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राजनीति में योग प्रबल बशर्ते…

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शहरवासी घर पर आराम कुर्सी में आराम फरमा रहा था। अभी तक वह दो कप चाय गुटक चुका था। तभी पड़ोसी पंडित जी अपने युवा बेटे को लेकर पहुंच गये। एकाएक मैंने उन्हें देखा। औपचारिकता पूरी कर पूछा- बताइये कैसे आए? वे बोले- मेरे इस बेटे को आप जानते ही हैं। इंजीनियर है। नौकरी पाने बहुत दौड़ धूप व मशक्कत कर चुका। काम मिलता नहीं। ज्योतिष को कुंडली दिखाई थी। उनका मार्गदर्शन है कि इसके राजनीति में गोल्डन चांस हैं। बड़ा बेटा तो पहले से ही राजनीति में है। सालों तक वह पंजे के लिए काम करता रहा। फिर फूल की सरकार में पंगत बदल उसमें चला गया। लेकिन, वहां मजा नहीं आया। ओरिजनल फूल वाले दूसरे दल से आने वाले को स्वीकार ही नहीं करते। अब जब पंजे की सरकार है तो वापस वह पेवेलियन लौट आया है। उस बड़े बेटे की मुझे चिन्ता नहीं है। उसने राजनीति में बहुत पैसे बना लिए। वह चलता-पुर्जा है। मुझे अब इस छोटे बेटे की चिन्ता है। यह भोला है। दांवपेंच नहीं जानता। ऐसे में राजनीति के लिए फिट नहीं है। लेकिन, ज्योतिष मतानुसार राजनीति में ही यह अपनी पहचान और पैसे कमा सकता है। इसके लिए अब आपका मार्गदर्शन जरूरी है।

शहरवासी ने युवा बेटे को ध्यान से देखा। वह स्मार्ट लगा। पंडित का लडक़ा है, इसलिए वाणी विलास तो करता ही होगा। उससे मुखातिब होते हुए मैंने कहा देखो बेटा- राजनीति अब जनसेवा करने कोई नहीं करता। वह सत्ता केन्द्रित हो गई है। अब सत्ता या संगठन में पदों पर बने रहने के लिए पांच तरकीबों पर चलोगे तो मेरी गारंटी है कि इस फील्ड में ऐश करोगे। शहरवासी ने साफ तौर पर उसे कुछ टिप्स देते हुए कहा कि जहां तक हो सके तब तक असत्य का आश्रय लेकर ‘असत्यम् शरणम् गच्छामि’ को कंठस्थ कर जनता के बीच जाओ और तब तक असत्य संभाषण करते रहो, जब तक वह सच न लगने लगे। जिस प्रकार हमारे मंत्रीमंडल का सत्य वही नारायण है, ऐसा ही सतत् समझाते रहो।

दूसरी तरकीब यह कि जहां तक हो सके, ‘यस सर’ या ‘हां जी- हां जी’ करते रहो। ऐसा करने से सकारात्मक वातावरण निर्मित होता है। भले ही, भीतर से अपने को अच्छा न लगता हो, किंतु अपने नेता पार्टी कमान को खुश करने यह जरूरी है। तीसरा महत्वपूर्ण सुझाव यह कि पार्टी आपको जहां फीट करें, वहां फीट हो जाओ। जिस पद पर, जिस स्थिति में रखें, बगैर नानुकूर किए मान जाओ। बड़े से बड़े मंत्री पद पर रहे राजनीतिज्ञ भी ऐसा ही करते हैं। आप को पार्टी कमान को विश्वास दिलाना होगा कि आप निष्ठावान हैं और पार्टी के सच्चे सिपाही व कार्यकर्ता हैं। समझे कि नहीं ?
चौथी सलाह है कि विपक्ष में शामिल होने की जोरदार धमाकेदार अफवाह फैलाना शुरू कर दो और पांचवी व अंतिम सलाह यह कि अगर इतना कुछ करने के बाद भी नहीं जमती है तो राजनीति गई भाड़ में। सब कुछ छोडक़र किन्ही आश्रम से जुडक़र धर्म की राजनीति करो। राजनीति में इस बात पर ध्यान देना कि यहां इगो-फीगो नहीं चलता। सीनियर होने के बावजूद जूनियर के हाथ के नीचे काम करना पड़ सकता है। इसके लिए भी तैयार रहना होगा। देखो, सत्ता के नजदीक रहने, इन्हीं सभी मश्वरों पर काम करना होगा, शहरवासी ने कहा।

निगम में दुकान आबंटन पर राजनीति
नगर निगम इन दिनों दुकानों के आबंटन को लेकर राजनीतिक अखाड़ा बना हुआ है। भाजपा वाले महापौर हेमा देशमुख पर कमला कालेज के पास की दुकानों के आबंटन में भाई-भतीजावाद का आरोप लगा रहे हैं। इसके जवाब में सत्तापक्ष वाले पूर्व महापौर मधुसूदन यादव के कार्यकाल में दो सौ दुकानों के आबंटन में गड़बड़ी का आरोप लगा रहे हैं। सत्तापक्ष का कहना है कि महापौर पर आरोप लगाने वाले पहले अपनी पार्टी यानि भाजपा के महापौर मधुसूदन यादव के कार्यकाल में दुकानों के आबंटन में भ्रष्टाचार की पहले जांच करा लें। उसके बाद महापौर हेमा देशमुख पर आरोप लगाएं। नेता प्रतिपक्ष किशुन यदु दुकानों के आबंटन में गड़बड़ी को लेकर मोर्चा खोले हुए हैं।

निगम में सत्तासीन कांग्रेस द्वारा जब पूर्व महापौर के कार्यकाल में दुकानों के आबंटन में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की गई, तब यह चर्चा सरगर्म होने लगी थी कि निगम में विपक्षी दल भाजपा ने दुकान आबंटन के मामले को छेडक़र एक तरह से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है, क्योंकि पूर्व महापौर मधुसूदन यादव के कार्यकाल में दुकानों के आबंटन में गड़बड़ी को लेकर समय-समय पर चर्चा होती रही है। रानीसागर-बूढ़ासागर के सौंदर्यीकरण में भ्रष्टाचार को लेकर भी लंबे समय से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। लेकिन अब यह दांव कांग्रेस पर ही भारी पड़ते दिख रहा है। क्योंकि हाल ही में मधुसूदन यादव ने कलेक्टर को पत्र लिखकर अपने कार्यकाल में हुए दुकानों के आबंटन की जांच कराकर उसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग जो कर दी है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं जांच रिपोर्ट में यदि सब कुछ सही निकला तो क्या होगा? और कांग्रेस-भाजपा द्वारा एक-दूसरे पर लगाए गए आरोप यदि सच साबित हो गए, तब क्या होगा? शहरवासी को कलेक्टर साहब द्वारा पूरे मामले की जांच कराकर रिपोर्ट सार्वजनिक करने का इंतजार रहेगा।

आपराधिक घटनाओं से पुलिस हरकत में
शहर सहित जिले में जिस तरीके से आए दिन आपराधिक घटनाएं हो रही हैं, उससे पुलिस प्रशासन की नींद उड़ी हुई है। पखवाड़े भर के भीतर हत्या की पांच-छह घटनाओं सहित चोरी, लूटपाट, बलात्कार, ठगी, डकैती से आम जनमानस में असुरक्षा की भावना घर कर गई है। इन घटनाओं को लेकर राजनीतिक दलों सहित अन्य संगठनों ने भी चिंता जताते हुए पुलिस कप्तान को ज्ञापन देकर इन घटनाओं पर रोक लगाने की मांग कर डाली। बस फिर क्या था, पुलिस की नींद टूट गई और आनन-फानन में आदतन अपराधियों व बदमाशों की धरपकड़ शुरू कर दी। इतना ही नहीं पुलिस ने शहर में मार्च पास्ट भी किया। मानव मंदिर चौक पर सैकड़ों की संख्या में पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में जवानों ने एक तरह से शक्ति प्रदर्शन कर आम जनता सहित बदमाशों को संदेश देने का प्रयास किया कि हम हैं ना ? पुलिस जवानों की एक साथ इतनी बड़ी तादाद में मौजूदगी देख शहरवासी भी कुछ देर के लिए भौंचक्क रह गया। बाद में पता चला कि इसके माध्यम से अपराधियों को लाल आंख दिखाने का प्रयास किया गया।

शहर में बढ़ती आपराधिक घटनाओं को लेकर पुलिस ने भी एक नया दांव खेला कि दस बजे रात के बाद कोई भी दुकानें खुली नहीं रहेंगी। यानि कि न रहेगी बांस, न बजेगी बांसुरी। जब दुकानें ही बंद हो जाएंगी तो लोग आखिर क्यों बेवजह घूमते फिरेंगे? लेकिन यह सब पुलिस का अपना तर्क हो सकता है। शहरवासी तो चाहता है कि शहर में पहले की तरह पुलिसिंग व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त की जाए। एक समय था, जब रातों में शहर के हर चौक-चौराहों पर पुलिस के जवान रात 10-11 बजे से सुबह पांच बजे तक तैनात रहा करते थे। उस बीच पुलिस के आला अधिकारी भी शहर भ्रमण कर व्यवस्था पर नजर रखते थे, तब आपराधिक घटनाएं कम होती थीं और रातों में जरूरी कामों से आवागमन करने वाले भी खुद को सुरक्षित महसूस करते थे। सिर्फ रात को दस बजे के बाद दुकानों को बंद करा देने से इस समस्या का हल नहीं निकलने वाला है?

स्वास्थ्य विभाग में डीजल घोटाला?
स्वास्थ्य विभाग डोंगरगांव में हाल ही में डीजल घोटाला सामने आया है। हालांकि इस घोटाले में कितनी सच्चाई है, इसका खुलासा अभी नहीं हुआ है, लेकिन विपक्षी दल भाजपा वाले इस मुद्दे को लेकर आक्रमक नजर आ रहे हैं। मामले को लेकर भाजपाइयों ने डोंगरगांव में विधायक दलेश्वर साहू का न सिर्फ पुतला दहन किया, बल्कि थाने में लिखित शिकायती पत्र देकर एफआईआर दर्ज करने की मांग भी कर डाली। दरअसल यह पूरा मामला इस साल के अप्रैल-मई माह का है, जब कोरोना वायरस का संक्रमण पूरे शबाब पर था। लोग महामारी की चपेट में आकर अपनी जान गवां रहे थे। लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण मृतकों के शवों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की भी दरकार थी। अखबारों में लगातार खबरें प्रकाशित होने के बाद सबसे पहले सांसद संतोष पांडेय ने एंबुलेंस की व्यवस्था कराई। उसके बाद स्थानीय विधायक दलेश्वर साहू द्वारा एंबुलेंस की व्यवस्था मरीजों के लाने-ले जाने के लिए कराई गई। उनमें से एक एंबुलेंस वाहन सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र डोंगरगांव का था, जो काफी समय से बंद पड़ा था। विधायक द्वारा दो एंबुलेंस की व्यवस्था के साथ ही दो वाहन चालक भी नियुक्त किए गए, जिनके द्वारा एंबुलेंस में जरूरत पडऩे पर डोंगरगांव फ्यूल्स से डीजल भरवाया गया, किंतु बिल दलेश्वर साहू के नाम पर बना और डीजल की राशि का भुगतान बीएमओ डोंगरगांव द्वारा कर दिया गया। इसी बात को लेकर पूरा बखेड़ा खड़ा हुआ है। कहा जा रहा है कि यदि डीजल सरकारी एंबुलेंस में डलवाया गया था तो बिल बीएमओ/सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के नाम पर बनाया जाना चाहिए। और यदि एंबुलेंस के लिए डीजल का बिल दलेश्वर साहू के नाम पर बना है तो यही माना जाएगा कि उन्होंने मरीजों के लिए एंबुलेंस तो उपलब्ध कराई, किंतु उसमें लगने वाले डीजल की राशि का भुगतान सरकारी पैसे से कराया गया। इस तरह से विधायक द्वारा झूठी वाहवाही बटोर ली गई, ऐसा भाजपा वालों का कहना है। बहरहाल इतना सब कुछ होने के बावजूद विधायक दलेश्वर साहू इस मामले को लेकर खुलकर कुछ भी नहीं बोल रहे हैं, इसलिए भाजपा के आरोपों को बल मिलने लगा है। सच्चाई जो भी हो विधायक को स्पष्ट करना चाहिए।

नवरात्रि में पदयात्रा न मेला, सिर्फ दूर से दर्शन
कहते हैं प्रकृति के सामने किसी का वश नहीं चलता। एक ओर कोरोना महामारी का प्रकोप और दूसरी ओर मौसम की मार के कारण त्यौहारों में अब पहले जैसी न तो रौनक नजर आ रही है और न ही लोगों में उत्साह। कुछ ऐसा ही रहा था इस बार शहर का गणेश उत्सव। कोरोना संक्रमण के डर और संभावित तीसरी लहर की आशंका के बीच प्रशासन ने गणेशोत्सव को लेकर ऐसी पाबंदी लगाई कि लोगों की सारी तैयारी धरी की धरी रह गई। छोटी मूर्तियां और छोटे पंडालों में गणेश प्रतिमाओं के बीच न तो कोई आयोजन और न ही स्थल सजावट न झांकी हालांकि तमाम प्रतिबंधों के बीच कुछ उत्साही लोगों ने डीजे की धुन पर गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया और एक-दो झांकियां भी निकाली गई। आगामी क्वांर नवरात्र को लेकर भी प्रशासन ने कुछ इसी तरह के फरमान जारी कर दिया है। नवरात्रि में डोंगरगढ़ में लगने वाला मेला इस बार नहीं लगेगा। इस बार न तो पदयात्री नजर आयेंगे और न ही कोई भीड़भाड़। श्रद्धालुओं को मां बम्लेश्वरी का दर्शन करने के लिए पहले रजिस्ट्रेशन कराना होगा। साथ ही कोरोना प्रोटोकाल का पालन करना होगा। कुल मिलाकर नवरात्रि में स्थिति ऐसी रहेगी कि भक्तगण माता जी का दर्शन सिर्फ दूर से ही कर सकेंगे। शहर सहित जिले में वैसे कोरोना का संक्रमण लगभग थमा हुआ है, इसलिए शहरवासी चाहता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा हम सबको कोरोना महामारी से हमेशा के लिए मुक्ति दिलाए, ताकि आम जनजीवन पहले की तरह सामान्य हो।

कौंआ भी श्रेष्ठ पालिटिशियन?
श्राद्ध पक्ष चल रहा है। कौएं की वेल्यू बढ़ गई है। कई समाजों में अपने पितृओं की आत्मा की शांति प्रदान करने, उनका आशीर्वाद लेने और स्वयं के सुख-चैन से जीवन व्यतीत करने श्राद्धपक्ष में कौएं को भोजन कराया जाता है। घर की छत पर या छज्जे पर थाली में दाल-चावल-रोटी रखा जाता है। कौएं भी चतुर-चालाक होते हैं। वह भी अपनी मातृभाषा में आदमी से कहता है कि आप को सुख चैन चाहिए तो आप यहां सही जगह पर आए हैं।
बाबूलाल ने जब अपनी इस सोच से शहरवासी को अवगत कराया तो शहरवासी के ठहाके फूट पड़े। वह बोला-यार मैं हाल ही में एक आई स्पेशलिस्ट की आई क्लीनिक में आंख दिखाने गया था। तभी बाहर बोर्ड पर लिखा था कि ‘‘आप को जो देखना हो, वह न देख सकते हों तो आप यहां सही जगह पर आए हो। इस पर से प्रतीत होता है कि कौंआ भी श्रेष्ठ पालिटिशियन है।

  • असद भोपाली के एक फिल्मी गीत
    की चंद पंक्तियां –

    जाने कितने दु:ख सहकर
    पत्थर हीरा बनता है
    बरसों की कुर्बानी से
    इंसान फरिश्ता बनता है
    देखी तेरी दुनिया अरे देखे तेरे काम
    किसी घर में सुबह किसी घर में शाम…
    ये दुनिया है मीत खुशी की,
    दु:ख में शामिल कोई नहीं
    यहां सब हैं घायल करने वाले,
    इनमें घायल कोई नहीं
    जो औरों के दर्द में तड़पे,
    ऐसा दिल कोई नहीं है
    देखी तेरी दुनिया,
    अरे देखे तेरे काम।
    – शहरवासी

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