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नवरात्र के दूसरे दिन कैसे करें मां ब्रम्हचारिणी की पूजा, जानिए कथा और भोग विधि

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मां दुर्गा की अराधना के महापर्व नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा के बाद नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता के इस अवतार का अर्थ तप का आचरण करने वाली देवी होता है। इनके हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल है। मान्यता है कि जो इनकी पूजा करते हैं वो हमेशा ऐश्वर्य का सुख भोगते हैं। शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने उनके पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। यही कारण है कि इनका नाम ब्रह्मचारिणी कहा गया है।

कैसे करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

सुबह उठें और नहा-धोकर कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मंदिर में आसन पर बैठकर मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें और उन्हें फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें। मां को दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं और भोग भी लगाएं। मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी को पिस्ते की मिठाई बेहद पसंद है तो उन्हें इसी का भोग लगाएं। इसके बाद माता को पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें। मंत्रों का जाप करते हुए गाय के गोबर के उपले जलाएं और उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा अर्पित करें। हवन करते समय ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रूं ब्रह्मचारिण्‍यै नम:। मंत्र का जाप करें।

भोग कैसे लगाएं

पिस्ते की मिठाई के अलावा मां को गुड़हल और कमल का फूल पसंद है। पूजा के समय इन्हीं फूलों की माला मां के चरणों में अर्पित करें। मान्यता यह भी है कि मां को चीनी, मिश्री और पंचामृत बेहद पसंद है, इसका भोग लगाएं। ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं।

मां ब्रह्मचारिणी की कथा

मां ब्रह्मचारिणी ने हिमालय के घर जन्म लिया था। यहां नारदजी के उपदेश के बाद वो शिवजी को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थीं, जिसके लिए उन्होंने घोर तपस्या की। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। उन्होंने तीन हजार सालों तक टूटे हुए बेल पत्र खाए थे। वे हर दुख सहकर भी शंकर जी की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने बेल पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार सालों तक उन्होंने निर्जल और निराहार रहकर तपस्या की। जब उन्होंने पत्ते खाने छोड़े तो उनका नाम अपर्णा पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीर्ण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताकर सराहना की। उन्होंने कहा कि हे देवी आपकी तपस्या जरूर सफल होगी। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। मां की आराधना करने वाले व्यक्ति का कठिन संघर्षों के समय में भी मन विचलित नहीं होता है।

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