गरमी की शुरुआत होते ही चिंता होती है कि अब पानी की कमी परेशान करेगी. कई शहरों में पानी को लेकर होने वाले झगड़े आदि की खबरें भी सुर्खियां बनेंगी. गरमी में जलसंकट गहराने पर कुछ दिनों के लिए तो इस मुद्दे पर हम ध्यान देते हैं, लेकिन फिर यह हमारी चिंता में शामिल नहीं होता, लेकिन परिस्थितियां भयावह हैं. दुनिया चिंता जता रही है और भारत को भी चेत जाना होगा. वरना कहानी होगी कि एक कौवा प्यासा था और वह प्यासा ही मर गया.
दुनिया में जल के प्रति जागरूकता लाने के लिए हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है. इस बार हमें कोशिश करनी होगी कि जल संरक्षण की दिशा में हर परिवार और हर नागरिक को जोड़ा जाए. याद रखिए, पानी का सही प्रबंधन करना और करवाना हम सबकी जिम्मेदारी है.
आप और हम भयंकर जलसंकट से गुजर रहे हैं. आपको ये बात आसानी से हजम भले ही न हो लेकिन यह सच है. कई वैश्विक रिपोट्र्स इस बात की पुरजोर वकालत कर रही है. वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट ने भी इसी बारे में चेताया है. साथ ही आश्चर्य जताया है कि कोई भी इस बारे में बात तक नहीं कर रहा है. दरअसल जिनको जरूरत का पानी, अपने घर में मिल रहा है वो इस गंभीर संकट से अंजान बने हुए हैं. आम जनता को पानी की अहमियत नहीं है और सरकारें भी संजीदा नहीं है.
घोर जल संकट का अनुभव जिन लोगों को है, वे तो इस बात से सहमत होंगे कि प्रयास सभी को मिलकर करने होंगे. याद कीजिए पिछले साल चेन्नई में आया जल संकट. चेन्नई सूख गयी थी] कई लोगों ने दूसरे शहरों में शरण ली थी. स्थानीय लोगों ने इतिहास का सबसे कठिन समय गुजारा था. आसपास से मदद पहुंचाई गई और शहर को पटरी में आने में समय लगा. हालांकि इस साल स्थिति बेहतर है. बड़ी कंपनियों के सीएसआर फंड से 70 से अधिक जल संरक्षण प्रोजेक्ट्स चलाए गए हैं. इनकी मदद से चेन्नई शहर में पानी की भरपाई की जा रही है और म्यूनिसिपिल कारपोरेशन ने जल वितरण भी सुधारा है. इनसे बाकी शहरों को सबक लेने होंगे. एक चेन्नई में स्थितियां नियंत्रण में होने से देश का संकट दूर नहीं होगा.
भारत सरकार की भू विज्ञान मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट हो या इंटरनेशनल सेंटर फाॅर इंटीग्रेटेड मांउटेन डेवेलपमेंट (आईसीआईएमओडी) की रिपोर्ट. दोनों में पानी को लेकर गहन चिंता जताई गई है. आईसीआईएमओडी की रिपोर्ट के अनुसार हिंदु कुश हिमालय क्षेत्र के शहरों में जल संकट गहरा रहा है. शहरी बसाहट की योजना और जलवायु परिवर्तन के कारण हजारों लोग परेशान हैं. इसमें जल की उपलब्धता और जल प्रदाय योजना के आपसी तालमेल को समझाया गया है. वहीं तेजी से बढ़ी शहरी बसाहट में पानी की मांग आदि को जलसंकट का बड़ा कारण बताया गया है.
वहीं, दुनिया की बात करें तो वाॅटर रिस्क एटलस में 189 देशों और उनके उप क्षेत्रों में जलसंकट, भूजल और पानी की स्थिति कोलेकर गहन अध्ययन के प्रकाशित परिणाम चौंका देने वाले हैं. इसमें कहा गया है कि भारत सहित दुनिया के 17 देशों में जलसंकट “शून्य दिवस” के नजदीक पहुंच रहा है. इसमें भारत की 13वीं स्थिति बताई गई है और संकट को अति भयंकर श्रेणी का कहा गया है. यह चिंता इसलिए भी अति भयंकर श्रेणी की है क्योंकि भारत में बहुत बड़ी जनसंख्या है.
आईआईटी मुंबई ने किया खुलासा
आईआईटी मुंबई की एक स्टडी के अनुसार पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली में जलसंकट सबसे अधिक प्रभावी रहेगा. वहीं जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड और केरल में संकट की आहट हो चुकी है. मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के कुछ हिस्सों में भी जलसंकट से लोग प्रभावित हो रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में साफ पीने लायक पानी को लेकर गंभीर संकट है. हालांकि इस बारे में लोगों में जागरूकता की कमी है और मीडिया-सरकारें भी अपनी जिम्मेदारी से पीछे हैं. वर्ल्ड रिपोर्ट्स के अलावा यदि भारत में हुए अध्ययनों की बात करें तो वहां भी इस चिंता को रेखांकित किया गया है.
जहरीली धरती और जहरीला पानी
उत्तर भारत की बात करें तो भूजल के गिरते स्तर ने चिंता बढ़ा दी है. यहां का जल संकट गंभीर संकेत दे रहा है. मैदानी इलाकों के साथ ही पंजाब-हरियाणा में चिनाब, झेलम नदियों के किनारें हों या उत्तराखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में गंगा-यमुना नदियों के आसपास का क्षेत्र सभी जगह भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा है. पंजाब में खेतों में कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के जहरीले तत्वों के कारण धरती बंजर हो गई और कई स्थानों पर भूजल रसातल पर जा पहुंचा है. पानी और धरती के जहरीले हो जाने के कारण वहां उगा अनाज कई बीमारियों जैसे कैंसर और त्वचा संबंधी रोगों का कारण बन रहा है. कई किसानों ने अपने खेतों को बेच कर दूसरे राज्यों की ओर रूख कर दिया है.
हर आदमी को जल प्रबंधन सिखाना होगा
साफ और पीने लायक पानी की कमी और गंदे, जहरीले पानी की मात्रा में बढ़ोतरी पर तुरंत काम करने नीति- नियमों को लागू करने और बड़ा जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. जानकार कह रहे हैं कि आम आदमी को जरूरत के पानी का समुचित प्रबंधन करना सिखाना होगा. भले ही इसके लिए स्कूल, कालेजों में कक्षाएं ही क्यों न लगाना पड़े ? जल के भंडार चाहे वे कुएं हों, तालाब हों या फिर पोखर, सरोवर, कुंड आदि सभी के जल प्रबंधन पर ध्यान देना होगा.
भारत के पास दुनिया का मात्र 4 प्रतिशत ताजा पानी है, लेकिन उसकी जनसंख्या दुनिया की 18 प्रतिशत हो गई है. इस कारण उसे अतिभयंकर जल संकट की श्रेणी में रखा गया है. जल प्रबंधन में मानवीय लापरवाही, जागरूकता की कमी, मानव निर्मित कचरे और इन सब पर सरकार की अनदेखी के कारण जलसंकट दिनोंदिन गहरा रहा है. आंकड़ों की मानें तो विकासशील होने के नाते भारत में जल की मांग आज की तुलना में 2025 तक 24फीसदी और 2050 तक 74 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी.
गंगा सफाई जैसे सरकारी प्रयास
सबसे अधिक कृषि उत्पाद पैदा करने वाले देश के रूप भारत सबसे अधिक सिंचाई करने वालों में शामिल है, लेकिन वह अपने खेतों में जल प्रबंधन नहीं कर पाता. अमूमन यहां 80 फीसदी सिंचाई भूजल से होती है, इसके कारण जलसंकट बढ़ा है. सिंचाई के तौर-तरीकों को बदल कर पानी का उचित प्रबंधन किया जा सकता है. भारत में औद्योगिक और घरेलू उपयोग के लिए भी बहुत बड़ी मात्रा में पानी की जरूरत होती है, यह साफ पानी, कुछ ही घंटों में गंदा और जहरीला होकर वापस लौट आता है. नदी, नहर और झील आदि में मिल रहे इस जहरीले पानी के कारण कई प्रकार की दिक्कतें सामने आ रही हैं. भारत में नदियों, जलाशयों की सफाई के लिए न तो लोगों में जागरूकता है और न ही सरकारों में इच्छाशक्ति. देश की पवित्रतम माने जाने वाली गंगा नदी का पानी अब पीने लायक नहीं रहा. कई स्थानों पर इसका पानी जहरीला श्रेणी में रखा जा सकता है. जबकि सरकार ने 1984 में गंगा सफाई-शुद्धिकरण के लिए एक्शन प्लान बनाया गया था, लेकिन उससे कोई अहम सफलता नहीं मिली. कई स्थानों पर अन्य नदियों में भी जहरीले तत्वों की अधिकता के कारण पानी जहरीला माना जा सकता है. औद्योगिक रासायनिक कचरे के निपटान और शहरों की गंदगी को सीधे नदियों, जलाशयों में मिलने से रोकने को सच्चाई में बदलना होगा.
18.7 प्रतिशत ग्रामीण घरों को ही उपचारित जल
भारत में आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 18.7 प्रतिशत घरों तक पाइप लाइन के द्वारा पीने का पानी पहुंच रहा है, जबकि बाकी लोग बिना उपचारित किया हुआ सतही जल या भूजल पर ही निर्भर हैं. आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी ग्रामीण भारत आज भी इतना पिछड़ा हुआ है. गांवों में पाइप लाइन के जरिए घरों तक पीने का पानी पहुंचाने के लिए बनी नल-जल योजनाओं की गति बेहद सुस्त है.
दिल्ली, बेंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद सहित 21 शहरों में ”शून्य” भूजल : नीति आयोग
भारत सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग की काॅम्पोसाइट वाॅटर मैनेजमेंट इंडेक्स की पिछले साल जारी रिपोर्ट में भी कहा गया था कि 2020 तक भारत के दिल्ली, बेंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद सहित 21 शहरों में भूजल की स्थिति शून्य तक पहुंच जाएगी. इसी रिपोर्ट में कहा गया था कि हर साल साफ जल न मिलने के कारण होने वाली बीमारियों से भारत में करीब दो लाख लोगों की मौत हो जाती है. पीने के पानी को लेकर भारत में करीब 60 करोड़ लोग जलसंकट से पीड़ित हैं.