- वाह! क्या हेयर स्टाइल है, बिल्कुल एपीजे अब्दुल कलाम जैसी।
- उड़ाले बाबूलाल, मजाक उड़ा ले। जैसे तुम कुछ जानते ही नहीं। लॉकडाऊन में शहर के सभी हेयर कटिंग सैलून बंद हैं। कल पड़ोसी ने दाढ़ी बढ़ी देख कहा था-देवदास क्यों बने हो भाई? आज तुमने बड़े बालों पर कमेंट कर दिया, चंपक ने कहा। चंपक तेरे चेहरे पर उदासी छाई है, यह ठीक नहीं है। कहते हैं पृथ्वी पर कहीं कोई नर्क है तो वह व्यक्ति के दिल में है। ऐसा ही समझ ले बाबूलाल। देख रहा है न, समय ठहर सा गया है। सन्नाटा पसरा है। हर कोई घरों में है। पूरा परिवार जैसे नजरबंद है। लूडो, कैरम खेल बोर हो गए। हमेशा घर के बाहर रहने वाला आदमी घरों में घुसा पड़ा है। औरतें सुबह से शाम गृह कार्य करके पस्त हो गई हैं। कामवालियां आती नहीं। किराने की उधारी बंद हो गई है। बीमार पड़े, दांत दुखे, आंख नाक-कान दुखे तो डॉक्टर मिलते नहीं। फिर वे सरकारी हो या प्राईवेट। एक कोरोना का खौफ, दूसरा पुलिसिया डर, दोनों ही समानांतर चल रहे हैं। धैर्य-धैर्य दोस्तों। धैर्य भी आशा रखने की कला है। यह विद्वता का एक अविभाज्य घटक है, शहरवासी ने कहा। तमसो मा ज्योतिर्गमय याने जिसके दूसरे मायने हैं- ‘दीया जलाओ, कोरोना भगावो’। नरेंद्र भाई का दिया यह मंत्र जरूर कामयाब होगा, देखा नहीं नरेंद्र भाई की एक आवाज में कितना चमत्कार है। शहर 9 मिनट अंधेरे में रहा। किसी ने छत-बालकनी पर दिया जलाया, किसी ने कैंडल तो किसी ने मोबाईल की फ्लैश लाइट जलाई। तो क्या कोरोना भाग गया? चंपक ने पूछा। भागा नहीं तो भागेगा चंपक। बाबूलाल ने बताया कि एक ज्योतिष के अनुसार गर्दिश में रहे सितारों को कमजोर करने देशभर में दिया जलाया गया। 14 अप्रैल तक लाकडाउन भी इसलिए रखा है कि 15 अप्रैल को सूर्यदेव गोचर में मेष राशि यानी अपनी उच्च राशि में प्रवेश करेंगे और इससे भी कोरोना खत्म होगा, ऐसा प्रेडिक्शन है।
- तो फिर बाबूलाल उस ज्योतिष से यह भी पूछो ना- देश में भ्रष्टाचार कब खत्म होगा? गरीबी कब दूर होगी? बेकारी महंगाई से कब पीछा छूटेगा? उद्योग धंधे कब चमकेंगे? पॉलिटिशियन कब भरोसेमंद बनेंगे? तारीख पर तारीख वाली अदालतों से न्याय के इच्छुक लोगों को राहत कब मिलेगी? अधिकारी-कर्मचारी कर्तव्यों का पालन कब करेंगे? लोभ-लालच में आकर वोट देना कब बंद होगा? बस-बस शहरवासी, सपना अच्छा बयां कर देते हो। नरेंद्र मोदी प्रयास कर रहे हैं, अच्छे दिन लाने का। उन्होंने जनता से वादा किया था। फूल मेजारिटी वाली भाजपा सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। बहुत ताकतवर हैं। विपक्ष को घुटने टेकने मजबूर भी कर देते हैं। आलोचकों के दांतों में पसीना कैसे लाया जाता है, इसमें भी एक्सपर्ट हैं। कर्तव्य परायण, कर्तव्यनिष्ठा को ईश्वर पूजा का श्रेष्ठ स्वरूप मानते नरेंद्र भाई राष्ट्र और जन की सेवा कर रहे हैं। वैसे चंपक तुम क्या गुनगुना रहे हो ? जरा जोर से गाओ ना, तो सुनो मित्र-
- जाएं तो जाएं कहां…
- समझेगा कौन यहां…
- दर्द भरे दिल की जुबां…
- जाएं तो जाएं कहां…
- प्रेस और प्रशासन
- वो देखो पत्थरमार इधर ही आ रहा है। पत्थरमार…क्या चंपक तुम भी सम्मानित पत्रकार को पत्थरमार कह रहे हो। अरे भाई, उसके हमारे बीच ऐसे ही मजेदार गुफ्तगू होती है। पत्रकार को सीरियस और टेंशन में देख चंपक ने पूछ ही लिया-क्या बात है भाई, आज कुछ उखड़े हुए लग रहे हो? कुछ नहीं यार, मोदी ने, भूपेश ने और कलेक्टर ने भी समाचार संकलन के लिए मीडिया वालों पर बाहर निकलने कोई रिस्टिक्शन नहीं लगाया, किंतु ये खाकी वर्दी वाले किसी का हुक्म नहीं मानते। केवल अपने साहब का आदेश मानते हैं।
- अरे भाई, ऐसा होता है। साहब नए हैं। कुछ सख्ती करना भी जरूरी होता है, किंतु गधे-घोड़े में फर्क तो करना ही चाहिए। वैसे यह भी साफ है, कार्यपालिका से अखबारों और पत्रकारों का निरंतर संबंध रहता है। देश में समाचारों का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत सरकार ही होती है। खासकर, जिला स्तर पर कलेक्टर और एसपी को अखबारों से ही जिला स्तर पर इन दोनों से ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाचार मिलते हैं, इसलिए उनके साथ संपर्क बनाए रखना भी जरूरी होता है। अनुभवी प्रशासक और अनुभवी पत्रकार दोनों ही इस बात को जानते हैं और एक दूसरे की कठिनाई को समझते हैं। फिलहाल तो बस इतना ही। सरकार, प्रशासन और प्रेस के बीच की खाई भयावह परिणाम इतिहास में दर्ज है। सत्य यह भी है कि प्रेस और प्रशासन का संबंध चोली-दामन जैसा होता है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और जनहित को लक्ष्य में रख कर ही अपना फर्ज निभाते हैं।
- कोरोना जंग में संस्थाओं व दानवीरों की भागीदारी सराहनीय
- कोरोना को परास्त करने जिस इच्छाशक्ति व सेवा भावना की जरूरत है, उसके विभिन्न क्षेत्रों में दर्शन हो रहे हैं। शहर की विभिन्न सामाजिक सेवाभावी संस्थाओं एवं निजी क्षेत्रों के भी दानवीरों ने नगद, चेक व खाद्य सामग्रियों को प्रदाय कर आपदा संकट को समझा। सकल जैन समाज, सिंधी समाज, लोहाणा समाज, अग्रवाल समाज, युगांतर, उदयाचल आदि अनेक सेवाभावी संस्थाओं के अलावा व्यक्तिगत रूप से यथाशक्ति दान राशि, जरूरी खाद्य सामग्रियां प्रदाय कर संस्कारधानी का गौरव बढ़ाया है।
- स्थानीय मीडिया जगत जागरूक रहा है। ऐसे आपदा संकट में जोखिम को बलाए ताक पर रख वह अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित है। प्रतिकूल परिस्थितियों में लोगों को कोरोना से बचाने, लाचार लोगों के ठहरने व भोजन आदि की व्यवस्था में जुटा प्रशासन कोविड केयर फंड में दान देने दानवीरों से अपील भी कर रहा है। इतने लंबा लॉक डाउन में आम लोगों को कहीं उनकी जरूरतों व आर्थिक कठिनाईयों के मद्देनजर बाहर निकलने मजबूर भी करता है। ऐसे समय संवेदना की जरूरत होती है। समस्याग्रस्त जनता अपने जनप्रतिनिधियों से भी समाधान पाने उम्मीदें करती हैं। समाधान वस्तुत: प्रशासन के पास ही होता है। ऐसे विकट समय में विधायिका और कार्यपालिका के बीच संवाद भी जनहित में जरूरी है।
- दीये जले और नहीं भी जले, किन्तु पटाखे क्यों फूटे ?
- किसी फिलॉस्फर ने कहा है- प्रत्येक दिन को अपनी श्रेष्ठ कृति समझो और कल के दिन को तो खास मैंने यादगार सूची में रख दिया है, चंपक बहुत खुश होकर बोला। अरे भाई ऐसा क्या था कल के दिन में? कल 5 तारीख थी और नरेंद्र भाई के कहे को मैं पत्थर की लकीर मानता हूं। कल रात 8.30 बजे से मैं 9 बजने की राह देख रहा था और दीयेे बातियों, तेल, माचिस को पास में ही रखा था। 9 बजते ही लाइट ऑफ कर दीये जलाए थे। ऐसा कर ‘हम एक हैंं’ का प्रतीकात्मक संदेश मोदी जी को दे दिया।
- तूने पवित्र मन से दीए जलाए, लेकिन कईयों का मन पवित्र नहीं था। किसी की आंखों में न खटके इस कारण अपवित्र मन से दीये जलाए। इस कारण उनके कर्म भी अपवित्र हुए। गैर भाजपाईयों ने तो दीये ही नहीं जलाए। बाबूलाल कुछ और कहता उसके पहले ही शहरवासी ने कहा- कुछ लोगों ने दिवाली मान पटाखे भी फोड़ डाले। इसके लिए वे घर के बाहर भी निकले होंगे। नरेंद्र भाई ने ऐसा कुछ करने के लिए तो नहीं कहा था। कोरोना ने इधर कहर बरपाया है, देश-विदेशों में मातम छाया है। ऐसे में पटाखे फोडऩा, ये क्या बात हुई? देखो शहरवासी हमारे इंडिया में वैराइटीज बहुत हैं। वह बात तो सुनी है ना, पीने वालों को बहाना चाहिए। फिर मौका खुशी का हो या गम का, पीने वालों को अवसर की तलाश ही रहती है। ऐसा ही कुछ समझ कईयों ने पटाखे फोड़ डाले।
- चाइना ने अप्रैल फूल बनाया
- एक अप्रैल याने अप्रैल फूल क्या कोरा ही चला गया बाबूलाल? कोरोना के भय से घरों में कैद लोग तो वैसे ही सीरियस हैं, फिर वे हंसी मजाक तो कर भी नहीं सकते। लगता है कुछ ऐसा ही हुआ है। इंडिया में तो वाकई अप्रैल फूल छूमंतर रहा, किंतु इंटरनेशनल लेवल पर अप्रैल फूल हावी रहा। चाइना ने अप्रैल फूल बनाने की स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग किया। उसके लिए एक अप्रैल ही फूल बनाने का दिवस नहीं है। वह अभी तक दुनिया के कई देशों को अप्रैल के पहले ही फूल बनाने में कामयाब रहा। कोरोना वायरस का जन्म चाइना के वुहान में हुआ और वहां से दुनिया के अनेक देशों में फैल गया। अब इसी चाइना ने कोरोना का इलाज भी पहले खोजा और उसको काबू में भी कर लिया। वुहान के बाजार खुल गए और सब पहले जैसा हो गया। उधर ट्रंप भी फूल बन गए। वैसे तो कई देश ऐसे हैं, जहां सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक, आप जब चाहें तब अप्रैल फूल बना सकते हैं। उनमें ‘फूल’ बनाने की कोई समय-सीमा नहीं रहती। वैसे ऐसे देशों में भारत शामिल नहीं है, क्योंकि यहां समय के बीच भेदभाव नहीं होता। केवल पहली अप्रैल को ही नहीं, पूरे जीवन के दौरान किसी न किसी को या तो मूर्ख बनाते रहते हैं या फिर हम किसी को मूर्ख बनाने का चांस देते रहते हैं। मूर्खों की सहनशक्ति पर सब आधार रहता है।
- चार लाइनें-
- कुछ तो फूल खिलाए हमने
- और कुछ फूल खिलाने हैं,
- मुश्किल है बाग में अब तक
- कांटे कई पुराने हैं।
- – दीपक बुद्धदेव