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मुख्यमंत्री को बस्तर दशहरा पर्व में किया गया आमंत्रित, 25 सितम्बर को होगी सबसे महत्वपूर्ण रस्म काछनगादी विधान

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विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए बस्तर दशहरा समिति के सदस्यों ने CM भूपेश बघेल को आमंत्रण दिया है। मुख्यमंत्री ने बस्तर दशहरा में आमंत्रित करने के लिए प्रतिनिधिमण्डल को धन्यवाद दिया । साथ ही आयोजन की सफलता के लिए शुभकामनाएं दी।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से गुरुवार को उनके निवास कार्यालय में उद्योग मंत्री कवासी लखमा और बस्तर सांसद दीपक बैज के नेतृत्व में बस्तर दशहरा समिति जगदलपुर के प्रतिनिधिमण्डल ने मुलाकात की। उन्होंने मुख्यमंत्री को विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व 2022 में शामिल होने का आमंत्रण दिया। मुख्यमंत्री ने बस्तर दशहरा में आमंत्रित करने के लिए प्रतिनिधिमण्डल को धन्यवाद दिया । साथ ही आयोजन की सफलता के लिए शुभकामनाएं दी।

गौरतलब है कि 75 दिवसीय विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व हरेली अमावस्या से प्रारंभ होकर आश्विन शुक्ल पक्ष के 13वें दिन तक मनाया जाता है। देश के तीन भागों में दशहरे की अलग पहचान है, मैसूर (कर्नाटक) एवं किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) के अलावा छत्तीसगढ़ के बस्तर का दशहरा अपने आप में अनूठा है।

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क्यों किया जाता है बस्तर दशरे का आयोजन
चालुक्य नरेश पुरूषोत्तम देव द्वारा पुरी के जगन्नाथ मंदिर जाकर रथपति की उपाधि के साथ वापस लौटने के प्रतीक स्वरूप रथ उत्सव गोंचा पर्व व दशहरा का आयोजन किया जाता है। वर्तमान में बस्तर के निवासियों द्वारा बस्तर अंचल की प्रमुख आराध्य देवी मां दन्तेश्वरी के सम्मान में श्रद्धापूर्वक दशहरा मनाया जाता है। बस्तर दशहरा यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एवं सामाजिक समरसता का प्रतीक है। इस पर्व में समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए कार्य निर्धारित है। बस्तर दशहरा हर वर्ष अद्वितीय उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया जाता है। बस्तर दशहरा देखने के लिए देश-विदेश से हजारों पर्यटक हर वर्ष बस्तर आते हैं।

मुख्यमंत्री को आमंत्रण देने रायपुर आए प्रतिनिधि मण्डल में जगदलपुर विधायक श्री रेखचंद जैन, परगनाकरेकोट के श्री मंगलु मांझी, बारसूर परगना श्री अर्जुन कर्मा, श्री बलराम मांझी, दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी श्री विजेन्द्र सहित अनेक मांझी, चालकी, मेम्बर-मेम्बरीन शामिल थे।

25 सितम्बर को होगी सबसे महत्वपूर्ण रस्म काछनगादी विधान
बस्तर दशहरा की सबसे प्रमुख रस्म काछनगादी है। मान्यता अनुसार पनका जाति की एक बालिका पर काछन देवी आती हैं। जिन्हें बेल के कांटों के झूले में झुलाया जाता है। जिसके बाद बस्तर राज परिवार के सदस्य देवी से बस्तर दशहरा मनाने और रथ की परिक्रमा करवाने की अनुमति लेते हैं। कांटों पर झूलते हुए काछन देवी बस्तर के राज परिवार के सदस्य को दशहरा मनाने की अनुमति देती हैं। यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है।

जगदलपुर के भंगाराम चौक के पास स्थित काछनगुड़ी में यह रस्म होती है। जिसे देखने और माता से आशीर्वाद लेने सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। कुछ जानकार बताते हैं कि, बस्तर महाराजा दलपत देव ने काछनगुड़ी का जीर्णोद्धार करवाया था। सैकड़ों साल से यह परंपरा इसी गुड़ी में संपन्न हो रही है। उन्होंने बताया कि, काछनदेवी को रण की देवी भी कहा जाता है। पनका जाति की महिलाएं धनकुल वादन के साथ गीत भी गाती हैं।

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