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रोका-छेका फ्लाप, निगम की मवेशी घरपकड़ खानापूर्ति भी बंद

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शहर सहित हर जगहों के सडक़ों पर मवेशियों का डेरा, हादसे का शिकार हो रहे लोग
राजनांदगांव (दावा
)। शहर सहित जिले में राज्य सरकार की रोका-छेका अभियान का बहुत ही बुरा हाल है। शहर के सभी सडक़ों पर हर जगह मवेशियों का डेरा लगा रहा है। निगम प्रशासन द्वारा खानापूर्ति करते कुछ दिन आवारा मवेशियों की धर-पकड़ करने का दिखावा किया जाता है। वर्तमान में शहर के अंदर निगम के मवेशियों की धरपकड़ की खानापूर्ति भी बंद हो गई है। शहर में हर जगहों पर मवेशियों का राज है। ऐसे में सडक़ों पर मवेशियों की कब्जे से लोग दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं।

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने फसलों की सुरक्षा, किसानों की आय को बढ़ाने और शहरों की सडकों पर घूम रहे मवेशियों से होने वाले हादसों को रोकने के उद्देश्य से रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी। लेकिन,शहर सहित जिले में यह अभियान पूरी तरह फेल हो गया है। शासन के निर्देशों के बावजूद निगम सीमा क्षेत्र में हर जगह मवेशी सडकों पर बैठे नजर आते हैं। साथ ही खेतों में पहुंचकर भी मवेशी फसलों को चर रहे हैं।

महत्वाकांक्षी योजना का क्रियान्वयन सिर्फ दिखावे तक
पशुओं की सुरक्षा और सडक़ दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए राज्य सरकार ने रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी, जिसके तहत मवेशियों को गोठानों में रखने की योजना है। शासन की महत्वाकांक्षी योजना का क्रियान्वयन सिर्फ दिखावे तक ही सीमित नजर आ रहा है। निगम क्षेत्र में आज भी मवेशी सडकों पर बैठे नजर आ रहे है। ये मवेशी हादसों को आमंत्रित कर रहे हंै। बारिश के बाद मवेशी अक्सर मुख्य सडक़ों पर बैठ जाते है, जिनकी चिंता न निगम प्रशासन कर रहा है और न ही यातायात विभाग। बता दें कि प्रदेश में रोका-छेका अभियान कहीं धीमा तो कहीं ठप है। राज्य सरकार ने फसलों की सुरक्षा और किसानों की आय को बढ़ाने के लिए कृषि की परंपरा रोका-छेका अभियान की शुरुआत की थी। शहरों की सडकों पर घूम रहे मवेशियों से होने वाले हादसों को रोकने के लिए भी यह कदम अहम माना गया। पकड़े गए मवेशियों को कांजी हाउस और गोठानों में रखने के आदेश दिए गए है। लेकिन ज्यादातर जगहों पर तस्वीर इसके विपरीत नजर आ रही है।

क्या है रोका-छेका और क्यों है जरुरी
रोका-छेका पुराने समय से ग्रामीण जिंदगी का अभिन्न हिस्सा रहा है। खरीफ फसल की बोआई के बाद फसल की सुरक्षा के लिए पशुधन को गोशालाओं में रखने की प्रथा रही है, ताकि मवेश खेतों में न जा पाएं और फसल सुरक्षित रहे। मवेशियों को संरक्षित करना, फसलों को मवेशियों से बचाना और गोबर से कुदरती खाद बनाना इसका मुख्य उद्देश्य है। लेकिन राज्य सरकार की इस महती योजना शासन-प्रशासन की अनदेखी से फ्लाप साबित हो रहा है।

इन क्षेत्रों में हर जगहों मवेशियों का जमावड़ा
नगर निगम प्रशासन ने घूमंतू मवेशियों की धरपकड़ वाला अभियान चुपके से बंद कर दिया। शहर के बाहरी हो या भीतरी मार्ग, मवेशियों का झुंड आवागमन में बाधा पहुंचाने के साथ हादसों का कारण बन रहे हैं। नगर निगम की मवेशियों की धरपकड़ के लिए गठित टीमें शहर के बाहरी क्षेत्रों में तो पहुंची ही नहीं। मोतीपुर से नाया ढाबा, शांतिनगर से पुराना ढाबा, लखोली, नंदई, बसंतपुर, पेंड्री व मोहारा जैसे क्षेत्रों में दिन-रात मवेशी सडक़ पर देखे जा सकते हैं। खैरागढ़ व डोंगरगांव मार्ग पर भी घुमंतू मवेशियों को पूरे समय जमावड़ा देखा जा सकता है। घुमंतू मवेशियों को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कत नंदई क्षेत्र में है। आसपास के पशुपालक अपने मवेशियों को दिन में तो खुला छोडक़र रखते ही हैं। रात में भी घर नहीं ले जाते। सिर्फ दूध निकलाने के समय ही बांधकर रखा जाता है।

आवारा मवेशियों की धरपकड़ अभियान लगातार जारी है। पशु पालकों द्वारा सहयोग नहीं किया जा रहा है। दूध निकालने के बाद पशुपालक मवेशियों को सडक़ों पर छोड़ दे रहे हैं। निगम की टीम मवेशियों को पकडऩे लगातार संघर्ष कर रहा है।
– डॉ.आशुतोष चतुर्वेदी, आयुक्त नगर निगम

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