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वनांचल क्षेत्र मानपुर से सैकडों की संख्या में आदिवासी अपने परंपरागत तीर कमान और कुल्हाड़ी के साथ वन अधिकार शांतिपूर्ण पदयात्रा का शंखनाद करते हुए निकल पड़े हैँ।

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अम्बागढ़ चौकी(अबतक समाचार वेब डेस्क):आदिवासियों के हक और अधिकारों का उलंघन कर भारतीय वन कानून में संशोधन के खिलाफ पेज पानी के साथ वनांचल मानपुर से सैकडों की संख्या में आदिवासी अपने परंपरागत तीर कमान और कुल्हाड़ी के साथ वन अधिकार शांतिपूर्ण पदयात्रा का शंखनाद करते हुए निकल पड़े हैँ। इस अभियान के दौरान समस्त प्रदेश के आदिवासी रायपुर में राज्यपाल से मिलकर उनके अधिकारों पर नीतिगत हमले के खिलाफ ज्ञापन सौंपेंगे ।
पदयात्रियों ने बताया कि वनाधिकार संघर्ष संमिति राजनांदगांव के नेतृत्व मेँ 11 से 18 नवम्बर तक केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार की आदिवासियों के खिलाफ बनाई जा रही जनविरोधी नीतियों के खिलाफ पदयात्रा कर पूरे प्रदेश स्तर में पदयात्रा जुलूस निकाला जा रहा है । इस आंदोलन में शामिल आदिवासी नेताओं ने विस्तार से बताया कि अंग्रेजों के जमाने से आज
तक किसी ‘भी सरकार ने वन अधिकार पर इतनी व्यापक हमला नहीं किया है जितना भाजपा
सरकार करना चाह रही है । और राज्य सरकार
इस कुचक्र मेँ चुप्पी साधते हुए साथ दे रही है । 2019 मेँ केन्द्र सरकार ने दो बड़े नीतिगत कदम उठाए हैँ जिससे 10 करोड़ से ज्यादा जंगल मेँ रहने वाले आदिवासियों के परंपरागत हक खतरे में आ गए हैँ । 10 मार्च को केन्द्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को एक पत्र द्वारा भारतीय वन कानून मेँ संशोधन करने के लिए एक प्रस्ताव भेजा था । इस प्रस्ताव के अनुसार वन विभाग को अधिकार दिया जाएगा कि वे वन रक्षा के नाम पर गोली चला सकते हैँ और अगर वे ये कहेंगे के गोली कानून के अनुसार चलाई गई है तो उनके ऊपर कोई भी आपराधिक कार्यवाही नहीं होगी (धारा 66/2) । अगर प्रस्तावित संशोधन कानून बन जाएगा तो वन विभाग के कर्मचारी किसी भी आदिवासी का अधिकार वन रक्षा के नाम पर पैसे दे कर खतम कर सकेगे । इसी तरह धारा 221 (2), 39 (बी)) के तहत वे बिना वारंट गिरफ्तार या छापे मार सकेगे, और किसी भी आदिवासी या जंगलवासी की सम्पत्ति को जब्त कर सकेगे । अगर वन विभाग किसी भी व्यक्ति पर आरोप लगाएगा और कहेगा कि उसके पास आपराधिक सामान था तो ऐसी

दशा मेँ उस व्यक्ति को खुद साबित करना पड़ेगा कि वह निर्दोष है ।

अगर यह प्रस्ताव कानून बन जाएगा तो, कानून का राज जंगलों से खत्म हो जाएगा। । रेंजर या डीएफओ के कहने पर किसी को भी गिरफ्तार किया जा सकेगा या गोली “भी मारी जा सकेगी। आदिवासियों ने चर्चा के दौरान आशंका व्यक्त किया है कि इस संशोधन से जंगलवासियों को हटाकर वन क्षेत्र निजी कंपनियों को अपार मुनाफा कमाने के लिए सौपे जाने की योजना है। जो किसी ना किसी रूप मेँ नजर आ रही है। 2017 से फरवरी 2019 तक केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट मेँ वन अधिकार कानून के खिलाफ चल रही याचिका मेँ खामोश रही, जिससे कोर्ट मेँ याचिकाकर्ताओं के झूठ का जवाब देने के लिए कोई भी आवाज नहीं उठाई गई, इसकी वजह से विगत 13 फरवरी को कोर्ट ने लाखों परिवारों की बेदखल करने का आदेश दिया मगर देश भर मेँ आदोलन के चलते बाद में सरकार कोर्ट मेँ

जाने के लिए मजबूर हुई, बावजूद न्यायपीठ से यह मांग नहीं की कि उक्त आदेश वापस लिया जाए । सरकार ने कोर्ट से सिर्फ ये मांगा कि आदेश
को कुछ समय के लिए स्थगित किया जावे ।

आज तक आदेश स्थगित अथवा पेडिंग मेँ है और लटकती तलवार की तरह देश के आदिवासियों के सर के ऊपर लटक रही है । 12 सितम्बर को फिर से इस याचिका मेँ सुनवाई हुई थी और केन्द्र सरकार फिर से इस मामले के समाधान के दौरान गैर हाजिर रही । गौरतलब यह कि किसी भी प्रदेश मेँ आज पर्यंत वन अधिकार कानून का सही क्वियान्वयन नहीं हुआ है । इस पदायात्रा में अगुवाई कर रहे सुरजू टेकाम ने कहा कि “भाजपा सरकार को इस निंदनीय कदमों मेँ सफलता मिल जाएगी तो हमारे कोई भी अधिकार नहीं बचेंगे । इसके खिलाफ देश भर के लोग सड़को पर उतरने वाले हैँ। आम जन को इस समय अपने हक के लिए लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण संघर्ष की जरूरत पर उन्होंने जोर दिया । और उन्होंने इस आंदोलन मेँ सर्वसमाज से 18 नवंबर को अपने हक और अधिकर के संघर्ष मेँ भागीदारी बनने के लिए अपील भी की है ।
वनाधिकार संघर्ष संमिति राजनांदगांव के बैनर तले मानपुर से रायपुर तक 11 से 18 नवम्बर तक वन स्वराज पदयात्रा की शुरूआत हो गई है । बड़ी संख्या में नगरवासी आदिवासियों के इस संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर पदयात्रियों के लिए नास्ता तथा ‘भोजन के साथ उनके आंदोलन को सहयोग कर रहे हैँ । यात्रा रायपुर पहुंच कर महामहिम राज्यपाल से मुलाकत कर ज्ञापन सौंपेगी एवं वन स्वराज रैली बूढा तालाब रायपुर मेँ सम्मिलित होगी। इस हेतु राजभवन एवं प्रशासन से संवाद जारी है ।

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