तू ङ्क्षहदू बनेगा न मुसलमान बनेगा,
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है,
तुझको किसी मजहब से कोई काम नहीं है
जिस इल्म ने इंसानों को तकसीम किया है
उस इल्म का तुझ पर कोई इल्जाम नहीं है
तू बदले हुए वक्त की पहचान बनेगा,
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा।।
साहिर लुधियानवी द्वारा रचित गीत गाकर चंपक ने शहरवासी से पूछा, कैसा लगा? बहुत खूब चंपक, सालों पहले लिखा गया यह गीत आज भी कितना प्रासंगिक है। अभी तो शहर में कलेक्टर जयप्रकाश मौर्य की तारीफ हो रही है। कलेक्टर का वह आदेश फलदायी रहा, जिसमें उन्होंने कहा था कि तबलीगी जमात के लोग अपने आने-जाने से लेकर किसी भी प्रकार की कोई जानकारी यदि छिपाते हैं तो उनके खिलाफ हत्या या हत्या का प्रयास का मामला दर्ज किया जाएगा। कलेक्टर ने इसके परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 302 एवं 307 के तहत कार्रवाई करने की चेतावनी दी थी। अब यह तो कानून के जानकार ही बता सकते हैं कि उक्त धाराएं दोषी व्यक्तियों पर लागू होगी कि नहीं? किंतु, इसका सुखद परिणाम यह रहा कि इस कठोर आदेश के जारी होते ही तबलीगी जमात से संबंधित लोग धीरे-धीरे सामने आए। प्रशासन ने बाहर निकले ऐसे जमातियों को सहायता केन्द्र में रखा है। डियर चंपक, पुलिस प्रशासन भी इसी को लक्ष्य में रखकर जमातियों की तलाश में उनका कनेक्शन ढूंढने छापामारी कार्रवाई कर रहा था।
आधी रात के बाद शहर भगवान भरोसे!
लाक डाऊन के नियमों का पालन कराने पुलिस प्रशासन शहर में पूरी सख्ती दिखा रहा है। छूट की अवधि खत्म होने के बाद यानि दोपहर 12 बजे के बाद सडक़ों पर बेवजह घूमने वालों को नए-नए अंदाज में समझाईश देने के साथ ही उठ-बैठ कराने, सिंबालिक कोरोना के द्वारा राह चलते लोगों को अपनी गिरफ्त में लेकर पटखनी देने जैसे तमाम हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। लॉक डाऊन के दौरान पुलिस के जवान पूरी सख्ती दिखा रहे हैं। बेवजह घूमते पाए जाने वालों के वाहनों की जप्ती कर चालानी की कार्यवाही की जा रही है। मुख्य शहर के साथ-साथ पुलिस के जवान मोटर सायकिलों से वार्डों में जा-जाकर इस बात पर नजर रख रहे हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है या नहीं? इस दौरान कहीं ग्रुप में बैठे लोग भी मिल रहे हैं, जिन्हें पुलिस के जवान लाठी बरसाने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं। प्रशासन लोगों को बार-बार आगाह कर रहा है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। अपने घरों में ही रहें। बेवजह घूमने न निकलें, किंतु कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें अपनी जान की परवाह नहीं है और न ही उन्हें कोरोना का डर है। उन्हें डर है तो सिर्फ पुलिस जवानों से। ऐसे लोग अपने मोहल्ले की गलियों में घूमते हुए सिर्फ इसी बात पर नजर रखे रहते हैं कि कहीं कोई पुलिस वाला तो नहीं आ रहा है। ऐसे में जैसे ही कोई जवान आते दिखा तो वही शख्स यह चिल्लाते हुए अपने घर की ओर तेजी से भागने लगता है कि भागो पुलिस वाला आ रहा है।
लाक डाऊन के नियमों का पालन कराने में जुटे पुलिस प्रशासन की शहरवासी तारीफ करता है, लेकिन कमी इस बात की भी कमी महसूस की जा रही है कि आधी रात के बाद पूरे शहर को भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। रात 12 बजे के बाद शहर में कहीं भी पुलिस का कोई जवान नजर नहीं आता और इसी सूनेपन का फायदा कुछ चोर-बदमाश उठाने लगे हैं। हाल ही में शहर के हृदय स्थल कहे जाने वाले मानव मंदिर चौक स्थित एक मोबाइल दुकान का शटर तोडक़र चोरी की वारदात को अज्ञात चोरों ने अंजाम दिया। साथ ही कुछ और जगहों पर चोरी की घटनाएं सामने आई हैं। इन बातों को ध्यान रखते हुए पुलिस कप्तान को चाहिए कि पुलिस जवानों की ड्यूटी को अलग-अलग शिफ्ट में लगाई जाए और रातों में भी जवानों को प्रमुख चौक-चौराहों पर तैनात किया जाए, ताकि आधी रात के बाद के सन्नाटे में होने वाली अप्रिय घटनाओं को रोका जा सके।
संकट की घड़ी में भी कमीशन का खेल!
शहर सहित पूरा देश, प्रदेश कोरोना वायरस के चलते लाक डाऊन संकट से जूझ रहा है। अन्य राज्यों में जीवन-यापन करने गए लोग चाह कर भी रास्ते में ही फंसे हुए हैं। संस्कारधानी में भी बड़ी संख्या में ऐसे भी जरूरतमंद लोग हैं, जिनके पास खुद के भोजन हेतु व्यवस्था नहीं है। ऐसे लोगों को दो वक्त का भोजन उपलब्ध कराने जिला प्रशाासन के साथ ही तमाम समाजसेवी संस्थाएं जुटी हुई हैं। महापौर हेमा देशमुख वैसे तो शुरूआती दौर से ही इस पुनीत काम में लगी हुई हैं। जरूरतमंदों को भोजन मुहैया कराने के लिए पहले कलेक्टर द्वारा गांधी सभागृह में भोजन तैयार कराकर वितरण कराने की व्यवस्था की गई थी। किंतु राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते इसे एसडीएम के निर्देशन में जिला राहत शाखा के हवाले कर दिया गया।
शहरवासी इस बात को लेकर हैरत में है कि कोरोना संकट और लाक डाऊन को पखवाड़ा भर का वक्त गुजरने के बाद नगर निगम द्वारा लोगों को भोजन वितरण के लिए निविदा बुलवाने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके लिए पार्षद निधि की राशि को खर्च करने की बात कही जा रही है तो दूसरी ओर इस बात को लेकर नाराजगी है कि उन्हें अंधेरे में रखकर पार्षद निधि की राशि से सेनिटाईजर व मास्क खरीदी करने लेटर पेड पर मांग पत्र में हस्ताक्षर करा लिया। बताते है 15 रु. में मास्क व एमआरपी दर पर 100 रु. में भाटिया वाईन कंपनी से सेनिटाईजर खरीदा गया। अब पार्षदों को भोजन के लिये महापौर का सहारा लेना पड़ रहा है।
नगर निगम आनन-फानन में आपदा की इस घड़ी में अपनी सेवा भावना का परिचय देने के चक्कर में खुद ही संदेह के घेरे में आ गया है। चर्चा सरगर्म है कि महज आठ-दस रूपए में मिलने वाले मास्क को सेटिंग के तहत 15 रूपए प्रति नग की दर से खरीदा गया है। अब जबकि ऐसे विरले ही लोग होंगे, जिनके पास मास्क नहीं होगा। ऐसे में अब हजारों नग मास्क की खरीदी, वह भी अधिक दाम देकर क्यों करनी पड़ी? सच तो यह है कि नगर निगम अच्छा करने की जुगत में अब कमीशनखोरी के आरोपों से घिरते दिख रहा है। खैर सच्चाई जो भी हो, उसे देर से ही सही, सामने तो आना ही है।
धार्मिक कट्टरता क्यों?
बाबूलाल बोला-मित्रों, विश्व में कोरोना का ‘डेथ मीटर’ एक लाख के पार हो गया है। मौत का मंजर सभी के सामने है और लाक डाऊन के नियमों को तोडऩे वालों पर सख्त कार्रवाई नहीं की गई तो यह ‘साइलेंट कीलर’ कोरोना दुनिया में लाखों जनों को मौत की नींद सुला देगा। भारत में मरने वालों की संख्या 300 को स्पर्श करने जा रही है।
दिल्ली मरकज के जमातियों को कोरोना कैरियर के रूप में देखा जा रहा है, चंपक ने कहा। मित्रों, दरअसल में मुसलमान अपनी धार्मिक कट्टरता को छोडऩे तैयार नहीं हैं और यही उनका सबसे बड़ा माइनस प्वाइंट है।
अमजद हैदराबादी कहते हैं-
मियां ‘अमजद’ तुम्हारी जैसी मर्जी,
रहो काफिर या कि इस्लाम लाओ,
मगर कह देते हैं, एक काम की बात,
जहां तक हो सके, किसी के काम आओ।
लाक डाऊन बढ़ा : लाचार-हताश लोगों का भगवान ही मालिक
जिंदगी हर किसी को एक उत्तम पुरस्कार देती है-वह है करने जैसे काम करने के अवसर। कोरोना की जोखिम बढ़ी है, इस कारण मरने वालों की भी संख्या देश में बढ़ रही है। संत कवि तुलसीदास की दो लाइनें प्रेरणा देती हैं-
दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान,
तुलसी दया न छोडि़ए, जब लग घट में प्राण।
संस्कारधानी के अनेक संस्कारयुक्त दानवीरों, सामाजिक संस्थाओं, जनप्रतिनिधियों, पक्ष-विपक्ष संगठनों ने हाल में उत्पन्न लाक डाऊन जैसी नारकीय स्थिति में तन-मन-धन से सहयोग कर कोरोना जंग में अपना योगदान दिया है। एक्स सीएम व एमएलए डॉ. रमन सिंह भी एक दिन के लिए शहर में आए। प्रशासन से राहत शिविरों में प्रभावितों को दी जा रही सुविधाएं व राहत सामग्रियों की जानकारी ली। स्वयं कुष्ठ रोगियों की बस्ती आशा नगर गए। खाद्य सामग्रियां व मास्क जरूरतमंदों को बांटे। जन समस्याओं से अवगत हुए। प्रशासन को पीएम आवास फंड की अंतिम किश्त का भुगतान करने व मनरेगा अंतर्गत काम चालू करने के निर्देश दिए।
बाबूलाल का कहना था, कोरोना महामारी का व्याप बढ़ रहा है। लाक डाऊन की अवधि भी 30 अप्रैल तक बढ़ गई। गरीब, बेबस, कमजोर, धनहीन-सुविधाहीन वर्ग बड़े निराश व दु:खी हैं। कोई अपने घर, गांव, शहर से दूर नर्क यातना जैसी पीड़ा भोग रहा है। परिवार का सदस्य मृत्यु को प्राप्त होता है तो काठी निकालने व मुक्तिधाम तक की शव यात्रा, दाह संस्कार उस परिवार को अकेले ही संपन्न करना पड़ता है। वैवाहित कार्यक्रमों को टाल दिया गया है। गांवों में गरीब परिवारों से ज्यादा शहरों का मध्यमवर्गीय परिवार ज्यादा हताश है। उन तक कोई मददगार नहीं पहुंचता। गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न, मुफ्त रसोई गैस, जन-धन योजनांतर्गत पांच सौ रूप्ए की सहायता पहुंच रही है। लाक डाऊन में अन्य मरीजों को इमरजेंसी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। परिवहन सुविधाओं पर प्रतिबंध है। कईयों को तो घर भी जेल लगने लगा है। मानसिक रूप से प्रताडि़त ऐसे लोगों की हताशा चरम सीमा पर है। रोजाना कमाने-खाने वालों का एक-एक दिन बमुश्किल कट रहा है।
कहते हैं कि सत्ता आदमी को विकृत कर देती है, किंतु इसी के साथ-साथ यह बात भी उतनी ही सच है कि निर्बलता भी आदमी को विकृत कर देती है। सत्ता कुछ लोगों को बिगाड़ती है और निर्बलता अनेक को। कमजोरों की इसीलिए मदद करनी चाहिए कि आपकी मदद से कहीं उनमें शक्ति जागृत हो गई तो ऐसे लोगों की टेक्नीकल, सामाजिक व राजकीय, व्यापारिक कार्यों में रूचि जागृत होने की संभावनाएं भी होती हैं।
‘मुसीबतों ए हालात’ पर ‘जिगर’ की चार लाइनें-
जीत पर हंसते रहो और हार पर हंसते रहो,
फूल की शय्या समझ अंगार पर हंसते रहो,
ओ मुसीबत! इतनी जिंदादिली को दाद दे,
तूने रखी तलवार तो मैं उसकी धार पर हंसता रहा
मदिरा दुकानें बंद, फिर भी मदिरा उपलब्ध
एक फिल्म में जानीवाकर और महमूद के संवाद देखें-
जानीवाकर-सरकार ने कार ड्राइव करते समय दारू पीने की मनाही क्यों की होगी?
महमूद-इतना भी नहीं जानता? स्पीड ब्रेकर आएगा तो ग्लास गिर जाएगा और व्हिस्की गिर जाएगी।
छत्तीसगढ़ को टोकियो-लंदन बनाना हो तो भूपेश बघेल को लाक डाऊन पर लगा दारू का प्रतिबंध उठा लेना चाहिए। मदिरा दुकानें खोल देनी चाहिए। आजकल ऐसी विस्फोटक चर्चा भी हो रही है। शहरवासी इस बाबत में ‘वादी’ या ‘प्रतिवादी’ नहीं है, किंतु दिखाई दे रहा है, लाक डाऊन में मदिरा दुकानें बंद हैं। फिर भी पियक्कड़ों तक दारू उपलब्ध है। यह दारू मदिरा प्रेमियों को निर्धारित दाम से दस गुना ज्यादा में मिल रही है। देशी के साथ विदेशी दारू भी उपलब्ध है। मदिरा की तलब में भटकने वालों को शराब मिल ही जाती है। फिर वह शराब घटिया भी हो सकती है। इससे बेहतर है कि मदिरा दुकानें खुली रहे। लाक डाऊन के नियमों का भी पालन हो और पीने वालों को घर भीतर आनंद मिलेगा। कोचियों द्वारा शराब की आपूर्ति करने वालों की अनुचित जमाखोरी-मुनाफाखोरी को बंद नहीं किया जा सकता। इससे अच्छा है कि मदिरा सहज उपलब्ध हो।
गुलशन बावरा ने क्या खूब लिखा था-
चांदी के चंद टुकड़ों के लिए,
ईमान को बेचा जाता है,
मस्जिद में खुदा और मंदिर में
भगवान को बेचा जाता है।
हर चीज का सौदा होता है,
हर चीज यहां पर बिकती है,
धन वालों के आगे निर्धन क्या
अब सारी खुदाई झुकती है,
बेबस इंसानों के हर एक अरमान
को बेचा जाता है।
चांदी के चंद टुकड़ों के लिए
ईमान को बेचा जाता है।।
– दीपक बुद्धदेव