राज्य या केंद्र… इंडस्ट्रियल अल्कोहल यानी औद्योगिक शराब पर कानून बनाने के लिए किसकी चलेगी? इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आठ के मुकाबले एक के बहुमत से सुनाए गए फैसले में सात जजों वाली बेंच के फैसले को पलट दिया. सुप्रीम कोर्ट ने आठ अनुपात एक के बहुमत वाले फैसले में कहा कि औद्योगिक अल्कोहल पर कानून बनाने क लिए राज्य के अधिकार को नहीं छीना जा सकता है. इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने 27 साल पुराना फैसला पलटा.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि राज्य सरकारों के पास औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन, निर्माण और आपूर्ति को नियंत्रित करने का अधिकार है. साल 1997 में सात जजों वाली बेंच ने फैसला सुनाया था कि केंद्र सरकार के पास औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर नियामक शक्ति है. इस मामले को 2010 में नौ-जजों वाली पीठ के पास भेज दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को नौ में से आठ जजों की तरफ से फैसला लिखते हुए चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि केंद्र सरकार के पास ये अधिकार नहीं है. हालांकि, नौ-जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस बी वी नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई और उन्होंने अपना अलग फैसला सुनाया. यहां बताना है कि औद्योगिक अल्कोहल मानव उपभोग के लिए नहीं होता है.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘मादक शराब’ शब्द में शराब का उत्पादन, निर्माण और वितरण शामिल है. ऐसी शराब जो पारंपरिक रूप से नशा नहीं करती है, उसे भी मादक शराब माना जाएगा. नौ जजों की संविधान पीठ याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही थी. इससे पहले सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने राज्य सरकारों के खिलाफ फैसला सुनाया था.
संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची की प्रविष्टि 8 राज्यों को ‘नशीले शराब’ के निर्माण, कब्जे, परिवहन, खरीद और बिक्री पर कानून बनाने की शक्ति देती है. वहीं, संघ सूची की प्रविष्टि 52 और समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 में उन उद्योगों का उल्लेख है जिनका नियंत्रण “संसद द्वारा कानून द्वारा जनहित में समीचीन घोषित किया गया था”. संसद और राज्य विधानसभाएं दोनों ही समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों पर कानून बना सकती हैं, लेकिन राज्य के कानून पर केंद्र सरकार के कानून को प्राथमिकता दी जाएगी.