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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा… सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किसने क्या कहा? जानें…

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सुप्रीम कोर्ट ने आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर 1967 में दिए गए ऐतिहासिक निर्णय को पलट दिया है. इस मसले को एक नई संविधान पीठ के पास भेजा है. सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की पीठ ने इस मामले में चार-तीन के बहुमत से यह निर्णय सुनाया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ द्वारा बहुमत का फैसला लिखा गया. कोर्ट के फैसले के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों, नेताओं और आम लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.

रामपुर से समाजवादी पार्टी के सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने कहा कि सभी वर्ग के बच्चे वहां पढ़ते हैं. इस फैसले से संविधान में लोगों का विश्वास और बढ़ेगा. यह मामला विचाराधीन है. जिस तरह से कोर्ट ने एक दिशा दी है, उसमें यूनिवर्सिटी का हक भी बनता था, लेकिन यह कहीं नहीं लिखा हुआ है कि सिर्फ खास वर्ग के लिए है. सभी हिंदू मुस्लिम बच्चे वहां पढ़ते हैं. कोर्ट ने एक दिशा दिखाई है, इसमें कोई शक नहीं है. कॉन्स्टिट्यूशन पर लोगों का विश्वास और भी बढ़ेगा.

वहीं इस मामले को लेकर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सबको एक रखना और सबको बराबरी का दर्जा देने का काम करती है. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कटने और मरने की बात कही जा रही है.

कांग्रेस नेता ने कहा कि क्षेत्र और भाषा के नाम पर बांटने का काम बीजेपी करती है. जम्मू कश्मीर में राज्य का दर्जा हटाकर यूनियन टेरिटरी बना दिया गया. जम्मू कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं बढ़ रही हैं, इसका जवाब कौन देगा. सरकार जम्मू में पूरी तरीके से असफल साबित हुई है. बीजेपी की विघटनकारी नीति के चलते जम्मू कश्मीर में आतंकवाद बढ़ रहा है.

AMU पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर सपा प्रवक्ता अमीक जामेई ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत AMU को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देते हुए अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थान स्थापित और संचालित करने के अधिकार हैं. यह संविधान की जीत है.

कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने AMU को अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार माना है. कोर्ट ने इस मामले में अपना ही 1967 का फैसला बदल दिया है, जिसमें कहा गया था कि AMU अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के दर्जे का दावा नहीं कर सकती है. अन्य समुदायों को भी इस संस्थान में बराबरी का अधिकार है. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने दिया है. इस बेंच में 7 जज शामिल थे, जिनमें से 4 ने पक्ष में और 3 ने विपक्ष में फैसला सुनाया. इस फैसले को सुनाते हुए मामले को 3 जजों की रेगुलर बेंच को भेज दिया गया है. इस बेंच को यह जांच करनी है कि एएमयू की स्थापना अल्पसंख्यकों ने की थी क्या?

सीजेआई ने क्या कहा?

सीजेआई ने कहा कि अनुच्छेद 30ए के तहत किसी संस्था को अल्पसंख्यक माने जाने के मानदंड क्या हैं? किसी भी नागरिक द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान को अनुच्छेद 19(6) के तहत विनियमित किया जा सकता है. अनुच्छेद 30 के तहत अधिकार निरपेक्ष नहीं है. अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के विनियमन की अनुमति अनुच्छेद 19(6) के तहत दी गई है, बशर्ते कि यह संस्थान के अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन न करे.

सीजेआई ने कहा कि धार्मिक समुदाय कोई संस्था स्थापित कर सकता है, लेकिन उसका एडमिनिस्ट्रेशन नहीं कर सकता. एक तर्क ये भी है कि विशेष कानून के तहत जिन संस्थानों की स्थापना हो, उनको अनुच्छेद 31 के तहत कनवर्ट नहीं किया जा सकता.

क्या है इतिहास और क्या है विवाद?

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा ‘अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज’ के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के शैक्षिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना था. बाद में, साल 1920 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा मिला और इसका नाम ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ रखा गया.

एएमयू अधिनियम 1920 में साल 1951 और 1965 में हुए संशोधनों को मिली कानूनी चुनौतियों ने इस विवाद को जन्म दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 1967 में कहा कि एएमयू एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी है. लिहाजा इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता. कोर्ट के फैसले का अहम बिंदु यह था कि इसकी स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के तहत हुई है, ताकि इसकी डिग्री की सरकारी मान्यता सुनिश्चित की जा सके. अदालत ने कहा कि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यकों के प्रयासों का परिणाम तो हो सकता है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि विश्वविद्यालय की स्थापना मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने की थी.

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