छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से लोहा ले रहे जवान मलेरिया से प्रभावित इलाकों में रहते हैं. इस वजह से उनके ऊपर इस बीमारी का खतरा 24 घंटे मंडराता रहता है. दरअसल, जिन इलाकों में जवान लगातार गश्त करते हैं, माओवादियों को ढूंढते हैं, वो क्षेत्र मच्छरों सहित कई परेशानियों से भरे रहते हैं. कहा जा सकता है कि नक्सल प्रभावित पूरा का पूरा बस्तर इलाका मलेरिया की चपेट में हैं. नक्सलियों को नष्ट करने में जुटे जवानों का मुद्दा हाल ही में संसद में भी उठा था. केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने भी जवानों के मलेरिया की चपेट में आने पर चिंता जाहिर की.
बता दें, जवान सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कांकेर, कोंडागांव और बस्तर के जंगलों में लगातार गश्त करते हैं. वे इन इलाकों में कैंप भी लगाते हैं. हालांकि, छत्तीसगढ़ सरकार जवानों के लिए मच्छरदानी देने सहित कई चीजों की व्यवस्था करती है. पिछले महीने ही बस्तर जिले में एसटीएफ के करीब 20 जवानों को मलेरिया हो गया था. उन्हें इलाज के लिए बस्तर के सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया था. ये सभी जवान नक्सल ऑपरेशन के लिए नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ इलाके में गए थे. कुछ महीने पहले सुकमा जिले का मुलेर कैंप में तीन दर्जन जवान मलेरिया की चपेट में आ गए थे. हालांकि, कुछ दिनों बाद ही सभी जवान अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिए गए थे.
केंद्रीय मंत्री राय ने दी ये जानकारी
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात सुरक्षाबलों पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने लोकसभा को बताया था कि पिछले पांच सालों में नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात सेंट्रल आर्म्ड पुलिस पर्सोनल (सीएपीएफ) के 577 जवानों की हार्ट अटैक से मौत हुई है. ये जवान नक्सल प्रभावित इलाकों में महत्वपूर्ण सरकारी भवनों सहित कई मामलों की सुरक्षा के लिए तैनात किए गए थे. उन्होंने कहा कि केंद्र ने सुरक्षाबलों की मजबूती के लिए साल 2017-21 के बीच 991.4 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को अनुमति दी.