जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की है. इनती सीटें मिल गई हैं कि वहां आसानी से सरकार बन सकती है. लेकिन इस बीच सोशल मीडिया पर तमाम तरह के दावे किए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि अब्दुल्ला परिवार के लिए बीजेपी अछूत कभी नहीं रही. फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. दो दिन पहले ही उन्होंने मोदी सरकार की तारीफ भी की है. ऐसे में हो सकता है कि जम्मू-कश्मीर में खेल पलट जाए. लेकिन क्या सच में ऐसा हो सकता है? बीजेपी और नेशनल कांफ्रेंस कितने पास कितने दूर…
नेशनल कांफ्रेंस एक ऐसी पार्टी रही है, जिसका कांग्रेस और बीजेपी दोनों से रिश्ता रहा है. कांग्रेस के साथ उनका खट्टा-मीठा नाता रहा है. कांग्रेस के समर्थन से फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में सरकार भी चलाई. लेकिन बाद में उन्होंने पाला बदल लिया. केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की लीडरशिप में सरकार बनी तो 1999 में नेशनल कांफ्रेंस बीजेपी के साथ आ गई. अटल जी ने उमर अब्दुल्ला को केंद्र सरकार में मंत्री भी बनाया. हालांकि, बाद में दोनों की राहें अलग हो गईं. फारूक अब्दुल्ला को आज भी वाजपेयी याद आते रहते हैं. गाहे-बगाहे वे वाजपेयी की तारीफ करते रहते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की भी उन्होंने कई बार तारीफ भी की है.
2 दिन पहले भी याद आए अटल
दो दिन पहले की ही बात है, जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एससीओ समिट के लिए पाकिस्तान जाने का ऐलान किया, तो फारूक अब्दुला ने इसकी जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा, यह एक अच्छा कदम है. हमें उम्मीद है कि इससे दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होंगे. दोनों देश दोस्ती के बारे में सोचेंगे. मैं जयशंकर को याद दिलाना चाहूंगा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी कहा करते थे कि ‘दोस्त बदले जा सकते हैं मगर पड़ोसी नहीं…’ सीमाएं नहीं बदली जा सकतीं. या तो हम दोस्त रहें या फिर दुश्मन बनकर रहें.
साथ आए तो क्या फायदा?
-नेशनल कांफ्रेंस और बीजेपी अगर साथ आते हैं, तो जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस को फायदा होगा. क्योंकि वहां दिल्ली की तरह उपराज्यपाल के हाथ में ज्यादातर सत्ता रहने वाली. हर चीज के लिए उन्हें एलजी के पास जाना होगा.
–मौजूदा हालात में नई राज्य सरकार काफी हद तक पॉवरलेस होगी. असल में राज्य में सुपर बॉस तो लेफ्टिनेंट गर्वनर ही होंगे. कानून व्यवस्था, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस समेत तमाम मामलों के लिए एलजी का फैसला आखिरी होगी. इससे टकराव की नौबत आ सकती है. अगर वे केंद्र के साथ रहेंगे तो उन्हें काफी सहूलियत होगी.
–दूसरा, केंद्र सरकार में भी नेशनल कांफ्रेंस को मौका मिल सकता है. फारूक अब्दुल्ला जिस कश्मीर की बात के डेवलपमेंट की बात करते हैं, उसके लिए काफी पैसों की जरूरत है. यह बजट मौजूदा केंद्र सरकार ही दे सकती है.
लेकिन क्या ऐसा संभव है, दो दिन पहले फारूक ने खुद दिया जवाब
कहते हैं राजनीति में कोई दुश्मन नहीं होता. काउंटिंग से पहले तक फारूक अब्दुल्ला बीजेपी पर तरह-तरह के आरोप लगाते रहे हैं. ऐसे में एग्जिट पोल के बाद जब फारूक अब्दुल्ला से बीजेपी के साथ अलायंस की संभावना के बारे में पूछा गया, तो फारूक अब्दुल्ला ने कहा, ‘हम बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे. चुनाव में जो वोट हमें मिले हैं, वे बीजेपी के खिलाफ हैं. आप समझते हैं कि हम उनके साथ जाएंगे?’ जो भी उनके साथ जाएगा, वो खत्म हो जाएगा. इससे साफ है कि फारूक अब्दुल्ला बीजेपी के साथ अलायंस के बारे में क्लीयर हैं. लेकिन वक्त कब बदल जाए कहा नहीं जा सकता.
महबूबा से तो अच्छे!
बीजेपी के तमाम नेताओं का मानना है कि नेशनल कांफ्रेंस पीडीपी से तो बेहतर ही है. पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती कश्मीर को भारत से अलग करने, पाकिस्तान से बात करने की बातें करती रही हैं. जो बीजेपी को कभी पसंद नहीं आती. जब बीजेपी ने उनके साथ सरकार बना ली, तो नेशनल कांफ्रेंस तो काफी उदारवादी है. फारूक अब्दुल्ला सीना ठोककर कहते हैं कि वे भारतीय हैं. वे हमेशा भारत और पाकिस्तान के बीच अच्छे रिश्तों की वकालत करते रहे हैं.