Home छत्तीसगढ़ केन्द्र और राज्यों की असली कसौटी आगामी दिनों में होगी

केन्द्र और राज्यों की असली कसौटी आगामी दिनों में होगी

49
0

प्रधानमंत्री मोदी ने समझा है कि कोरोना से देश को बहुत नुकसान पहंचा है। इसलिए घरेलु उत्पादन के कुल दस प्रतिशत याने बीस लाख करोड़ रूपयों के पैकेज की घोषणा की है। इस पैकेज में लघु उद्योग के मालिकों, श्रमिकों, गरीबों, खोमचे, सब्जी-फलादि घुम-घुम कर बेचने वालों को शामिल किया गया है, उन्हें सरकारी सहायता मिलेगी। श्रमिकों को फिर से रोजगार मिलेगा या नहीं? इस बाबत कोई खुलासा नहीं हुआ है। स्थानीय वस्तुओं की खरीदी-बिक्री को प्रोत्साहित करने के लिए प्रधानमंत्री ने ‘‘लोकल को ग्लोबल’’ का नारा दिया है। उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं को ही अपनाने पर जोर दिया है। स्वदेशी उत्पादन व उसके उपभोग से ही देश का अर्थतंत्र मजबूत करने की योजना है। प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में देशवासियों को आत्मनिर्भर होने पर जोर दिया है।
केन्द्र सरकार जानती है कि लोगों को अब कोरोना के साथ ही जीना होगा। फलस्वरूप, राष्ट्र व्यापी सख्त लाकडाउन के चलते केन्द्र सरकार ने सार्वजनिक परिवहन शुरू करने का निर्णय लिया है। अब यात्री ट्रेन वापस पटरी पर दौडऩे लगी है। सरकार का यह निर्णय स्वागतेय है। उल्लेखनीय कि पिछले 49 दिनों से देश में आर्थिक और व्यवसायिक गतिविधियां सम्पूर्ण रूप से ठप है। जिसका नकारात्मक परिणाम रोजाना-कमाने व खाने वाले लोगों व उनके परिवारों पर देखने को मिला है। लाकडाउन के चलते येे ही सारी आर्थिक गतिविधियां बंद रहती है तो छोटे, मध्यम व नौकरीपेशा वर्ग पर व्यापाक असर होगा। यह वर्ग आर्थिक खाई में गिरेगा तो वह स्वाभाविक रूप से सडक़ों पर उतरेगा और अराजकता का सर्जन होगा। इसी कारण, सरकार ने भलिभांति इसे समझने के बाद ही कोरोना से बचने के नियमों का सख्तीपूर्वक पालन करने के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने के प्रयास किए हैं। भारत जैसे विकासशील देश के अर्थतंत्र को लम्बे समय तक लाकडाउन अधीन नहीं रखा जा सकता। किन्तु, कोरोना की वास्तविकता को भी नकारा नहीं जा सकता। नि:संदेह भारत कोरोना वाइरस के संक्रमण की गति को धीमी करने में सफल हुआ है। यह भी सर्वविदीत है कि कोरोना से बचाव करने लाकडाउन का विकल्प नहीं है। अब तो 49 दिनों में लोगों में कोरोना बाबत जानजागृति भी आ गई है। लोगों से अपेक्षा तो कर ही सकते हैं कि सचेत व सावधान रहकर अपना जीवन व्यवहार व कामकाज को आगे बढ़ायेंगे।
यद्यपि, आगामी दिनों में लाकडाउन को शिथिल किया जाएगा तब विभिन्न अनेक कदमों को लेकर राज्यों-राज्यों के मध्य विवाद उत्पन्न होगा। कई राज्यों ने आर्थिक गतिविधियों के लिए छूट देनें की मांग की है। अनेक राज्यों ने ट्रेनों को शुरू करने का विरोध किया है। राज्यों को स्थानीय परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता है। किन्तु, राज्यों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि बहुत सी गतिविधियां अंतर्राज्यीय हेराफेरी पर निर्भर करती है। इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए की हर समय किसी भी समस्या के निराकरण के लिए केन्द्र की सूचना पर आधार रखा जाता है। होता यह भी है कि प्रत्येक बात को लेकर राजनैतिक दलों में रस्साखींच जैसी स्पर्धा होती है और उसे मुद्दा बना कर आमने-सामने हो जाते हैं। आने वाले दिनों में लाकडाउन को हलके से लेंगे तो कोरोना को फैलने से रोकना कठिन होगा। हर मरतबे केन्द्र की दखल भी अच्छी बात नहीं है। अब बड़े पैमाने पर गांवों के लोग शहरों में पहुंच रहे हैं। उन्हें स्वास्थ्य सुविधाए उपलब्ध कराना यह राज्य सरकारों का प्रथम दायित्व होना चाहिए। उन्हें रोजगार देना भी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
केन्द्र और राज्य सरकारों की असली कसौटी भी आगामी दिनों में होगी। कोरोना महामारी और आर्थिक गतिविधियों के बीच सामंजस्य बिठालने के मोर्चे पर भी सफल होना होगा। कोरोना पर ब्रेक भी लगे और आर्थिक मोर्चे पर प्रगति भी हो, यह शासन व प्रशासन के कौशल पर निर्भर कटेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here