राजनांदगांव(दावा)। कोरोना वायरस के सामुदायिक संक्रमण का शिकार हुए सेठी नगर वार्ड के लोगों ने लखोली नाका स्थित मां चंडी की पूजा कर हॉट-स्पार्ट बने इस अति संक्रमित वार्ड से कोरोना मुक्ति की प्रार्थना की। आसाढ़ शुक्ल पक्ष के लगते ही मां शीतला सहित चंडी माई की शांति के लिए जुड़वास पूजा का प्रारंभ हो जाता है।
इस पूजा के निमित्त लखोली नाका क्षेत्र के वार्ड पार्षद गप्पू सोनकर प्रतिष्ठित नागरिक कोशा जी, किसन सोनकर, पार्षद प्रतिनिधि आशीष डोंगरे, अरूण दामले सहित सेवक परिवार के जीतेन्द्र, रूपेश, दीपक पल्लवी सोकन, चंचल, निशा सुखमा मरकाम आदि ने मां चंडी की हूम-धूप, नारियल, फूल पत्र आदि से पूजा-अर्चना कर लखोली नाका, सेठी नगर सहित लखोली क्षेत्र में फैले कोरोना वायरस के कहर से लोगों को बचाने व इस महामारी से मुक्ति की दुआएं मांगी। मंदिर समीप निवास करने वाली वयोवृद्ध महिला ने बताया कि मां चंडी हर महामारी से अपने भक्तों को बचाती है। 50 साल पहले शहर में हुए हैजा प्रकोप के बाद भी मां चंडी की कृपा से लखोली नाका क्षेत्र के लोगों का बाल भी बांका नहीं हुआ था जबकि उन मृतकों के शव को जलाने व दफनाने लखोली नाका स्थित मुक्तिधाम में ही लाया जाता था। उक्त बुर्जुग महिला ने बताया कि मां चण्डी रात्रि में अपनी भक्तों की रक्षा करने पूरे क्षेत्र में विचरण करती है।
श्मशान निवासिनी है मां-चंडी
आचार्य द्विवेदी ने बताया कि मां चण्डी श्मसान की रखवाली करने वाला चांडाल कहा जाता था। मां चंडी अपने द्वार में आए सभी भक्तों की रक्षा करती है। मां शीतला की तरह अपने भक्तों को महामारी व संक्रमण रोग से बचाती है। आसाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में जुड़वास पर भी शीतला मां चण्डी आदि अन्य देवियों की पूजा की जाती है। ताकि ग्राम मुहल्ले का वातावरण शांत रहे लोगों को रोगों से मुक्ति मिले। आज इसी परिप्रेक्ष्य में लखोली नाका निवासियों ने लखोली नाका सहित पूरे शहर व देश से कोरोना मुक्ति प्रार्थना की और हुम-धुप देकर महामारी से उपज उनके क्रोध रूप की शांति की। इस ग्राम्य भाषा में जुड़ वास पूजा कहा जाता है। इस दौरान भी चंडी को स्नान करा कर नये वस्त्र धारण कराये गये तथा हार-फूल नारियल आदि चढ़ा कर माई की पूरे विधि-विधान से पूजा की गई।
मांगलिक कार्य पर लगा विराम
आसाढ़ शुक्ल पक्ष की ग्यारस से देवशयंनी एक दशी प्रारंभ हो गया है। इसदिन से जगत के पालन हार भगवान विष्णु गहन निंद्रा में चले जाते है अत: वर्षावास के इन चार महिने तक समस्त मांगलिक कार्यों में विराम लग जाता है। ज्योतिषा चार्य पं. सरोज द्विवेदी ने बताया कि देवताओं के चार महिने तक सोने चले जाने के कारण शादी-विवाह के कार्यों सहित अन्य मांगलिक कार्यो में विराम लगा रहेगा। नवम्बर माह में देव उठनी एकादशी के बाद फिर से मांगलिक कार्यों की शुरू आत होगी।