चुनावों के समय विधायकों का अपनी पार्टी से मोहभंग होना और पाला बदलना वैसे तो कोई नई बात नहीं है लेकिन अगर विधायकों के पार्टी के मोहभंग से 5 सालों में पांच सरकारें गिर जाए तो लोकतंत्र में व्यवस्थाओं को लेकर भी सवाल उठना स्वभाविक है।
सवाल चुनावी सीजन में नेताओं के दल बदलने का सिलसिला वैसे तो काफी पुराना है। देश इस समय चुनावी मोड में है। पश्चिम बंगाल समेत देश में इस समय पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे है और चुनाव के समय विधायकों और नेताओं के पाला बदलने का सिलसिला जारी है। हाल में ही चुनावी राज्य केरल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीसी चाको ने पार्टी के अलविदा कह दिया है। वहीं चुनावी राज्य पुडुचेरी में भी विधायकों के दल बदलने से ठीक चुनाव के समय नारायणस्वामी सरकार ने सदन में अपना विश्वासमत खो दिया और सरकार गिर गई।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि साल 2016-2020 के दौरान हुए विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों के समय कांग्रेस के 170 विधायक दूसरे दलों में शामिल हो गए। इस दौरान मध्यप्रदेश समेत पांच राज्यों में सरकारें गिर गईं। मार्च 2020 में मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायक एक साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। कांग्रेस विधायकों के एक साथ पार्टी छोड़ने से मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी और 20 मार्च 2020 को कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
मध्यप्रदेश के साथ कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन की सरकार भी विधायकों के दल बदल के चलते गिरी और वहां भाजपा की सत्ता में वापसी हुई। इसके साथ अरुणाचल प्रदेश में सितंबर 2016 में कांग्रेस सरकार उस समय गिर गई जहां मुख्यमंत्री पेमा खांडू के साथ पार्टी के 44 में 43 विधायक दलबदल कर भाजपा समर्थित फ्रंट में शामिल हो गए। इसके साथ मणिपुर और गोवा में राज्य सरकार विधायकों के दल बदल के कारण गिर गई।
वैसे 2016-2020 के दौरान विभिन्न दलों के 405 विधायकों ने अपनी पार्टी छोड़ी दी और फिर से चुनावी मैदान में हाथ आजमाया। इनमें से सबसे ज्यादा 182 विधायक भाजपा में शामिल हुए। वहीं, 28 विधायक कांग्रेस और 25 विधायकों ने तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) को अपना नया ठिकाना बनाया। जबकि भाजपा के सिर्फ 18 विधायकों ने दूसरी पार्टियों का दामन थामा।
विधायकों के दल बदलने का साया लोकसभा और राज्यसभा चुनाव पर भी पड़ा। साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पांच सांसद भाजपा छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हुए। 2016 से 2020 के दौरान कांग्रेस के 7 राज्यसभा सदस्य दूसरी पार्टियों में गए। इस दौरान पार्टी बदलकर फिर से राज्यसभा चुनाव लड़ने वाले 16 राज्यसभा सदस्यों में से 10 भाजपा में शामिल हुए। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2020 के बीच देश में कुल 433 विधायक और सांसदों ने दलबदल कर फिर से चुनाव लड़ा।