. अभागा हूं कि अब एक ही बची है. केजरीवाल अगर न होता तो शायद वह भी नहीं बचती. दवा फ्री, पानी फ्री, अस्पताल फ्री और बिजली फ्री. इससे ज्यादा क्या कहूं.’
बुजुर्गों को नहीं भाया तीर्थयात्रा कराना?
बारिश के बीच कनॉट प्लेस के कॉफी हाउस में लोग पहुंच रहे हैं कॉफी हॉउस अंदर-बाहर खचाखच भरा है. भीड़ में बुजुर्गों, युवा और महिलाओं की संख्या ज्यादा थी. न्यूज 18 हिंदी ने भीड़ के बीच एक टेबल के पास पहुंच कर टेबल से सटे तीन कुर्सियों पर बैठे सभी बुजुर्गों से पूछा, अरविंद केजरीवाल इस्तीफा दे दिए हैं. कैसे देख रहे हैं? तीनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे. उन तीनों में से एक बुजुर्ग कहते हैं, ‘आपको पता नहीं क्यों इस्तीफा दिया? जेल से आया है किस मुंह से जनता के बीच जाता. मुंह छुपाने के लिए इस्तीफा दे दिया.’ तभी एक बुजुर्ग कहते हैं, ‘लेकिन देखो आएगा तो केजरीवाल ही.’