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गबाड़ी की पहाड़ी पर चार दिन से डटे थे बड़े नक्सल, जवानों ने ऐसे किया सूपड़ा साफ

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अबूझमाड़ में हुई छत्तीसगढ की सबसे बड़ी मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों की इतनी बड़ी संख्या नक्सल संगठन को चौंका रही है। इस मुठभेड़ में बड़े नक्सली नेता मारे गए हैं। वो समझ ही नहीं सके कि दंतेवाड़ा की फोर्स हांदावाड़ा की ओर से तीन पाहाडिय़ों को पार कर उनको घेर लेगी। 10 किमी के दायरे में ये मुठभेड़ हुई है।

आधा दर्जन से अधिक गांव में पसरा सन्नाटा

नारायणपुर की फोर्स ने तो सिर्फ बैकअप दिया था। जवानों ने एसकेजेडसी इंचार्ज नीति जैसी थिंक टैंक को मार दिया। ये संगठन को हजम ही नहीं हो रहा है। इस मुठभेड़ के बाद माड़ के आधा दर्जन से अधिक गांव में सन्नाटा पसरा है। कई घरों में चूल्हे तक नही जले हैं। नक्सलियों के सूचना तंत्र को कुचलना ही जवानों की सबसे बड़ी जीत थी।

लगातार नक्सलियों के सुरक्षित स्थान में हो रही मुठभेड़ पर मंथन करने की सभी नक्सल नेता गबाड़ी की पहाडिय़ों में जुटे हुए थे। इस बात की भनक पुलिस के सूचना तंत्र को लगी चुकी थी। इस सूचना के आधार पर नारायणपुर और दंतेवाड़ा से ज्वाइंट ऑपरेशन लॉंच किया गया था।

लाल लड़ाके थोड़ी देर भी नहीं टिक सके फोर्स का सामने

मुठभेड़ स्थल को देखने के बाद पता लगता है कि नक्सली जवानों से एक पल भी मोर्चा नहीं ले सके। इसके पीछे बड़ी वजह है नक्सली वहां सिर्फ संगठनात्मक चर्चा करने के लिए एकत्र थे। 10 किमी के दायरे में हुई मुठभेड़ में सिर्फ नक्सली खुद को बचाने में लगे हुए थे। दंतेवाड़ा और नारायणपुर की फार्स की बनाई रणनीति के आगे वे विफल हो गए।

इस ऑपरेशन को जवानों ने अमावस की रात में इसलिए लांच किया था ताकि गांव के लोगों को पता ही नहीं चले। गांव वालों की नजरों से खुद को बचाकर हांदावाड़ा की ओर से तीन पहाडिय़ों को पार कर मोर्चा संभाला गया था। जवानों के बिछाए जाल में कंपनी नंबर छह और प्लाटून नंबर 6 के 80 प्रतिशत लड़ाके फंस गए और मारे गए।

दागे गए बीजीएल, पेड़ों पर गोलियों के निशान

जिस थुलथुली को मुठभेड़ की मुख्य जगह बताया जा रहा रहा है। वहां से दूर गबाड़ी के जंगलों में मुख्य भिड़त हुई है। इस जंगल में चार जगह मुठभेड़ के निशान मौजूद हैं। यहां दागे गए बीजीएल की गोलियों के निशान पेड़ों पर हैं। दैनिक उपयोग की सामग्री को जलाया गया है। यहां अधिकांश सामग्री महिलाओं से जुडी मिली है। एक डायरी अधजली पड़ी हुई थी, इसमें महिलाओं के सामानों का जिक्र था।

रेडी टू ईट और ओट्स के पैकेट का इस्तेमाल

नक्सलियों की थिंक टैंक नीति के साथ बड़े कैडर के 31 नक्सली मारे गए हैं। नीति का पुरुष गार्ड राजू बच निकला है। वहीं महिला गार्ड मारी गई हैं। गबाड़ी के जंगलों में कई सबूत मिल रहे हैं। यहां रेडी टू इट के पैकेट्स और ओट्स के पैकेट भी मिले हैं। बताया जा रहा है नक्सली अपने पास ओट्स इसलिए रखते हैं ताकि कभी भोजन ना मिले तो इसे खाकर पूरी एनर्जी ले सकें।

मेड इन तमिलनाडु की पिन मिली जो बम में करते हैं उपयोग

मुठभेड़ स्थल में दर्जनों मेड इन तमिलनाडु की पिन मिली है। इन पिनों का इस्तेमाल बमों और प्रेशर कुकर में करते हैं। हालांकि स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता है।ये पिन एक तरफ हुक जैसी है और दूसरी तरफ नुकीली सुई की तरह धागा डालने जैसा सांचा भी बना हुआ है।

जंगल में एक टिफिन बम को भी फोडऩे के निशान मिले हैं। इतना ही नहीं जंगल में महिलाओं के बाल भी जत्थे में पड़े थे। खून के निशान तो पूरे 10 किमी जंगल के दायरे में दिख रहे हैं।