भारत और रूस के बीच न्यूक्लियर एनर्जी को लेकर हुए हालिया सौदे से उन पड़ोसी देशों की आंखें में जलन पैदा हो सकती है जिनके लिए दोनों देशों के संबंधों में मजूबती कंकड़ की तरह चुभेगी. दरअसलस भारत के कुडनकुलम पावर प्लांट में न्यूक्लियर एनर्जी आदि मुहैया करवाने के 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के सौदे में एक और खेप जल्द ही भारत को मिलने वाली है.
देश का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा प्लांट…
इस प्लांट की सभी 6 यूनिटों के पूरा होने के बाद 6,000 मेगावाट की क्षमता वाला यह देश का सबसे बड़ा परमाणु ऊर्जा प्लांट होगा. फिलहाल 2 गीगावॉट की क्षमता वाली दो इकाइयां चालू हैं. भारत में वर्तमान में 7 गीगावॉट की परमाणु ऊर्जा क्षमता है. 2029 तक इसे लगभग दोगुना करके 13 गीगावॉट करने की योजना है.
जानकारों का कहना है कि इस प्लांट की नई इकाइयों को परमाणु ईंधन की आपूर्ति के लिए भारत और रूस 10,500 करोड़ रुपये के सौदे पर काम कर रहे हैं. ये दोनों यूनिट दरअसल रूस की मदद से बन रहे हैं. इस सौदे में रूसी परमाणु ईंधन कंपनी TVEL JSC परमाणु ऊर्जा विभाग को ये सप्लाई करेगी. कुडनकुलम एन-पावर परियोजना की दो यूनिटों- 3 और 4- के लिए परमाणु विभाग ये फ्लूल प्रदान करेगा. इसका इस्तेमाल शुरुआती लोड और उसके बाद के पांच रीलोड के साथ-साथ साल 2025 से 2033 तक इंस्पेक्शन रॉड और ईंधन असेंबली निरीक्षण उपकरण की सप्लाई करेगा.
भारत की बढ़ती परमाणु क्षमता चीन के लिए अप्रियकर हो सकती है. जानकारों के मुताबिक, भारत सरकार रूस की एक कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम बनाने की संभावना पर भी विचार कर रही है. निश्चित तौर पर यह जॉइन्ट उपक्रम भारत की परमाणु क्षमता को बढ़ावा देने वाला साबित होगा.
कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना आखिर है कहां….
यह परियोजना तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले में स्थापित है. यह चेन्नई से 650 किलोमीटर की ओर है. बता दें कि यह रूसी वाटर रिऐक्टर टेक्नॉलजी (water reactor technology) पर आधारित है. बता दें कि भारत और रूस ने पिछले साल कुंदनकुलम परियोजना की आखिरी अधूरी दो यूनिटों के निर्माण पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.