गर्भ में नहीं मिल रही थी हार्ट-बीट
राजनांदगाँव (दावा)। माँ के गर्भ में लगभग मृत- अवस्था को प्राप्त नवजात को नगर के डॉ. कुमुद मोहोबे मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉक्टर भाई-बहन, डॉ. सुरभि मोहोबे एवं डॉ. सौरभ मोहोबे ने नया जीवन देकर यह सिद्ध कर दिया है कि वास्तव में डॉक्टर इस धरती के भगवान हैं। एक नई-नई माँ बनने वाली महिला श्रीमती ज्योति ताम्रकार, निवासी ग्राम ठाकुरटोला, थाना सोमनी को उसकी पहली डिलीवरी के लिए मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल राजनांदगाँव में भर्ती कराया गया था। डॉक्टर ने जाँच उपरांत गर्भ में बच्चे की मौत होना बताकर उन्हें आपरेशन हेतु रायपुर रेफर कर दिया।
गरीब किसान परिवार इस बात से घबरा गया। उनके पास आपरेशन के लिए आर्थिक समस्या भी बनी हुई थी। ऐसे में किसी ने उन्हें मोहोबे हॉस्पिटल बल्देव बाग में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुरभि मोहोबे से मिलने की सलाह दी। डॉ. सुरभि मोहोबे ने जब प्रसूता की जाँच की तो उन्हें भी ऐसा ही प्रतीत हुआ कि बच्चा मृत अवस्था में है। महिला की जान बचाने के लिए आपरेशन भी जरूरी था। पति और परिजनों की स्वीकृति के बाद आपरेशन कर बच्चे को बाहर निकाला गया। डॉ. सुरभि के भाई और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ मोहोबे ने जब बच्चे का परीक्षण किया तो उन्हें कुछ उम्मीद नजर आयी। उन्होंने बच्चे को एक विशेष मशीन ‘सर्वो कंट्रोल हाइपोथर्मिया’ में रखने का सुझाव दिया। मशीन के द्वारा बच्चे के शरीर का तापमान कम किया गया। इस इलाज के बाद भी बच्चे की आँख की पुतलियाँ फैली हुई थीं। साथ ही ब्रेन वेव्स (ई ई जी) में खराबी दिखाई पड़ रही थी। निष्कर्ष के तौर पर यही बात सामने आ रही थी कि बच्चा मृत अवस्था में है।
जब सारी बातें बच्चे के माता-पिता सहित परिजनों को बताई गईं तो उन्होंने उसे मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल को डोनेट करने का मन बना लिया। डॉक्टर द्वय ने यह निश्चय किया कि क्यों न बच्चे को वेंटीलेटर पर रखकर आर्टिफीसियल साँस दी जाए। छह दिन तक लगातार वेंटिलेटर पर रखने के बाद सातवें दिन बच्चे की स्थिति बेहतर होना शुरू हुई और उसे जीवन मिल पाया। आज पूरे एक माह बाद तामस्कर परिवार अपनी पहली संतान को सकुशल लेकर घर लौट रहे हैं। उनकी खुशी का ओर और छोर दिखाई नही पड़ रहा है।
डॉक्टर भाई-बहन ने परिवार को दी खुशियां
ठाकुरटोला निवासी रवि कुमार तामस्कर एवम उनकी पत्नी ज्योति तामस्कर ने बच्चे के स्वस्थ होने के बाद कहा कि दोनों डॉक्टर भाई- बहनों की अथक मेहनत ने हमारे परिवार को खुशियों का उपहार दिया है। प्रसव के बाद धडक़न न होने से हमने उसे चिकित्सा महाविद्यालय को दान देने का मन बना लिया था, ताकि भविष्य के डॉक्टर उसे अपने अध्ययन का विषय बना सकें। उन्होंने बताया कि वे 10 जून को यहाँ भर्ती हुए थे और आज एक माह बाद गृह लक्ष्मी के रूप में प्राप्त बेटी को सकुशल अपने घर ले जाते हुए डॉक्टर्स का एहसान भगवान से कम नही समझ रहे हैं। दोनों ने डॉक्टर और अस्पताल की खुले हृदय से प्रशंसा की।
रेफर केस को लेकर कर रहे बेहतर इलाज
एक नवजात बच्ची और उसकी माँ को कठिन परिस्थितियों में नया जीवन देने वाले डॉ.सौरभ मोहोबे से जब हमने पूरे मामले को लेकर चर्चा की तो उन्होंने बताया की वे दोनों भाई- बहन ऐसे रेफर केस को लेकर इलाज पहले भी कर चुके हैं। डॉ. द्वय ने बताया की यह अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं कहा जा सकता है। डॉ. मोहोबे ने यह भी बताया कि रेफर केस वाले 200 बच्चों को उनके हॉस्पिटल में नया जीवन मिल चुका है। अभी 11 बच्चे जो कार्डियक अरेस्ट से जूझ रहे थे, ठीक होकर अपने घर जा चुके हैं। इन बच्चों में चार ऐसे बच्चे भी थे जिनका जन्म खुले मैदान तथा एम्बुलेंस में हुआ था। वे सभी बच्चे भी पूर्णत: स्वस्थ होकर अपने घर जा चुके है।