ओ ऊपरवाले दुखियों की नाही सुनता रे
कौन है जो उसको गगन से उतारे
अरे गम की आग बुझाना है तो हम से सीखें
यार आग लगी…….
आग लगी हमरी झोपडिय़ा में हम गाएं मल्हार
देख भाई कितने तमाशे की जिंदगानी हमार
हे भाले भोले ललवा खाए जा रोटी बासी
बड़ा होकर बनेगा साहब का चपरासी
खेल-खेल-खेल माटी में होली खेल
गाल में गुलाल है न जुल्फों में तेल
आग लगी हमरी झोपडिय़ा में हम गाएं मल्हार….
चंपक के गाए गीत ने बाबूलाल को झकझोर कर रख दिया था। क्या से क्या हो गया यार चंपक। कितने सुनहरे सपने दिखाए थे मोदी सरकार-टू ने बजट में। पूर्व की सरकार-वन में मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया, स्किल इंडिया वगैरह-वगैरह। प्रोजेक्ट-स्कीम जिसे रंगीन सपने भी कहें, कितने सफल रहे? इसकी चर्चा हम टीवी चैनलों में ‘बोल वचन’ करने वाले प्रवक्ताओं पर छोड़ें। साल भर पहले ही केन्द्र सरकार ने ‘स्टडी इन इंडिया’ की घोषणा की थी। सरकार की भावना अच्छी है। हमारा भावी बुद्धिजन देश में ही रहें, ऐसा होना ही चाहिए। किंतु इसकी कोई व्यवस्था या तैयारी सरकार ने की? जवाब है नहीं की। अन्य देशों की तुलना में भारत में बहुत ही कम याने मात्र छह यूनिवर्सिटियां हैं। पूर्व में क्यू एस वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में यह जानकारी बाहर आई थी। अब सोचिए ऐसे में ‘स्टडी इन इंडिया’ के लिए क्या हम सुसज्ज थे? बाबूलाल ने कहा।
कौन जानता है भाई भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है? टं्रप और कोरोना दोनों ही एक साथ भारत आए थे। अहमदाबाद, दिल्ली से शुरू हुआ कोरोना पूरे देश में फैल गया। ‘नमस्ते टं्रप’ की हमारी संस्कृति इसी समय से प्रसिद्ध हुई थी। कम आबादी वाले देशों की तुलना में भारत का क्षेत्रफल सबसे कम सिर्फ 32.87 लाख वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या 130 करोड़ के आसपास है। अब इसमें भारत में उन्नति करने की गुंजाइश नहींवत है। छोटा सा भारत और इतनी बड़ी आबादी, इसलिए यहां गरीबी और बेरोजगारी घर कर गई है। चीन की आबादी 143 करोड़ के आसपास है, हमसे ज्यादा है किंतु चीन का क्षेत्रफल 95.96 लाख वर्ग किलोमीटर यानी हमसे ढाई गुना से ज्यादा क्षेत्रफल है और विस्तारवादी उसकी नीति है।
मित्रों, चीन की तुलना में हम बहुत ही पीछे हैं। ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना कब साकार होगा? इसका जवाब भी अंधेरों में गुम है। मोटरगाडिय़ों के कलपुर्जों के लिए भारत रातोंरात चीन पर से निर्भरता खत्म नहीं कर सकता। आयात पर लगायी पाबंदी से जरूरी पुर्जों के साथ अन्य अनेक वस्तुओं का आना रुक जाएगा। ड्रैगन का कोई काट नहीं है। ट्रक निर्माता अशोक लीलैंड, देश की बड़ी निर्माता कार कंपनी मारुति सुजुकी अपने कल पुर्जों के लिए पूर्णत: चीन पर निर्भर है। ऑटो कल पुर्जों के क्षेत्र में चीन की इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग ताकत को बेदखल करना भारत के लिए मुश्किल होगा। कारगर विकल्पों की तलाश किए बगैर चीनी आयात में कटौती करना, भारतीय ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए आत्मघाती कदम होगा।
मित्रों, यही स्थिति भारत के टेक्सटाइल सेक्टर की है। चीनी फैक्ट्रियों की तरह कम लागत और बड़े पैमाने पर सस्ता माल बनाने की क्षमता हासिल करने के लिए भारत के टेक्सटाइल सेक्टर को अभी लंबा सफर तय करना होगा। भारत से परिधानों का निर्यात क्षेत्र छोटे और मंझोले उद्योगों पर टिका है, जिसे न तो कीमत मिल पाती है और न ही सस्ता कर्ज तथा तकनीकी जानकारियां।
वैश्विक बाजार में चीन का दबदबा बरकरार है। विडंबना यह कि बांग्लादेश और वियतनाम ने भी भारत के मुकाबले बेहतर कारोबार किया है। विश्व के बहुत थोड़े खरीददार भारत आने के इच्छुक हैं। वे यहां के कोरोबारी माहौल को लेकर आशंकित रहते हैं। फिर वह चाहे नीतियों में बदलाव का मामला हो या करों का, शहरवासी ने कहा।
फार्मास्युटिकल्स क्षेत्र की भारत में यह दयनीय स्थिति है कि पिछले दो दशक में भारत ने दवाओं के मुख्य घटक एपीआई तैयार करने के क्षेत्र में अपनी प्रतिस्पर्धी बढ़त चीन के हाथों खो दी है और अब इसे हासिल करना भी एक चुनौती है। यह भारत के 3.74 लाख करोड़ रुपए की दवा निर्माता उद्योग के लिए परीक्षा की घड़ी है। सक्रिय दवा अवयव याने दवाओं के मुख्य घटक (एपीआई), प्रमुख प्रारंभिक सामग्रियां (केएसएस) और दवा निर्माण की कच्ची सामग्रियों के चीन से आयात में आ रही बाधाओं ने उद्योग से जुड़े लोगों के माथे पर पसीना ला दिया है। भारतीय दवा निर्माण उद्योग की नजर इस कारोबार के ज्यादा मुनाफा वाले फार्मूलेशन पर केन्द्रित रही है। इसी वजह से वह बुनियादी एपीआई और अन्य सामग्रियों के लिए हद से ज्यादा निर्भर है, बाबूलाल का कहना था।
देखो बंधु, अब जब चीन की बात ही चल रही है तो भारतीय स्टार्ट-अप बाबत यह कि यहां पैसा लगाने के लिए घरेलू स्रोत नहीं मिले तो चीन की कंपनियों ने रकम लगाई। अब एक झटके में उनसे हाथ झाडऩा या उसके दाम वापस करना आसान नहीं है।
ऊर्जा भी चीन से आयात होती है। भारत का ऊर्जा मंत्रालय ऊर्जा क्षेत्र से चीनी कंपनियों को दूर रखने पर काम कर रहा है। इसके लिए आयात शुल्क बढ़ाने गैर टैरिफ बाधाएं खड़ी करने और ठेके रद्द करने जैसे विकल्पों पर विचार हो रहा है, शहरवासी ने कहा। चंपक बोला- भारत में दिवाली की लडिय़ों से लेकर खिलौनों, हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां और बाजार ऐसे कई चीनी सामानों से अटे पड़े हैं। शस्त्रों और आयुद्धों में भी भारत, चीन से पीछे है। देश में देशी क्षमता बढ़ाने के लिए लंबे वक्त की रणनीति जरूरी है। 1962 में नेहरू काल में भारत-चीन युद्ध हुआ था, वैसा ही उससे कुछ अलग हटकर मोदी वर्तमान में चीन से युद्ध कर रहे हैं। कोविड-19 ने वैसे भी भारत को हलाकान कर रखा है। हमारा देश महान इसलिए कहलाता है कि वह समाधान में मानता है। समाधान का संधि विग्रह करें तो सम प्लस आधान। आधान का अर्थ ‘छोडऩा’ भी होता है। जिसका अर्थ यह हुआ कि समान रूप से छोडऩा। महत्वपूर्ण तो यह है कि उभय पक्ष को समान रूप से छोडऩे का कार्य करना याने समाधान करना।
भय बिन प्रीत नाही
भय से कहीं अधिक भयावहता अधिक भयानक है। कहा यह भी जाता है कि ‘भय बिन प्रीत नाही’ मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में कांग्रेस के भीतर उठे अंर्तद्वद ने वहां की कांग्रेस की सरकारों के दांतों में पसीना आते सभी ने देखा है, जिसका प्रतिसाद छत्तीसगढ़ में यह हुआ कि सूबे के मुखिया ने बहुप्रतीक्षित निगम, मंडल में विधायकों और वरिष्ठ कांग्रेसियों को पदारूढ़ किया। साथ ही अनेक पार्टी विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करके उन्हें संतुष्ट किया है। अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस में तोडफ़ोड़ होने के अवसर नहीं के बराबर है। इसे मजबूरी का नाम महात्मा गांधी भी कह सकते हैं। अभी तो यह भूपेश सरकार की प्रथम सूची है। दूसरी सूची भी जारी होगी, क्योंकि अभी कई समर्पित निष्ठावान कांग्रेसियों को संतुष्ट करना भी जरूरी है। चुनावी बेला में टिकट आवेदकों के तीन नाम अधिकांशत: तय हुए थे। जिन्हें टिकट मिली वे तो भाजपा विरोधी लहर में हजारों वोटों से आसानी से चुनाव जीत गए और जिन्हें टिकट नहीं मिली थी, उन्हें आश्वस्त किया गया था कि उन्हें निगमों, मंडलों में एडजस्ट किया जाएगा। किंतु अधिकांशत: पुन: निर्वाचित विधायकों को ही निगम-मंडलों में तवज्जो दी गई। छूटे हुए नेताओं को अब दूसरी सूची का इंतजार है।
श्रेष्ठ शासक सर्वश्रेष्ठ ‘कोरियोग्राफर’ होता है
हम बेखुदी में तुमको पुकारे चले गए
सागर को जिंदगी में उतारे चले गए
दिखा दिए हम तुम्हें बनके दीवाना
उतरा जो नशा तो हमने ये जाना
सारे वो जिंदगी के सहारे चले गए
हम बेखुदी में…
चंपक ने यह गाना सुनाया और मंडली हंस पड़ी। कांग्रेस प्रेमी राजनीतिज्ञों की हालत कुछ ऐसी ही है चंपक। जीतू मुदलियार, नवाज खान, श्रीकिशन खंडेलवाल, शरद चितलांग्या, निखिल द्विवेदी, कुतुबु भाई जैसे अनेक अब दूसरी सूची का इंतजार कर रहे हैं। मायूसी के आलम में उम्मीद कायम है। क्यों कि मुखिया ने तो पहले से ही राजनांदगांव जिले से विधायक दलेश्वर, भुनेश्वर, धनेश पटिला, इंदरशाह मंडावी क्रमश: छग राज्य ग्रामीण एवं अन्य पिछड़ा वर्ग विकास प्राधिकरण प्रभार, अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष, अन्त्यावसायी सह. वित्त एवं विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया है। उक्त तीनों साहू, बघेल और पटिला को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त है। मंडावी संसदीय सचिव बनाए गए हैं और इन्हें राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है। हफीज खान को पहले ही अल्पसंख्यक आयोग का सदस्य बनाया गया है। राजनीति के वजन में इस पद को हलवा कहा जा रहा है।
नवनियुक्त उक्त सभी ने सीएम का आभार मानते हुए अपने को मिली जिम्मेदारियों का निष्ठापूर्वक वहन व राज्य का विकास करने का वचन दिया दिया है। स्वाभाविक है इससे मुखिया निश्चिंत हुए होंगे। सूबे के मुखिया के पास वित्त विभाग भी है। याने तिजौरी की चाबी उन्हीं के पास है। अब निगम, मंडलों, संसदीय सचिवों का सैकड़ों करोड़ों का भार भी सरकारी तिजोरी पर आ पड़ा है। मुखिया भी अपनी जिम्मेदारी को निभाना जानते हैं। उनकी मंजूरी के बगैर कोई भी नवनियुक्त मंत्री या अध्यक्ष रुपया खर्च नहीं कर पायेगा। जिस जरूरी कामों को मुखिया समझेंगे, तभी फाइल की नोटशीट पर सही कर खर्च करने की अनुमति देंगे।
वैसे खजांची किसी कोरियोग्राफर से कम नहीं होता। वे जैसा नाच नचायेंगे, वैसे ही सभी को नाचना होगा। इतिहास पर नजर डालेंगे तो विश्व के श्रेष्ठ शासक सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफर साबित हुए हैं। नाचना यह हमारा राष्ट्रीय गुण बन गया है। नाचने के भी अलग-अलग प्रकार होते हैं। प्रकारों के आधार होते हैं। सरकार के अलग-अलग कानून और परिपत्र भी हैं। जैसा कानून, वैसा ही सरकारी बाबुओं का डांस होता है। नाचना यह केवल कला ही नहीं है, अपने अस्तित्व को टिकाने के लिए अनिवार्य जरूरत भी बन गया है। विश्व के अधिकांश सत्ताधीश अपने अफसरों को उत्तम प्रकार का डांस कराने वाले सर्वोत्तम सत्ताधीशों के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं। जनता भी नाचती है, बस नचाने वाला चाहिए।
नदी-नाले सूखे, खेत प्यासे, फिर कैसी हरियाली?
छत्तीसगढ़ वैसे परंपरा और त्यौहारों का प्रदेश है। हरेली पर्व जिसे हरियाली अमावस्या भी कहा जाता है, इसी दिन से प्रदेश में त्यौहार और पर्वों का सिलसिला शुरू होता है। गांवों में हरेली त्यौहार का अपना अलग महत्व है। किसान इस दिन अपने कृषि यंत्रों की साफ-सफाई के उपरांत पूजा-अर्चना करते हैं और अच्छी फसल की कामना के साथ त्यौहार मनाते हैं।
शहरवासी को याद है, एक दौर वह भी था, जब हरेली आने के पहले खेतों में धान फसल लहलहाती नजर आती थी। खेतों की बियासी जैसे कार्य पूरे हो चुके होते थे। हरेली पर कृषि औजारों को धोने का काम गांव की गलियों में बहने वाले पानी से किया जाता था। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण संतुलन बिगड़ा और अब समय पर आवश्यकता अनुरूप बारिश भी नहीं होती। खेतों में लहलहाती फसल भी नजर नहीं आ रही है।
खेती को मानसून का जुआं कहा जाता है। समय पर अच्छी वर्षा हुई तो खेती भी अच्छी होती है। किसान इन दिनों अच्छी बारिश के इंतजार में आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। आधा सावन बीतने को है, पर नदी-नालों में पानी की धार नजर नहीं आ रही। खेतों में दरारें पडऩे लगी हैं। लगता है मानसून भटक गया है। सोमवार को हरेली का त्यौहार परंपरागत ढंग से मना, ऐसे में किसानों को उम्मीद है हरेली पर मानसून मेहरबान जरूर होगा।
गोबर से निजात दिलाएगी गोधन न्याय योजना
पूर्ववर्ती रमन सरकार ने प्रदेश में आवारा मवेशियों को व्यवस्थित करने के लिए गोकुल नगर योजना की शुरूआत की थी। प्रदेश के पहले गोकुल नगर की स्थापना और इसकी शुरूआत भी नांदगांव में डॉ. रमन सिंह द्वारा की गई थी। वैसे गोकुल नगर का क्रियान्वयन अपेक्षित रूप से नहीं हो पाया और नांदगांव शहर आज भी आवारा मवेशियों से परेशान है। अब भूपेश सरकार हरेली त्यौहार पर गोधन न्याय योजना की शुरूआत करने जा रही है। इस योजना को लेकर लोगों में कौतूहल भी है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में। क्योंकि गांवों में लोग गोबर का महत्व और उसका उपयोग करना अच्छी तरह जानते हैं। शहरी क्षेत्रों में गोबर एक बड़ी समस्या बनी हुई है। सडक़ पर यदि गोबर पड़ा है तो मजाल है कि कोई उसे वहां से हटाकर उस जगह को साफ कर दे। इसके उलट गांवों में लोग गोबर की कीमत और महत्व को जानते हैं, इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि गोधन न्याय योजना से अपना शहर भी गोबरमुक्त होगा। लोगों को गोबर की कीमत भी समझ में आएगी जब सरकार इसे दो रूपए में खरीदने के बाद कंपोस्ट खाद बनाकर किसानों को बेचेगी। भूपेश सरकार की इस योजना को अधिकांश लोग अभी से सराह भी रहे हैं, किंतु इसके बेहतर क्रियान्वयन का सारा दारोमदार जिला प्रशासन पर निर्भर है। यह योजना सफल हुई तो यह निश्चय ही देश ही नहीं, विदेशों के लिए भी एक बेहतर व कारगर योजना साबित होगी।
जिला अस्पताल में कोरोना से हडक़ंप!
देश के साथ-साथ जिले में शुरूआती दौर में कोरोना को लेकर लोगों में जो दहशत थी, वह अब नजर नहीं आ रही। लोग अब इसके आदी हो चुके हैं, लेकिन जब अपने आसपास में ही कोई कोरोना मरीज मिल जाए तब डर तो लगता है साहब। डरना लाजिमी है। ऐसा ही कुछ हुआ जिला अस्पताल में, जब डिलीवरी के लिए भर्ती एक महिला कोरोना पाजिटिव निकल आई। फिर क्या था, अस्पताल प्रबंधन पर पहाड़ टूट गया। आनन-फानन में उस महिला को रायपुर एम्स रेफर किया गया। साथ ही जिला अस्पताल में प्रवेश हेतु सख्ती बरती जाने लगी। डिलीवरी वार्ड में भर्ती अन्य प्रसूताओं को भी वहां से दूसरे वार्ड में शिफ्ट किया गया। पूरे अस्पताल के वार्डों और कमरों का सेनिटाइजेशन कराना पड़ा। उस महिला के संपर्क में आने वाले सभी स्वास्थ्य कर्मियों और परिजनों का सेंपल लेकर कोरोना टेस्ट के लिए रायपुर भेजना पड़ा। वह महिला हाल ही में नागपुर से शहर लौटी थी, इसीलिए संदेह के आधार पर उसका कोरोना टेस्ट कराया गया और संदेह भी सच साबित हुआ।
शहरवासी इस बात के लिए उन डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य कर्मियों का तहेदिल से शुक्रगुजार है, जो लोग इस वैश्विक महामारी के भयावह दौर में भी अपनी जान को जोखिम में डालकर मरीजों के उपचार और सेवा मेें लगे हुए हैं।
एक भजन मां बमलेश्वरी के चरणों में
हे काल के पंजे से माता बचाओ
जय मां बम्लेश्वरी…
हे नाम रे सबसे बड़ा तेरा नाम
ओ शेरो वाली, ऊंचे डेरों वाली
बिगड़ी बना दे मेरे काम, नाम रे…
ऐसा कठिन पल, ऐसी घड़ी है
विपदा आन पड़ी है
तू ही दिखा अब रस्ता माता
ये ‘कोरोना’… रस्ता रोके खड़ी है
मानव जीवन बना इक संग्राम…
ओ शेरो वाली, ऊंचे डेरो वाली
जय मां बम्लेश्वरी….
– शहरवासी