राजनांदगांव मरीजों को चॉकलेट बांटने के लिए प्रसिद्ध है डॉ. मुकेश कुमार साहू ने मोबाइल हैंडसेट को लेकर सनसनीखेज खुलासा किया है। उन्होंने बताया की आजकल बच्चों से लेकर बूढ़ों तक मोबाइल फोन में ही नजरे गड़ाये रहते हैं जिसका दुष्प्रभाव आंखों और मस्तिष्क पर पड़ रहा है।
तेज सिर दर्द के साथ चक्कर आना आंखें कमजोर होना मोबाइल के अधिक से अधिक उपयोग की वजह से है। खाते समय सोते समय और अन्य काम करते समय मोबाइल में बहुत ज्यादा व्यस्त रहना मानव स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। किसी भी चीज की अधिकता सभी जगह वर्जित है कहां भी गया है अति सर्वत्र वर्जयेते डॉ. साहू ने कहा कि मोबाइल उतना बुरा नहीं है जितना हम उसको जरूरत से ज्यादा उपयोग करते हैं मोबाइल के चक्कर में और दूसरे जरूरी काम भुल रहे हैं यह अच्छी बात नहीं है अनावश्यक रूप से मोबाइल में उलझे रहना बहुतों की आदत बन गई है। लोग आपस में बैठकर सुख दुख की बातें किया करते थे वह भी अब कम ही होती है।
डॉ मुकेश साहू ने विस्तार से अपनी बातें कहते हुए आगे बताया कि आज बच्चे से लेकर युवा वर्ग में मोबाईल का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा हैं। आज के इस बिजी जिंदगी में समय काटने,बात चीत,इंटरटेनमेंट, खेलखुद, पढ़ाई लिखाई, मौज मस्ती, दुनियां भर की जानकारी हमें मोबाईल से बैठे बैठे मिल जाति हैं।मोबाइल के बिना आज के जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल हैं। इन्ही सभी कारणों से युवा वर्ग और बच्चे मोबाईल का अंधाधुंन प्रयोग कर रहा हैं। चैट, मूवी, वेब सीरीज, ऑनलाइन क्लास, फेसबुक, व्हाट्सप्प, स्नेपचैट, इंस्टाग्राम, नए नए विडवो बनाना और देखना, दिन रात उसी में लगे हैं। स्वास्थ्य विभाग जिला राजनांदगाव के सबसे युवा, तेज- तर्रार, सटीक सेवा देने में माहिर, डॉ. मुकेश कुमार साहू, नेत्र सहायक अधिकारी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र -गैंदाटोला ने बताया की यह एकप्रकार का नशा हैं, जिससे निकलना बहुत जरुरी हैं।
आज लोगों में सिर दर्द,चिरचिड़ा पन, घुस्सा, बेचैनी, अनिद्रा,टेंशन, मानसिक बिमारी,चक्कर आना, कमजोरी पन,आँख दर्द, कम दिखना, पढ़ने लिखने में दिक्कत आना, शाम को कम दिखाई देना, दूर और पास का नजर ख़राब होना, एक बहुत बड़ी समस्या बन गयी हैं। रोज ऐसे अनेक मरीज आते हैं। इसका प्रमुख कारण मोबाईल, टी. वी., लैपटॉप, कम्प्यूटर का उपयोग आवश्यकता से ज्यादा करना हैं। आजकल माँ बाप अपने बच्चों को छोटी उम्र में ही मोबाईल दे देते हैं। 1-10 साल के बच्चे घंटो मोबाइल से खेलता रहता हैं। मेरे पास ऐसे अनेक पालक आते हैं, और समस्या बताते हैं की बच्चा बहुत गुस्सा करता हैं,
चिरचिड़ाता हैं,सिर दर्द होता हैं, आँखों से आंसू आता हैं, बच्चे को ब्लैक बोर्ड का लिखा दिख नहीं रहा हैं। छोटी उम्र में बच्चों को चश्मा लग रहा हैं। डॉ. मुकेश साहू कहते हैं की मुझे समझ नहीं आता 1 से 10 साल के बच्चों को मोबाईल क्यों देना, उनका क्या लेना देना मोबाईल से?आप अपने बच्चों को खुद बीमार कर रहे हो। इसके जिम्मेदार तो माँ बाप भी हैं।जो कितनी आसानी से अपने बच्चों के हाथो में एक नशा पकड़ा रहे हैं। कुल मिलाकर देखा जाये तो क्या बच्चे, क्या युवा और क्या बूढ़े सभी को ये समस्या हो रही हैं।देर रात जागना और मोबाईल चलाना सबसे ज्यादा ख़तरनाक हैं। क्योंकि लगातार एक जगह नजर टिकी रहती हैं।
जिससे सबसे ज्यादा नजर ख़राब होता हैं। कोविड-19 के बाद ही पिछले 3-4 सालों में ही आँख की बिमारी और चश्मा नंबर के मरीज बढ़े हैं।इसका कारण कोविड-19 नहीं हैं।बल्कि लोग खाली पिली होने के कारण मोबाइल, टी. वी. लैपटॉप का उपयोग ज्यादा करने लग गए।समय काटने के लिए गेम खेलना, वेब सीरीज, फ़िल्म देखना ,ऑनलाइन क्लास लगने सुरु हो गए। सारा सिस्टम अब इसी में काम करने लग गए।
अब हुआ ये की कोविड तो खतम हो गया, पर हम इन आदतों से निकल नहीं पाए। एक समय था ज़ब हम कहते थे की चश्मा 40 के पार वालों को लगता हैं। आज लगभग आधी आबादी नेत्र रोग से पीड़ित हैं।निकट दृस्टिदोष के मरीजों की संख्या बड़ी हैं। जिसे हम मयोपिया कहते हैं। यह तेजी से बढ़ने वाला नंबर होता हैं। जिसे समय पर पहचान कर (-)नंबर का चश्मा दिया जाता हैं। जिसे दिन भर पहनना जरूरी होता हैं।
शासन और स्वास्थ्य विभाग द्वारा समय समय पर लोगों को जागरूक करने के लिए निः शुल्क नेत्र स्वास्थ शिविर, प्रचार प्रचार, चश्मा वितरण, स्कूल में जाकर बच्चों का परीक्षण और उपचार आदि किया जाता हैं।प्राथ. स्वा. केंद्र- गैंदाटोला के अंदर 34 गांव आते हैं, जिनका जनसंख्या लगभग 40000 हैं। अभी तक हमलोगों ने 37 निः शुल्क शिविर का आयोजन किया हैं। जो इस साल 50 का लक्ष्य हैं।17 मिडिल स्कुल हैं, जिनके 1219 बच्चों का नेत्र जाँच तथा उपचार कर 35 बच्चों को निः शुल्क चश्मा वितरण किया गया हैं। जिला प्रशासन, और स्वास्थ्य विभाग राजनांदगाव इस क्षेत्र में बहुत तेजी से कार्य कर रहे हैं।सही समय और सही उम्र में बच्चों तक पहुंचकर बिमारी को पहचान कर, उपचार और जिनको चश्मा की जरुरत हैं
, उन्हें चश्मा देकर बिमारी को खत्म करने या उसे रोकने का प्रयास किया जा रहा हैं। मोबाईल का नशा शराब के नशे से भी ज्यादा ख़तरनाक हैं। धीरे धीरे ये मानवता के लिए खतरा बन रहा हैं। हमें समझना होगा की इलेक्ट्रॉनिक संसाधन या मशीनरी सामान हमारी सहायता के लिए हैं। इनका उचित उपयोग करना जरुरी हैं। आवश्यकता से ज्यादा प्रयोग और उपयोग दोनों ही ख़तरनाक हैं।