आज आदमी की स्थिति बहुत दुविधाजनक है मित्र। घर में दरवाजे हैं, किंतु उसमें से वह बाहर नहीं जा सकता और न ही कोई उसमें से भीतर आ सकता है। याने कि द्वार और दीवाल दोनों की व्याख्या समान हो गई है, बाबूलाल ने कहा। हां मित्र, ठीक कहते हो, ऐसी स्थिति तो आदिमानव ने भी कभी नहीं देखी थी। जंगलों में गुफा में रहने वाला आदमी भी जंगल में शिकार करने के लिए बाहर जाने के लिए स्वतंत्र है। हथकड़ी बगैर का बंधन आज के आदमी का नसीब है डियर, चंपक ने भी इसमें अपना सुर मिलाया।
शहरवासी- सुनो मित्रों, भारतीय संस्कृति बहुत पहले से ही वैदिक काल से मानती रही है कि केवल अपने कल्याण में ही अपना कल्याण नहीं है, परंतु सभी के कल्याण में ही अपना कल्याण है। इसलिए सभी के कल्याण के लिए ही ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। अगर सामथ्र्य हो तो सभी के कल्याण के लिए समुचित व्यवस्था करनी चाहिए। किंतु इतनी सुगम-सरल सीधी-साधी बात भी लोगों को समझ में नहीं आती। वैसे मित्रों अब लोगों को समझ में आ गया है कि सभी निरोगी रहेंगे तभी मैं भी निरोगी रहूंगा। अगर अन्य लोग रोगग्रस्त होंगे याने कि कोरोनाग्रस्त होंगे तो आप भी उस दशा में आ जाएंगे।
किंतु, अभी भी मनुष्य स्वयं सर्वकल्याण की प्रार्थना नहीं करता। शुक्र है, सरकार और उनके अफसर और उन अफसरों का अमला, सभी के हितों के लिए काम कर रहा है। किंतु जनता भी जब तक ‘‘बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय’’ की ओर गति नहीं करेगी, तब तक वह हित और उस सुख की अनुभूति की कैसे करेगी?
मजबूर मजदूरों की ट्रेजेडी
वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती संवेदनशील बने जोन बाघनदी बॉर्डर पर पहुंचे हजारों मजदूरों की भूख मिटाने की है। जिला प्रशासन पूरी शक्ति के साथ पीपीई किट से मजदूरों की सुरक्षा और वाहनों का इंतजाम कर उन्हें गंतव्य स्थान में पहुंचाने का काम कर रहा है। मजदूरों को कोई यह समझा सके कि सहन करो और संघर्षरत रहो, धीरे-धीरे यह पीड़ा तुम्हारे हित में बदल जाएगी। राजनीतिज्ञों को भी समझना होगा कि यह समय राजनीति करने का नहीं है। यह समय पीडि़तों की पीड़ा दूर कर सेवा करने का है। गरीबों के लिए अच्छी व्यवस्था, यह संस्कार की सच्ची परीक्षा है। सम्यक दृष्टि रख सुख-दुख का ज्ञान, दुख निरोध का ज्ञान और दुख निरोधगामी मार्ग के ज्ञान के साथ किया गया कर्म सफल होता है। कसौटी काल में उक्त सम्यक दृष्टि रख सेवा करने की जरूरत है। यहां जिला प्रशासन को समाजसेवी संस्थाओं को भागीदार बना काम करने प्रेरित करना होगा।
किसी ने कहा है-
पहले वह आप पर ध्यान नहीं देंगे,
फिर वे आपकी आलोचना करेंगे,
फिर वह आप से लड़ेंगे,
और आप जीत जायेंगे।।
स्थानीय लोकतंत्र की पाठशाला में प्रभारी मंत्री हेड मास्टर होता है
पंचतंत्र की एक कथा प्रसिद्ध है- भूखमरी और बेकारी से बुरी तरह तंग आ चुका एक आदमी मर जाने की सोचता है। आत्महत्या करने की हिम्मत नहीं है। वह जंगल में जाकर कोई हिंसक प्राणी का शिकार बनकर अपनी ईह लीला खत्म करने का सोच कर जंगल पहुंचा। दोपहर के समय वनराज सिंह एक वृक्ष के नीचे आराम फरमा रहा था। वह दुखी व हताश आदमी सिंह के सामने खड़ा हो गया। थोड़ी आवाज कर सिंह का ध्यान अपनी ओर खींचने का प्रयत्न किया, किंतु सिंह का पेट भरा हुआ था और वह आराम में था। उसने उस आदमी को देखा भी नहीं। फिर उस आदमी ने उसे पत्थर मारा। अपने आराम में खलल पहुंचने से क्रोधित हुआ वह सिंह उस आदमी पर हमला करने तत्पर हुआ। तभी उस वृक्ष पर से एक आवाज आई- वनराज आप जंगल के राजा हो और यह आदमी भूखमरी से परेशान मरने के लिए आया है। आपके पास रखी पोटली में स्वर्ण मुद्रा है, जो आपके काम की नहीं है, वह इस आदमी को दे दो। सिंह ने उस आवाज पर से स्वर्ण मुद्रा की पोटली उस आदमी को दे दी। उस आदमी का जीवन बदल गया। कुछ माह बाद फिर उसे वह सिंह याद आया। फिर वह जंगल में गया। पहले जैसी ही हरकत की। इस मर्तबे सिंह ने तिरछी आंखें करके उस व्यक्ति से कहा- आज तू यहां से चलता बन। वृक्ष पर उस दिन सलाहकार ‘हंस’ था, आज ‘कौवा’ है।
इस पंचतंत्र की कहानी का संदेश केवल इतना ही है कि सत्ता के सर्वोच्च स्थान पर जो बैठा हो, उसे गंभीर परिस्थिति के मद्देनजर सलाह, मार्गदर्शन बाबत में सक्रिय रहकर सजग रहना चाहिए। हमारे जिले की इसे विडंबना ही कहेंगे कि प्रभारी मंत्री अर्थात पालक मंत्री, गार्जियन मंत्री मोहम्मद अकबर ने 3-3 लाकडाऊनों के बीतने तक जिलेवासियों की कोई सुध नहीं ली है। स्थानीय शासन में प्रभारी मंत्री की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। सरकार की सत्ता का प्रतिनिधित्व स्थानीय प्रशासन में संकट के समय अति आवश्यक हो जाता है।
राजनांदगांव जिले के प्रभारी मंत्री का चयन जब सरकार ने किया है और अपने अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के भीतर प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग उन्हें जनकल्याण के लिए करना ही चाहिए। प्रशासनिक नीतियां, कार्य कई मर्तबे अव्यवहारिक लगे हैं, जनता ने ऐसा अनुभव भी किया। प्रशासन स्तर की भी समस्या रहती है। फलस्वरूप, उनकी शक्ति, श्रम और समय का दुरुपयोग भी होता है। संस्कारित शहरवासियों ने इसे भी देखा है। स्थानीय स्वायत्त शासन के चुने हुए जनप्रतिनिधियों को भी प्रशासन का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला, ऐसा उनका मानना है। कई विकास योजनाएं लाकडाउन में क्रियान्वित हो सकती थी, वह नहीं हुईं।
स्थानीय नगर पालिक निगम प्रशासन में स्वच्छता व खरीदी के क्षेत्र में हुआ भ्रष्टाचार अनपेक्षित था। ऐसे समय प्रभारी मंत्री की अनुपस्थिति निगम अमले को खल गई। जन सुविधाओं के मद्देनजर भी प्रभारी मंत्री की फिजिकल अटेंड जरूरी होती है। प्रशासनिक विकेंद्रीकरण का लाभ लोगों को मिलना ही चाहिए, यह उनकी सरकार के लिए भी और राजनीतिक रूप से फायदेमंद है। पंचतंत्र के उक्त दृष्टांत में प्रभारी मंत्री ‘हंस’ के समान हैं।
व्यवहारिक अभिगम से ही राहत मिलेगी
नसीब में जिसके जो लिखा था,
वह कोरोना में काम आया
किसी के हिस्से में भूख आई
किसी के हिस्से में पैसा आया
नसीब में जिसके जो लिखा था…
इसे समझने के लिए यह कि कोरोना ने देश-दुनिया में अफरा-तफरी मचाई है। प्रवासी मजदूरों को तो दिन में तारे दिखाई दिए। देश में जितने लोग कोरोना वायरस से मरे हैं, उतनी ही संख्या में लगभग राह चलते मजदूरों की मौत हो गई। मजबूर मजदूरों की गलती क्या है? अपने गांवों में पर्याप्त काम नहीं मिलता। पर्याप्त संतोषजनक मजदूरी नहीं मिलती, तभी वे मजबूर होकर अन्य शहरों अन्य प्रदेशों में ‘अपना हाथ जगन्नाथ पर’ भरोसा कर दो-चार पैसा ज्यादा कमाने बच्चों के साथ निकल पड़ते हैं। आज ये ही गरीब सडक़ों पर दाने-दाने के लिए मोहताज हैं। गरीबों की सुध, उनके भोजन-पानी का प्रबंध, उनको उनके गांव तक पहुंचाने का काम आसान नहीं है। हजारों की तादाद में पहुंचे मजदूरों, उनके परिवारों, बच्चों की भूख को मिटाने की कवायद तो हो ही रही है, लेकिन इसका उचित मार्ग समाधान धुंधली रोशनी में दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है, यह मजदूरों का नसीब है। कोरोना से सुरक्षा, कोरोना का टेस्ट यह भी पजल गेम जैसा है। इन सबके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है ‘पैसा।’ गरीबों की सेवा कोरोना महामारी के संकट में तन-मन-धन से करने की जरूरत है।
ऐसी आपातकालीन परिस्थिति में स्थानीय जिला व पुलिस प्रशासन को व्यवहारिक अभिगम के साथ श्रेष्ठ कार्य संपादित करना होगा। देश की जनता देश प्रेमी है। पीएम मोदी की क्रमश: आ रही अपीलों को आदेश मान देशवासियों ने 54 दिनों तक लाकडाऊन के चलते घरों में ही रहना उचित समझा। किंतु अब भूखमरी और बेकारी से ऊब चुके देश के मजदूर हताशा की गर्त में हैं। वह न घर के हैं और न ही घाट के हैं।
लोकसेवकों को संपूर्ण सद्भावना के साथ प्रवासी मजदूरों को संकट से उबारना होगा। उन्हें राहत देनी होगी, अन्यथा अराजकता फैलने की भी संभावना है और इसका अपयश अंतत: उन्हें ही मिलेगा।
मौकापरस्तों ने फायदा उठाया
‘नसीब अपना-अपना’ को माने तो लंबा लाकडाउन मौकापरस्त व्यापारियों के लिए वरदान बना। तंबाकू, गुटखा, गुड़ाखू, मंजन बेचने वालों ने अपने गुप्त व्यापार के जरिए लाखों बना लिए। मोबाइल डीलरों ने घर पर ही दुकानदारी कर बेजा मुनाफा कमाया। दारू के व्यापार में भागीदारी करने वाले इसके संबंधित कोचियों ने भी खूब नावां पीटा।
आबकारी विभाग का अमला मूकदर्शक रहा। उनका हिस्सा उन्हें घर बैठे मिलते रहा। किराना व्यापारियों के लिए लाकडाऊन ‘सिर कढ़ाई में और पांचों उंगलियां घी में’ जैसा रहा। किराना-अनाज में मुनाफाखोरी पराकाष्ठा पर रही। वैसे भी जिन्हें जिन सामानों की जरूरत थी, वह उन्हें उपलब्ध रही। कई दुकानों का शटर केवल दिखाने के लिए बंद था। ग्राहकों को ऐसी बंद दुकानों से जो चाहिए, वह मिलते रहा। इसके लिए उन्हें दाम ज्यादा देने पड़े। दवाई दुकानदारों ने भी मौके की नजाकत में मुनाफा कमाना उचित समझा।
लाकडाऊन दुर्भाग्य बना, उन लोगों के लिए जो सैलून चलाते थे, वे कुली जो रेलवे स्टेशनों में सक्रिय रहते थे, वे जो सीजनिंग व्यापार करके बर्फ, कुल्फी, कोल्ड्रिक्स, आइसक्रीम, गन्ना रस बेचकर पैसा कमाते थे। कैटरर्स, टेंट से जुड़े अनेक आइटम किराए पर देने वाले, वे कर्मचारी जिन्हें उद्योग व्यापार बंद होने से काम से हटा दिया गया।
लाकडाऊन में मजे से आराम फरमाते सरकारी शिक्षकवृंद तथा जिनके विभागों के सरकारी कार्यालयों में ताला जड़ा है, वे कर्मचारीगण खासकर गैर राजस्व अमले से संबंधित अमला ‘खाओ पियो मस्त रहो, दण्ड पेलो’ में ही मस्त रहा।
जांनिसार अख्तर कहते हैं-
गरीब जान के हमको ना तुम मिटा देना
तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्ही दवा देना
गरीब जान के……………..
लगी है चोट कलेजे पे उम्र भर के लिए
जहां मेंं और हमारा कहां ठिकाना है
तुम्हारे दर से कहां उठकर हमको जाना है
जो हो सके तो मुकद्दर मेरा जगा देना
तुम्हीं ने दर्द…गरीब जान के…….।
-दीपक बुद्धदेव