Home छत्तीसगढ़ मोदी है तो सब मुमकीन है: डोन्ट वरी बी हैप्पी

मोदी है तो सब मुमकीन है: डोन्ट वरी बी हैप्पी

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कोरोना काल में टीवी में फिर से दिखाए जाने वाला महाभारत बहुत लोकप्रिय हो रहा है। महाभारत के नायक कृष्ण की प्रत्येक एक्टीविटीज और उनके द्वारा कहे गए एक-एक शब्दों ने दर्शकों का बहुत ध्यान खिंचा है। ‘‘गीता’’ पढऩे का समय निकालना आज बहुत ही मुश्किल है। लेकिन, कृष्ण द्वारा गीता में कहे गए संदेश ने लोगों को चिन्तन करने विवश कर दिया है। उन्होंने कहा था- आप को केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फल पर नहीं। कर्मफल के आशय से किया गया कर्म सफल-असफल दोनों हो सकता है। सूर्य ग्रहण के फल बाबत् भी ज्योतिषियों ने कहा है कि इस ग्रहण का फल व्यक्ति, समाज, देश और विश्व में बहुत उथलपुथल करने वाला रहेगा। वह ही व्यक्ति सूर्य ग्रहण के दुष्परिणाम से बचेगा, जिनके कर्म अच्छे होंगे।
यह तो मानी हुई बात है चम्पक, लेकिन लोगबाग इसे समझते कहां है? छोड़ो, लेकिन देश भर में लोगों को चीन के कुकर्मों पर बहुत गुस्सा है। लेकिन उनके गुस्से की कौन परवाह करता है? वह तो दिन के उजाले की तरह साफ है कि भारत-चीन युद्ध होगा तो इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे। क्या यह बात ही अपने आप में गंभीर नहीं? नेपाल के साथ भी भारत के संबंध खराब हो गए हैं। इसमें भी चीन की बहुत बड़ी भूमिका है। पाकिस्तान के इरादे भी नेक नहीं है। वह लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है। भारत को चीन, पाकिस्तान व नेपाल से एक साथ भिडऩा पड़े तो यह आश्चर्यजनक नहीं होगा। फिलहाल भारत के विरूद्ध ये तीनों ही देश एकजूट हैं और आक्रमक है।
इसमें भी मित्रों ‘‘इन्टरनेशनल पालिटिक्स’’ है। भारत और चीन के बीच की तमाम तनाव परिस्थिति में विश्व के प्रत्येक देश अपनी अपनी रीत से फायदा उठाना चाहते हैं और यही एक मात्र उनका लक्ष्य है। मित्रों, नरेन्द्र मोदी हैं तो सब मुमकिन है। वे और हमारी जल, थल व नभ सेनाए बहुत शक्तिशाली हैं और प्रत्येक हमलों का मुंहतोड़ जवाब देनें सुसज्ज है और देशवासी नरेन्द्र भाई के साथ हैं। ‘‘डोन्ट वरी, बी हैप्पी’’।

सम्पन्न राज्यसभा चुनावों में दलबदल की भूमिका अहम्

अलग-अलग राज्यों में राज्य सभा की रिक्त सीटों पर चुनाव हो गए। एक तो देश की सरहदों पर तनाव, देश भीतर कोरोना महामारी का टेन्शन लोगों को हलाकान और शारीरिक व मानसिक रूप से अधमरा किए हुवे है। वहां इस राज्यसभा के चुनावी युद्ध का राजनैतिक व्यायाम भी लोगों के लिए सिरदर्द जैसा था। बाबूलाल ने गुफ्तगु का सबजेक्ट बदला।
राज्यसभा चुनाव परिणामों को दलबदल ने बहुत प्रभावित किया है। बाबूलाल जब अपनी बात कह चुका, तब चम्पक ने कहा-मित्र, तोते को नई भाषा सिखाने से कोई फर्क नहीं पड़ता। आवाज तो उसकी वही के वही रहेगी। आवाज जीभ का धर्म है और भाषा हृदय का धर्म है। आज के दल परिवर्तन के क्रांतिकारी माहोल में उक्त विधान बिल्कुल फिट बैठता है। आदमी जैसे आदमी को तोता बनाने का मन हो जाए, ऐसी लुभावनी राजनीति का चारों ओर सर्जन हो रहा है। राजनीति एक मात्र ऐसा बिजनेस है, जिसमें किसी भी पकार के वित्तीय इन्वेस्टमेंट करने की जरूरत नहीं रहती। इस बिजनेस में इन्वेस्टमेंट इन्वेस्टमेंट में भी अन्तर होता है। इस बिजनेस में बहुत से लोग बहुत प्रकार का इन्वेस्टमेंन्ट करते होते हैं। किन्तु, कई सत्ताद्योग उद्यमी इतना हाइलेवल का इन्वेस्टमेंन्ट करते होते हैं कि उसके परिणामस्वरूप सभी को शतप्रतिशत सफलता मिल ही जाती है। यह अद्भूत इन्वेस्टमेन्ट है। झूठ, लालच, लुभावने वचन, फरेब, प्रपंच, बेईमानी और अभिनय, ये सात प्रकार का पूंजीनिवेश सीधे सादे आदमी को एकदम से रेडीमेड राजनीतिज्ञ बना देता है। फिर, इस बिजनेस के लिए किसी भी प्रकार की शैक्षणिक योग्यता की भी जरूरत नहीं पड़ती। मान लो कि कोई शैक्षणिक योग्यता अगर किसी में हो तो इस बिजनेस के कई बिजनेस क्लर्क ऐसे सदाचारी व्यक्तियों को शंका और आश्चर्य की नजरों से देखते हैं।
इस बिजनेस में प्रवेश मिल जाने के बाद एक मरतबे आप मिनिस्टर बन गए तो समझ लीजिए कि सभी प्रकार की योग्यता आ गई समझो। फिर भले ही आप अनऐजुकेटेड हों। किन्तु, मिनिस्टर होने के हक, दावे और अधिकार भाव से आप एजुकेटेड अफसर को भी घुडक़ा सकते हैं। शायद इसलिए ऐसा कहने में कोई संकोच नहीं कि ऐसे अनर्थशास्त्र में राजनेताओं के लिए भारतीय लोकतंत्र केवल वरदानरूप या आशीर्वाद रूप नहीं है, किन्तु कल्पवृक्ष सदृश्य और कामधेनु गाय सदृश्य है।
दसों दिशाओं से ‘‘अच्छे दिन’’ आते हैं, दसों दिशाओं से बेहतर से बेहतर सुरक्षा मिलती है और किसी भी प्रकार का टेन्शन न रहे, इसके लिए सरकारी या अद्र्धसरकारी नौकरी का एक भी एपाईन्टमेन्ट आर्डर मिले बगैर निर्वाचित विधायक, सांसद को आजीवन पेन्शन भी मिलती है।

एजुकेशनल इंडस्ट्रीज आइसोलेशन में

व्यापारियों को उत्तम संदेश देते हुवे महात्मा गांधी ने कहा था कि ग्राहक भगवान का रूप होता है। गांधी जी के उक्त संदेश को स्कूल संचालकों ने अच्छी तरह से आत्मसात किया है। उन्हे एजुकेशनल इन्डस्ट्रियालिस्ट के रूप में नवाजा जाना चाहिए। राजा स्वयं राजा होने के बावजुद उद्योगपति बन सकता हो, बाबा जैसा बाबा भी उद्योगपति बन सकता हो, जनसेवा करने वाले सेवक भी मंत्री बनकर उद्योगपति बन सकता हो तब स्कूल संचालकों ने क्या गुनाह किया है?
खैर, शिक्षा उद्योग में लाखों-करोड़ो कमा कर अंदर कर चुके स्कूल संचालको की कोरोना वाइरस के चलते स्थिति फिलहाल दयनीय है। सरकार ने विद्यार्थियों से फीस नहीं लेने की स्कूल संचालकों को मनाही की है। साथ ही, आनलाईन एजुकेशन देने के लिए कहा है। इसका जिम्मा भी स्कूलों के स्टाफ, शिक्षक-शिक्षिकाओं का है। इसी के साथ, निजी शैक्षणिक संस्थाएं आर.टी.ई. के तहत लम्बित राशि के भी नहीं मिलने से धन के अभाव का सामना कर रही हंै। सरकार की खुद की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है। इस कारण आर.टी.ई. की राशि के भुगतान में विलम्ब हो रहा है। कुल मिलाकर, एजुकेशनल इंडस्ट्रीज आइसोलेशन में है।
म्युनिसीपल स्कूल में हिन्दी या अंग्रेजी या फिर दोनों ही माध्यम से शिक्षा होगी?
कोरोना वाइरस ने विद्यार्थियों की पढ़ाई का भी बहुत नुकसान किया है। दीगर बड़े शहरों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों को भी अपने शहर-गांव वापस लौटना पड़ा है। स्कूल-कालेज बंद हैं। घर बैठे ऐसे स्टुडेन्ट्स भी आनलाईन शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उनके शैक्षणिक जीवन-कैरियर पर अनिश्चितता के बादल छाए हुवे हैं। अपने भविष्य को लेकर विद्यार्थी वर्ग भी चिन्तीत हैं। कई विद्यार्थियों को आनलाईन पढ़ाई दुष्कर पहाड़ चढऩे जैसी लग रही है।
शहर की ऐतिहासिक म्युनिसिपल स्कूल के विद्यार्थीगण अभी तक हिन्दी माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। किन्तु, अब उन विद्यार्थियों को प्रवेश नहीं मिल रहा है, जो हिन्दी माध्यम के जरिए ही अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं। स्कूल के नए व पुराने विद्यार्थियों की मन:स्थिति असमंजस में है। उनके पालकों व अभिभावकों में इस कारण भी बेहद रोष है।
अब क्या हिन्दी मीडियम से होनें वाली पढ़ाई वहां बंद हो जाएगी? क्या नए शैक्षणिक वर्ष में केवल अंग्रेजी माध्यम से ही शिक्षा प्रदान की जाएगी? इन दोनों ही प्रश्नों के जवाब वर्तमान में नहीं है। आगे क्या होता है? देखेंगे।
सूर्य ग्रहण का अद्भुत नजारा
इस सदी का सबसे बड़ा सूर्य ग्रहण का अद्भूत नजारा टीवी में देखने को मिला। सूर्य और पृथ्वी के बीच आया चन्द्रमा ग्रहण का निमित्त बना। ज्योतिषियों ने सूर्यग्रहण को बूरा परिणाम लाने वाला बताया है। मिसेज बाबूलाल बहुत धार्मिक है और ग्रहण काल में उसने भक्ति भाव पूर्वक भजन किया और सूर्यदेवता से सभी की कुशलता की कामना की। ग्रहण छूटते ही बाबूलाल को भी नहाने भेजा। स्नान बाद ही उसकी थाली परोसी। साथ ही कहा कि मोहल्ले में जो ब्राह्मण रहता है, उसके घर जाकर गेंहू, दाल और पांच रूपए का दान भी करना है। बाबूलाल ने हामी भरी और मन में ही तय किया कि चम्पक के आने के पहले ही मुझे यह काम करना होगा। वह जानता था, चम्पक यह ग्रहण-वहण नहीं मानता। वह इसे खगोलीय घटना कहता है। आदमी आज चन्द्रमा पर पहुंच गया है। 21 वीं सदी में खगोल विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है। पल-पल का सुन्दर नजारा उसने भी देखा होगा।

क्रांतिकारी कवि मोहन सगोरिया ने कहा है
खिलाड़ी नीलाम हुए पंचतारा होटल में,
लेबर चौक पर बिके मजदूर-कारीगर हर फन के
वकील बिके ठीक न्यायालय परिसर में
अवमानना है कहना कि माननीय न्यायाधीश बिके
वेश्याएं बिकी सरेराह, सरे बाजार
डाक्टर बिके, बिके चार्टर्ड एकाउंटैंट
सितारे हिन्द बाबुओं का बिकना आम रहा हमेशा
अगुवा नेताओ की कौन कहे
वे बिके पहले एक-एक, फिर थोक-थोक
खुदरा कीमत पर
साहूकारों, तस्करों, हत्यारों के लिए आसान रहा
खरीदना-बेचना कुछ भी
विचार और मूल्य इस तरह बिके
जैसे किराने की दुकान पर लवा-दुआ।
वजारतें बनाई गयी लकदक तिजारत के लिए
कम्पनियां बिकीं
लारियां, रेलगाडिय़ां, विरासत जो उन्हें मिली
फिर एक दिन गांधी मैदान बिका
विक्टोरिया टर्मिनस, ताजमहल एक दिन
धीरे-धीरे सब बिक गये
ईमान, खानदान, पीकदान
बावजुद इसके कहना कठिन है कि पहले कौन बिका
पहला, दूसरा, तीसरा या चौथा पाया लोकतंत्र का
और जनता थी जिसका कोई चेहरा न था,
सिर्फ मुखौटा
वह अवाक् थी या कीर्तनिया मंडली में शामिल,
मालूम न था उसे कि जिस जमीन पर खड़़ी है,
उसे चुपचाप बेचने की तैयारी है।

दीपक बुद्धदेव

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