राजनांदगांव – कृषि विभाग द्वारा प्राप्त जानकारी अनुसार जिले में वर्ष 2018-19 में ग्रीष्मकालीन धान का रकबा 11हजार 809 हेक्टेयर था, जिसमे सबसे अधिक ग्रीष्मकालीन धान विकाखण्ड डोंगरगांव में 4हजार 905 हेक्टेयर ,छुरिया में 2हजार 999 हेक्टेयर,राजनांदगांव में 2 हजार 46 हेक्टेयर ,चौकी में 1 हजार 552 हेक्टेयर ,मोहला में 147 हेक्टेयर एवं डोंगरगढ़ में 143 हेक्टेयर क्षेत्रफल में ग्रीष्मकालीन धान बोया गया था ! 2018-19 के अनुसार स्टेट ग्राउंड वाटर बोर्ड द्वारा विकासखण्ड राजनांदगांव और डोंगरगांव को सेमीक्रिटिकल जोन में शामिल किया गया है , जो जल संकट आने की संभावना से हमे रूबरू करा रही है !
किसान भाईयों से ग्रीष्मकालीन धान की खेती नहीं करने की अपील :-
ग्रीष्मकालीन धान का उत्पादन
करने से 1200 से 1500 मि.मी. तक
जल का उपयोग फसल अवधि में किया
जाता है। इस कारण भूमि में उपलब्ध जल
स्तर में गिरावट आती है तथा निस्तारी
हैण्ड पंप का जल स्तर नीचे जाने से
सूखने लगते है । पेयजल की समस्या
उत्पन्न हो जाती है। मवेशियों को पीने के
पानी की समस्या उत्पन्न होने लगती है।
ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर कम
जल का उपयोग करने वाली फसलें जैसे-
मक्का, चना, मूंग, उड़द, सुर्यमूखी एवं
मुंगफली की खेती की जा सकती है। यह
फसलें कम पानी एवं कम समय में पक
कर तैयार हो जाती है। इनका बाजार मूल्य
भी अधिक होने के कारण किसानों को
अधिक आमदानी देती है। जिले में विगत
वर्षों में भू जल का स्तर लगातार गिरता
चला जा रहा है। कीटव्याधि की समस्या
से होने वाले आर्थिक एवं रासायनिक
नुकसान से राहत। बिजली के रूप में
विद्युत व्यय के अतिरिक्त भार में कमी।
ग्रीष्मकालीन धान में जल के
अत्यधिक उपयोग के कारण भू-गर्भीय
जल का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा
है। भूमिगत जल पर सभी किसानों एवं
जनमानस का अधिकार होता है, जल ही
जीवन है, जल है तो कल है, इस पर
विचार करना अति आवश्यक है। कृषक
ग्रीष्मकालीन धान के बदले जिस फसल
की खेती करना चाहते है। उसका बीज
मांग अपने क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विकास
अधिकारी, कृषि विकास अधिकारी एवं
वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी के पास दे
सकते है, ताकि बीज का भंडारण एवं उपलब्ध किया जा सके !