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आप प्रश्न क्यों नहीं पूछते?

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कहता हूं वो ही बात समझता हूं जिसे हक,
मैनें जहरे हलाहल को कभी नहीं कहा शकरकन्द
मैं जो भी बात करता हूं, जिसे मैं सच मानता हूं,
कातिल जहर को मैं कभी शक्कर नहीं कह सका।

शहरवासी ने इस शेर की चार लाइनें बयां की, तब बाबूलाल ने पूछा शहरवासी अब यह तुम्हारा कौन सा चिन्तन है? ठीक कहा डीयर बाबूलाल तुमने, यह चिन्तन ही है। शुक्र है तुमने यह जानने प्रश्न तो किया। प्रश्नों का होना स्वाभाविक है। मनुष्य को सतत आगे बढऩे के लिए प्रश्नों को करना ही चाहिए। आज जब पूरे देश में अनेक विष सदृश्य मुद्दे विद्यमान हैं, तब सरकार में बैठे नुमाइंदों के सामने प्रश्न तो उठने चाहिए। यह काम तो हमें हमारे पूर्वज सीखा के गए हैं। कई उपनिषदों में प्रश्नोंपनिषद को भी स्थान मिला है। जिसमें पिप्पलवाद ऋषि ने छह प्रश्नों का उत्तर दिया है। भारद्वाज पुत्र सुकेशा, शिविकुमार सत्यकाम, गर्ग गोत्र में उत्पन्न सैर्यायणी, ऋषि भार्गव और कैत्य के प्रपौत्र कबन्धी। इन छह ऋषियों को परब्रम्ह परमेश्वर की जिज्ञासा हुई और उन्होंने पिप्पलाद ऋषि को जीव की उत्पत्ति, उसके कारणरूप परब्रम्ह बाबत प्रश्नों को पूछा और पिप्पलाद ऋषि ने उनके प्रश्नों का समाधान भी किया था।
शहरवासी ने कहा ऋषि पिप्पलाद के साथ दुष्यंत कुमार भी याद आ रहे हैं। इन्हें एक साथ याद करने का प्रयोजन यह है बाबूलाल कि हम में से कोई न कोई व्यक्ति उक्त छह ऋषियों के गोत्र ही हैं, हमें हमारी मति अनुसार प्रश्नों को करना चाहिए और प्रश्नों का निराकरण होने तक समाधान पाने की कवायद करनी चाहिए। दुष्यंत कुमार आने वाले प्रश्नों की गंभीरता पर प्रकाश डालते हैं।
दुष्यंत कुमार कहते हैं-
एक प्रश्न पूछूं? आप प्रश्न क्यों नहीं पूछते,
सवाल यह नहीं है कि आप कुछ बोलें,
आप चाहें तो मुंह तक न खोलें,
सवाल यह है कि
आप खुद को टटोलें
और तैयार रहें
अक्सर हुआ है कि
जब कोई सवाल आया है
आदमी जो तैयार नहीं था
यक ब यक कुछ कह नहीं पाया है
और जब वह चारों तरफ
सवालों से घिर गया
तो बहुधा सवालों से टकराकर गिर गया।

प्रश्नोंपनिषद से जिज्ञासा को जन्म देने की जरूरत है ताकि प्रश्न उपस्थित हों। यही बात समझने की है। किन्तु विडंबना यह कि हमारे मन में प्रश्न आते ही नहीं। कारण कि हमारी शिक्षा प्रणाली जिज्ञासा प्रेरक नहीं है, समाधानकारी है। प्रश्न नहीं करना, बल्कि समाधान कर लेना, हमारे यहां यही सीखाया गया है। अलबत्ता यह कि हम यही सीखते हैं। इसी में लोगबाग रूचि रखते हैं।
समाज की विसंगतता पर सवाल नहीं होते, देश की दुर्दशा पर सवाल नहीं होते, सरेआम दिन के उजाले में आतंकी हमले पर सवाल नहीं होते, सैंकड़ों लोग खाए बगैर रात को उकड़ू पेट और कमर को एक कर सोए रहते हैं, तब उस पर सवाल क्यों नहीं होते? झूठे और दंभी राजनीतिज्ञों की कपटी हिलचाल पर सवाल नहीं होता। घूस-रिश्वत, बेकारी, गरीबी, महंगाई, भ्रष्टाचार, बढ़ते अपराध, इन सभी सामाजिक प्रदूषणों पर सवाल नहीं होते। भारत में कोरोना कहां से आया, कैसे फैला? इस पर कोई प्रश्न नहीं उठता। वास्तव में हमने इन सभी दु:स्थितियों के साथ समाधानकारी रवैया अपना लिया है।
देखो बाबूलाल, यह सब तो समाज और देश से जुड़े प्रश्न हैं। जिनके साथ अगर कोई निस्बत न हो तो यह शायद देश और समाज का दुर्भाग्य है। किन्तु, हम तो अपने ऊपर होने वाले अन्याय को भी मूक बनकर बर्दाश्त करते हैं।
हम सतत राजनीतिज्ञों की अवहेलना का शिकार हो रहे हैं। हमारे से कम अंक पाने वाले डोनेशनदारों को एडमिशन मिल जाता है, किन्तु हमारे मन में प्रश्न नहीं उठते। न्यायालयों में न्याय नहीं, किन्तु फैसले होते हैं, लेकिन प्रश्न नहीं उठते। क्या हम गांधी जी के बंदरों का अनुसरण नहीं कर रहे हैं?
वास्तव में हम अपने आप से कभी सवाल किया है कि एक व्यक्ति के रूप में हमारा क्या फर्ज है? नागरिक धर्म क्या है? अगर ये प्रश्न जेहन में उठते भी हैं तो दिमाग इसे उठते ही रौंद देता है। देश में पूर्व की ऋषि मुनियों की प्रश्न परम्परा के स्थान पर मूक परम्परा ने जन्म ले लिया है।
आज के दयनीय हालात यह हैं कि हम प्रश्न करने के लायक हैं भी? यह भी सोचना पड़ेगा। जेहन में उठने वाले प्रश्न समाजोपयोगी हैं, राष्ट्रहित के हैं या स्वार्थहित के हैं? किस प्रकार के प्रश्नों का जाल हमारे मन में रचा है, जिसमें हम खुद फंस गए हैं। सवाल यह नहीं है कि हम दूसरों की हां में हां मिलाते हैं। सवाल यह है कि हम खुद को टटोलें और तैयार रहें प्रश्नों को करने के लिए और आने वाले प्रश्नों का सामना करने के लिए।
हम हमारे उपरोक्त दर्शाए ऋषि मुनियों के वंश बन कर जिज्ञासामूलक तथा बहरे कानों पर शंख ध्वनि का काम कर मदोन्मत, सोए व आलसी सांडों के कर्णपटल को फाड़ डालें, ऐसी वास्तविकता के दर्शन कराने वाले प्रश्नों को पूछने का सामथ्र्य प्राप्त करें ताप्तर्य यही है।
सितारे गर्दिश में…बिगड़े हालात कब सुधरेंगे?
जन्म के समान ही मृत्यु भी प्रकृति का रहस्य है। जवानी में वृद्धावस्था, स्वस्थता में रोग और जीवन में मृत्यु समायी हुई है। किन्तु अफसोसजनक यह है कि इस चाइनीज वाइरस कोरोना से मृत्यु हो रही है। यह उचित नहीं है। राजनांदगांव जिले में ही कोरोना ने पैर पसार लिए हैं। लाकडाउन क्या असफल रहा? बगैर टेस्टिंग जिले में, प्रदेश में प्रवेश किए मजदूरों में कोरोना कैरियर मजदूर भी थे। गांवों-गांवों में कोरोना का भय भी कहर बरपाने लगा है। किसान और मजदूर गांवों में आमने-सामने होते जा रहे हैं।
मजदूरों पर लगता है शनिदेव कुपीत हैं। सैंकड़ों किलोमीटर दो पैसे कमाने मजदूर दूर गए। लाकडाउन ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। भूखे-प्यासे, गिरते-पड़ते, मरते खाली जेब जो अपने गांव पहुंचने कामयाब भी हुवे तो कई कोरोना लेकर भी आए। उन्हीं के गांव के किसान अब उनसे दूरी बनाए हुवे हैं।
देखो चम्पक, शनिदेव का कोपभाजन केवल मजदूर ही नहीं, सम्पूर्ण भारत पर उनका असर दिखाई दे रहा है। बंगाल व उड़ीसा में आया भीषण साइक्लोन ने क्या कम बर्बादी की है। देश की जीडीपी पिछले अनेक वर्षों की तुलना में नीचले पायदान पर है। महंगाई ऊपर के पायदान पर है। बेकारी विस्फोटक है। व्यापार, उद्योग ठप है। जनता घर में कैद है। अन्य जिले में जाने परमीशन चाहिए। ट्रेन शुरू होने जा रही हैं, लेकिन ट्रेन की यात्रा भी जोखिम से भरी है। आनलाईन की पढ़ाई विद्यार्थियों को नेत्ररोगी बना रही है। युवक-युवतियों के विवाह तय हुवे, किन्तु उनका विवाह नहीं हो सका। और भी न जाने क्या-क्या? टिड्डी दल के प्रकोप का भी खतरा मंडरा रहा है। देश की सरहद पर चीन लाल आंखें किए बैठा है। जम्मू-कश्मीर आतंकी साए में है। देश भीतर नक्सलवाद जड़ से खत्म ही नहीं हो रहा है। मित्र केवल शनि की कूदृष्टि ही नहीं, मुझे तो लगता है चम्पक, शनि के साथ-साथ राहू व मंगल भी तीरछी निगाहों से भारत को देख रहे हैं। अब आगे क्या होगा? ईश्वर जाने। लाकडाउन क्या रबर की भांति लम्बा ही होता जाएगा?
अब लाक को अनलाक किया गया है। श्रद्धालुजन मंदिरों में भगवान के दर्शन कर सकेंगे। एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने की छूट मिली है। सुबह 5 बजे घर से निकलकर मार्निंग वाक पर लोग जा सकेंगे। बाजार रात 9 बजे तक खुला रहेगा। अनलाक में ऐसी सशर्त कई छूट मिली है। लेकिन, कोरोना संक्रमण का खतरा पहले से ज्यादा बढ़ गया है। यह खतरा तभी टलेगा जब लोग सोशल डिस्टेसिंग का पालन करेंगे।
पार्षदों के मतों से चुनी गई मेयर की विवशता
मेयर का चुनाव इस मरतबे अप्रत्यक्ष हुआ है याने निर्वाचित पार्षदों ने अपने मेयर को चुना है। अब मेयर की दुविधा यह है कि अनेक कामों के लिए पार्षदों का मुंह ताकना पड़ता है। मेयर हेमा सुदेश देशमुख इसी मजबूरी के चलते पार्षदों के विरूद्ध कोई काम नहीं कर सकती। इसके विपरीत मेयर सीधे जनता के द्वारा चुनकर आती तो उसकी शक्तियां वर्तमान की तुलना में अधिक रहती और इस आधार पर जनता के हितों को ध्यान में रखकर प्राथमिकता के आधार पर काम होते।
इसे विडम्बना ही कहें कि नगरनिगम की प्रशासनिक व्यवस्था भी लालफीताशाही से ग्रस्त है। विसंगति यह कि स्थानीय नगर निगम का शासन भी इसमें पूर्णरूपेण लिप्त है। इस स्वायत्त संस्था के प्रति राज्य सरकार का स्वायत्त शासन विभाग भी कोई ध्यान नहीं दे रहा है। समय पर निगम कर्मियों को वेतन नहीं मिलना तो लाखों की खरीदी भी मोटे कमीशन को ध्यान में रखकर की जाती है। जनता के द्वारा मिले कर याने धन की बहुत बड़ी राशि व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण नष्ट हो जाती है। अधिकांश नागरिक इसी वजह करों की अदायगी नहीं करते। दुष्परिणाम यह कि नगरीय निकायों के स्थानीय स्वशासन की इन संस्थाओं के विकास तथा प्रशासकीय विकेन्द्रीकरण यहां निरर्थक लगने लगता है।
गर्मी में स्वाभाविक रूप से पानी की खपत ज्यादा होती है। पूर्व में राज्य की भाजपा सरकार ने सरलता से, सहजता से लोगों को घर बैठे पर्याप्त पानी मिले, इसके लिए अमृत मिशन योजना लायी थी। 210 करोड़ का यह अमृत मिशन प्रोजेक्ट था। किन्तु, यह योजना सौ दिन चले अढ़ाई कोस साबित हुई। निगम प्रशासन पाइप लाईन बिछाकर घर घर पानी पहुंचाने में असफल रहा। टैंकरों के जरिए पानी मुहैया करवाने में निगम लाखों फूंक रहा है।
कोरोना संक्रमण के बीच शहर में अब पीलिया भी बढ़ रहा है। इलाज में लापरवाही होती है तो यह बीमारी भी जानलेवा है। शहर के नागरिकों को स्वास्थ्यवर्धक भोजन नाश्ता उपलब्ध हो, इसे देखने की जिम्मेदारी भी निगम प्रशासन की है। होटलों में कढ़ई पर रखे गर्म तेल से दिन भर समोसे, कचौड़ी, आलूगोंडा तले जाते हैं। बाजार में सड़े-गले फल मिलते हैं। यहां निरन्तर कार्यवाही की अपेक्षा है।
झीरम नरंसहार भूलाए नहीं भूलता
मिलनसारिता और क्षेत्र के नागरिकों के हितों की सदैव चिन्ता करने वाले पूर्व विधायक उदय मुदलियार की असमय हत्या से यह शहर आक्रांतीत है। झीरम घाटी में हुआ नरसंहार भूलाए नहीं भूलता। उदय भाई के सुपुत्र जितेन्द्र मुदलियार ने अपने पिता के साथ अन्य वरिष्ठ कांग्रेस के नेताओं की थोक में की गई हत्या को साजिश बताया है। 7 साल बाद सिटी कोतवाली जगदलपुर में नेताओं की नक्सली हत्या पर साजिश की आशंका बताते हुवे शिकायत दर्ज की है। प्रदेश में अब कांग्रेस की सरकार है। जितेन्द्र की शिकायत पर पुलिस ने धारा ३०२, १२० बी के तहत मुकदमा दर्ज किया है।
नक्सली हमले में उपयोग में लायी गई ए.के.४७ हथियार पुलिस को राजनांदगांव में सक्रिय रहे एक नक्स्ली से प्राप्त हुई है। शहर के ही सफेदपोश ठेकेदारों के द्वारा नक्सलियों की जरूरत की सामग्रियां प्रदाय की जाती थी, यह भी पुलिस की तहकीकात से मामला उजागर हुआ है। झीरम नरसंहार का जाल राजनांदगांव जिले तक फैला है, इस आशंका को अब बल मिल रहा है।
झीरम नरसंहार में शामिल शातिरों का अब तक पता नहीं लगना, यह दुखद है। शहरवासियों को उम्मीद है कि बड़ी शुद्धता के साथ इसकी जांच होगी और अगर कोई साजिश है तो उसका पर्दाफाश होना ही चाहिए।
अमिताभ त्रिपाठी कहते हैं-
किसी को महल देता है, किसी को घर नहीं देता,
ये क्या इंसाफ है मालिक? कोई उत्तर नहीं देता।
जिन्हें निन्द्रा नहीं आती, पड़े हैं नर्म गद्दों पर,
जो थक कर चूर हंै श्रम से, उन्हें बिस्तर नहीं देता।
तुम्हारी सृष्टि के कितने सुमन भूखे हैं और प्यासे हैं
दयानिधि! इनके प्यालों को कभी क्यों भर नहीं देता?
– दीपक बुद्धदेव

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