बरसों पहले एक फिल्म आई थी- रोटी, कपड़ा और मकान। उस फिल्म का एक गाना काफी लोकप्रिय हुआ था- …बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई। इस गाने में तत्कालीन परिस्थितियों और आम आदमी की समस्याओं को बयां किया गया था, जो आज भी वर्तमान में चरितार्थ हो रही है। उसके बाद महंगाई को लेकर एक और गाना काफी मशहूर हुआ- सैंया तो रोज ही कमात हैं, महंगाई डायन खाय जात हैं। महंगाई पहले भी थी, आज भी है और भविष्य में रहेगी। क्योंकि देश की आबादी बढ़ रही है। लोगों की जरूरतें बढ़ रही है। जरूरी सामानों की मांग बढ़ रही है और आपूर्ति घट रही है। उत्पादन कम हो रहा है और खाने वाले बढ़ रहे हैं। इसे ही अर्थशास्त्र में मांग और आपूर्ति का नियम कहा गया है। यह सब तो सिद्धांत की बातें है, लेकिन व्यवहार में हर सिद्धांत को लागू किया जाना संभव नहीं जान पड़ता। समय के साथ परिस्थितियां भी बदल रही हैं, लेकिन हर समस्या का हल महंगाई बढ़ाना तो नहीं है। अच्छे दिनों का वादा कर सत्ता में बैठी मोदी सरकार ने महंगाई का ऐसा बाण छोड़ रखा है कि आम आदमी महंगाई की मार के दर्द से कराह रहा है। ऐसा कोई क्षेत्र शेष नहीं रह गया है, जहां महंगाई का बुरा असर न पड़ा हो। मनमोहन सिंह के शासन में जिन चीजों के दाम पचास पैसे बढऩे पर हंगामा, पुतला दहन और जन आंदोलन करने वाले भाजपा नेता महंगाई के मुद्दे पर खामोश हैं। पेट्रोल-डीजल, गैस सिलेंडर और खाद्य पदार्थों सहित खाद्य तेल के लगातार बढ़ते दाम से आम आदमी का जीना दूभर हो चला है। दूसरी ओर प्रदेश में सत्तारूढ़ कांग्रेस भी केन्द्र द्वारा आए दिन बढ़ाई जा रही महंगाई को लेकर कोई ठोस विरोध प्रदर्शन भी नहीं कर पा रही है, जिससे केन्द्र सरकार पर दबाव बने और लोगों को कोई राहत मिल सके। कांग्रेसी भी आम आदमी की परेशानियों और समस्याओं को लेकर ज्यादा गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। वे न तो कोई आंदोलन चला पा रहे हैं और न ही आम जनता से मिलकर उनकी समस्याएं सुन रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा वालों ने महंगाई के मुद्दे पर चुप्पी साधकर आम आदमी को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है कि इस महंगाई के दौर में लोगों को कैसे जीना है, वे ही जानें। दोनों दलों की चुप्पी स्वभाविक लगती है, क्योंकि अभी कोई आम चुनाव भी नहीं होने वाला है। जब चुनाव करीब आएगा, तब यही लोग उनके पास जाकर बड़ी-बड़ी बातें करके वोट मांगेंगे। इससे इतर प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल को अब डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव के मद्देनजर आम जनता की याद आ रही है, इसीलिए वे भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के तहत प्रदेश का दौराकर स्वआकलन कर रहे हैं कि उनकी सरकार की धरातल में क्या स्थिति हैं? जनता को क्या-क्या परेशानी है, क्या-क्या समस्याएं हैं? प्रशासनिक स्थिति क्या है?
भेंट-मुलाकात करने कब आयेंगे कका ?
प्राय: सबको पता है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लोग कका के नाम से संबोधित करते हैं और जानते हैं, ठीक वैसे ही जैसे पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को लोग चाऊर वाले बबा कहकर पुकारते थे। अब जबकि कका पूरे छत्तीसगढ़ का दौरा कर रहे हैं और लोगों के बीच पहुंचकर उनसे उनकी समस्याओं का जायजा ले रहे हैं, ऐसे में शहरवासी को यहां कका के आने का बेसब्री से इंतजार है। वैसे तो प्रदेश की सत्ता में बैठे कांग्रेस को साढ़े तीन साल पूरे हो चुके हैं, किंतु शहरवासी को याद है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस अवधि में सिर्फ एक ही बार शासकीय कार्यक्रम में राजनांदगांव आए थे, जब स्टेट स्कूल मैदान में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने राजीव आश्रय योजना के हितग्राहियों को पट्टा वितरण किया था। उसके बाद उनका तीन-चार बार और नांदगांव आगमन हुआ होगा, शहरवासी को जहां तक याद आ रहा है, वह कोई बड़ा आयोजन नहीं, बल्कि पार्टी नेताओं का निजी आयोजन था, जिसमें श्री बघेल आए थे। उसके बाद इन साढ़े तीन सालों मेें मुख्यमंत्री का राजनांदगांव में कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं हुआ है। नांदगांव से मुख्यमंत्री की दूरी को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं आम हैं। कोई कहता है कि यहां का विधायक भाजपा का है, इसलिए उन्हें नांदगांव से कोई मतलब नहीं है। कोई कहता है कि नांदगांव भाजपा का गढ़ है, इसलिए श्री बघेल यहां आना पसंद नहीं करते। कोई कहता है कि नांदगांव के कांग्रेसी आपस में एक नहीं हैं और कई गुटों में बंटे हुए हैं, इसलिए मुख्यमंत्री अपनी ही पार्टी के नेताओं से नाराज चल रहे हैं। लेकिन आम आदमी को इन बातों से क्या लेना-देना? जनता तो अपने शहर और जिले के विकास से मतलब है, सरकार चाहे किसी की हो?
शहरवासी तो चाहता है कि मुख्यमंत्री नांदगांव वासियों से जो भी गिले-शिकवे होंगे, उन्हें भूलकर यहां भी एक बार जरूर आएं और आम जनता से भेंट-मुलाकात करें। वैसे तो हमारे शहर और जिले में कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता हैं, पार्टी के तीन पुरूष और दो महिला विधायक हैं, जो अपने-अपने कार्य क्षेत्र में क्या-कुछ कर रहे हैं, इसकी रिपोर्ट तो आम जनता ही देगी। यहां की जनता भी मुख्यमंत्री के आने का रास्ता देख रही है कि प्रदेश के मुखिया से कब उनकी मुलाकात हो और अपने क्षेत्र के विधायक, पार्टी नेताओं और लापरवाह अधिकारी-कर्मचारियों की शिकायत करें। वैसे भी सीएम बघेल ने प्रदेश के 38 विधायकों के परफारमेंस पर नाराजगी जताई है।
पुलिस के ‘निजात’ को केन्द्र से मिली शाबासी
छत्तीसगढ़ की पुलिस भी अब केन्द्रीय गृह मंत्रालय के गुड बुक में शामिल हो गई है। केन्द्र सरकार के पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो गृह मंत्रालय ने देश के विभिन्न राज्यों की पुलिस एवं अन्य पुलिस संगठनों द्वारा किए जा रहे नवाचार एवं अच्छे कार्यों पर एक किताब का प्रकाशन किया गया है, जिसमें राजनांदगांव पुलिस के निजात अभियान को काफी सराहा गया है। सीएम बघेल द्वारा प्रदेश में नशे के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश के बाद से ही जिला पुलिस सक्रिय होकर लगातार काम कर रही है। नए पुलिस कप्तान संतोष सिंह के आने के बाद से जिले में पुलिस अब पहले की तुलना में ज्यादा सक्रिय हो गई है। तमाम तरह के अपराध और आपराधिक गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए पुलिस पूरी तरह एक्शन मॉड में है। चाहे वह अवैध शराब बिक्री, ड्रग्स, नशे का कारोबार हो या अन्य तरह के अपराध। पुलिस की कार्यशैली काफी फास्ट हो चली है। बड़े से बड़े अपराधी भी अब पुलिस की नजरों से बच नहीं पा रहे हैं। पुलिस की वर्तमान कार्यशैली को देखकर यह बात डंके की चोट पर कही जा सकती है कि वास्तव में कानून के हाथ लंबे होते हैं। पुलिस निजात अभियान के माध्यम से जिले में नशे के खिलाफ अभियान चलाकर लोगों को जागरूक करने का काम कर रही है। यह बात अलग है कि इसके कितने सकारात्मक परिणाम आयेंगे, यह भविष्य के गर्भ में है। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, इसलिए यह अभियान पूरी तरह सफल न भी तो कुछ तो इसके अच्छे नतीजे सामने आयेंगे, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए। हालांकि शहरवासी कई ऐसे पुलिस जवानों को जानता है, जो होटल, पान ठेलों में खुलेआम धूम्रपान करते रहते हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि आम जनता के लिए चलाए जा रहे इस अभियान को पुलिस अपने महकमे में भी लागू करें तो एक अच्छा संदेश जनता तक पहुंचेगा।
ट्रेनें रद्द, यात्रियों की परेशानी बढ़ी
रेल्वे की मनमानी ने यात्रियों की परेशानी बढ़ाकर रख दी है। अधिकांश लोकल ट्रेनों को कर दिया गया है। इससे यात्रियों को आवागमन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। रेल्वे ने छत्तीसगढ़ से गुजरने वाली २४ से अधिक लोकल ट्रेनों को रद्द कर दिया है। इससे रोजाना सफर करने वाले यात्री हलाकान हो रहे हैं। गर्मी और शादी के सीजन में ट्रेनों को रद्द किया जाना यात्रा करने वालों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। ट्रेनें रद्द होने से यात्रियों की भारी भीड़ लग रही है। सपरिवार यात्रा करना काफी मुश्किल काम हो गया है। यहां तक कि सर्वाधिक यात्री ढोने वाली गोंदिया-झारसुगड़ा लोकल भी बंद है। यात्रियों की इस परेशानी को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा रेल्वे से पत्राचार के बाद कुछ रद्द एक्सप्रेस ट्रेनों को चालू रखा गया है, लेकिन अब समस्या तत्काल रिजर्वेशन को लेकर आ रही है। एक्सप्रेस ट्रेनों में तत्काल रिजर्वेशन को लेकर मारामारी की स्थिति निर्मित हो रही है। कहा जा रहा है कि दो माह तक के लिए रिजर्वेशन का कोटा फूल हो चुका है। ऐसे में कोई एक्सप्रेस ट्रेनों में सफर करना चाहे तो मुश्किल हो रहा है। लंबी दूरी के लिए सफर करना भी अब मुश्किल हो चला है, ऐसे में लोगों को निजी वाहनों का सहारा लेना पड़ रहा है या फिर यात्रा को ही रद्द करनी पड़ रही है। मीडिया की खबरों के अनुसार देश में कोयला संकट के चलते हजारों ट्रेनों को भी रद्द कर दिया गया है। ऐसे में आगामी दिनों में राहत मिलने की उम्मीद अभी कम ही नजर आ रही है।
बोरे बासी के बाद मदर्स डे
शहरवासी ने श्रमिक दिवस पर बोरे बासी का मजा लिया। वैसे तो हमने कभी बोरे बासी का सेवन नहीं किया था, लेकिन जब प्रदेश के मुखिया ने उसके फायदे बताए तो हम भी खुद को रोक नहीं पाए। टमाटर चटनी और आचार के साथ बोरे बासी का स्वाद और भी बढ़ गया। दरअसल सीएम भूपेश बघेल ने हमें बताया कि बोरे बासी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। उसमें कैल्शियम, विटामिन, मिनरल्स होते हैं। बोरे बासी के सेवन से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। यह हमारे छत्तीसगढिय़ा खेतिहर मजदूरों और श्रमिकों के बेहतर स्वास्थ्य का राज भी है। मुख्यमंत्री ने स्वयं जमीन पर बैठकर बोरे बासी खाकर लोगों को इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करने का संदेश दिया। मुख्यमंत्री की इस अपील के बाद तो एक तरह से बोरे बासी खाने की होड़ मच गई। प्रदेश के तमाम मंत्रियों, पार्टी पदाधिकारियों ने भी बोरे बासी का मजा लिया। ऐसे में हमारे कलेक्टर और एसपी साहब भला पीछे कैसे रहते। उन्होंने भी बोरे बासी खाया और बकायदा फोटो खिंचवाकर उसे वायरल भी किया। नेताओं ने भी बोरे बासी खाते हुए अपनी-अपनी फोटो को सोशल मीडिया में अपलोड कर दिया, यह बताने के लिए हम अपने प्रदेश के मुखिया के साथ हैं। अब यह बात अलग है कि उस रोज के बाद लोग अब बोरे बासी का सेवन कर रहे हैं या सिर्फ मुख्यमंत्री को दिखाने के लिए औपचारिकता निभाई?
बोरे बासी दिवस के सप्ताह भर बाद आया मदर्स डे। इस डे को लेकर सुबह से लेकर रात तक लोग अपनी-अपनी मां के साथ फोटो खिंचवाकर उसे सोशल मीडिया में अपलोड कर मदर्स डे की बधाई व शुभकामनाएं देते रहे। उनमें से कितने लोग ऐसे हैं जो वास्तव में अपनी जन्मदात्री माताओं का मान-सम्मान करते हैं, यह तो हमें नहीं पता, किंतु एक बात साफ है कि हर आदमी औपचारिक जीवन जीने में ज्यादा यकीन रखने लगा है। लोगों में अपनी-अपनी माताओं के प्रति इतनी ही आदर भावना होती तो आज वृद्धाश्रम की जरूरत ही नहीं पड़ती? हमें इस ओर गहन मंथन की जरूरत है।
भीषण गर्मी का कहर, सब हलाकान
वैसे मौसम कोई भी हो, वह अपने साथ कोई न कोई परेशानी साथ लेकर जरूर आता है। इन दिनों चिलचिलाती गर्मी का दौर जारी है। सूर्यदेव का प्रचण्ड प्रताप पूरे शबाब पर है। भीषण गर्मी से आम जनजीवन हलाकान है। गर्मी से बचने लोग तमाम तरह के जुगत कर रहे हैं। पारा ४४ डिग्री तक पहुंच चुका है। सुबह सात-आठ बजे के बाद ही सूर्य की तेज धूप चुभने लगती है। दोपहर होते-होते सडक़ों पर चहल-पहल कम हो जाती है। सूर्य की आंच से बचने लोगों को दोपहर में अपने-अपने घरों में दुबके रहने में ही भलाई नजर आती है। बहुत जरूरी कामकाज वाले लोगों को ही आते-जाते देखा जाता है। भीषण गर्मी के चलते आदमी तो क्या जीव-जंतुओं की भी हालत पस्त है। सडक़ों पर सुबह-शाम विचरण करने वाले मवेशी भी दोपहर में पेड़ों की छांव में डेरा डाले नजर आते हैं। गर्मी बढऩे के साथ ही बाजार में पंखे, कूलर की मांग भी बढ़ गई है। साथ ही आगजनी की घटनाएं भी बढऩे लगी है। हाल ही में जिले के तीन स्थानों पर आगजनी की घटनाओं में लाखों रूपए के सामान जलकर खाक हो गए। गनीमत रही कि कोई जनहानि नहीं हुई। डोंगरगांव के समीपस्थ साल्हे मन्होरा में एक साथ ११ घर गैस सिलेंडर फटने से जलकर राख हो गए। इसे प्रशासनिक लापरवाही ही कहा जाए कि आग बुझाने फायर ब्रिगेड वहां तक नहीं पहुंच पाया। गर्मी बढऩे के साथ भू-जल स्तर में गिरावट आई है। शहर के कई वार्डों में पेयजल संकट गहराया हुआ है। हालांकि निगम प्रशासन ने टैंकर मुक्त शहर बनाने का दावा जरूर कर रखा है, लेकिन हकीकत कुछ और है। निगम प्रशासन को चाहिए कि अपने वादों पर खरा उतरे।
महंगाई पर नूरेन अंसारी की कविता-
तनख्वाह का कुछ रुपया राशन में गया,
कुछ खर्च हुआ दवाई पर।
थोड़ा बहुत लेन-देन हुआ,
बाकी खर्च हो गया बच्चों की पढ़ाई पर।
और मोहताज हो गया आदमी फिर से पाई-पाई पर,
समझ में नहीं आता कि मैं क्या लिखूं महंगाई पर।
आमदनी है जस के तस, खर्चे बेशुमार हैं,
फूलों के इस शहर में काँटों की बौछार है।
मंडी में पड़ता है जब वास्ता दाल-सब्जी के भाव से,
जमीन खिसक जाती है भईया दिन-दहाड़े पांव से।
ताना मारती है घर में बीबी, शौहर की कमाई पर,
समझ में नहीं आता कि मैं क्या लिखूं महंगाई पर।
सारा नुस्खा फेल हो गया, पॉकेट पे कंट्रोल का,
सरकार हर माह दाम बढ़ाती डीजल और पेट्रोल का।
लोग बड़ी मुश्किल से जिंदगी की बोझ ढो रहे हैं,
हँसते है बस मजबूरी में, पर दिल से रो रहे हैं,
अब यकीन नहीं करता है, कोई अपनी ही परछाई पर,
समझ में नहीं आता कि मैं क्या लिखूं महंगाई पर।।
– शहरवासी