Home छत्तीसगढ़ विधायक द्वारा लाकडाऊन व सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियांं उड़ाना उचित है?

विधायक द्वारा लाकडाऊन व सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियांं उड़ाना उचित है?

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मुल्ला नसरूद्दीन के रोचक किस्से प्रसिद्ध हैं। बताते हैं, मुल्ला जब बीमार हुए तब वे कुछ अचेतन अवस्था में थे। उनकी बीबी ने छूकर देखा तो उनका शरीर तप रहा था। वह थर्मामीटर लाने वहां से जाने लगी तब मुल्ला नसरूद्दीन ने कहा-माचिस भी लेते आना। दरअसल मुल्ला चैन स्मोकर थे। डियर बाबूलाल, डू यू नो, हमारे देश में भी मुल्ला जैसे कई महानुभाव हैं, जिनमें पालिटिशियन हैं, एम.एल.ए. हैं जो कोरोना महामारी के संकट के समय में लाकडाऊन के नियमों-कानून का सरेआम भंग करके चैन जोकर की इमेज बनाए हुए हैं। कोरोना बाबत की पी.एम. की सप्तपदी की जिम्मेदार जनप्रतिनिधि ही अवहेलना कर अपने लापरवाह होने की जन छवि दिखा रहे हैं, चम्पक ने कहा। मोहला विधायक इंदरशाह मंडावी जब मजमा इकट्टा कर लोगों को भोजन सामग्री बांट रहे थे, तब सोशल डिस्टेंसिंग व धारा 144 की धज्जियां उड़ गई थी। ऐसे समय जिला व पुलिस प्रशासन ने सरकार को अवगत कराया और कार्यवाही करने हेतु गाइड लाईन मांगी। मंडावी कांग्रेसी विधायक हैं। सरकार की ओर से कार्यवाही करने बाबत हरी झंडी नहीं मिली और मामला पेंडिंग है, जिसका दुष्परिणाम आगे यह आया कि डोंगरगांव विधायक दलेश्वर साहू ने भी अपने स्वर्गवासी पिता की मृतात्मा को शांति प्रदान करने लोगों को शोक संदेश पत्र प्रेषित किया और दशगात्र में सपरिवार पधारने आमंत्रित किया। मृत्यु भोज का कार्यक्रम विधायक निवास (फार्म हाऊस), आलीवारा में रखा गया था, जहां साहू समाज के गणमान्य नागरिकों के अलावा कांगे्रसी-भाजपाई व क्षेत्रवासी बड़ी संख्या में पहुंचे थे। डियर बाबूलाल अब तुम्ही बताओ भयावह कोरोना के फैल रहे संक्रमण में यहां लाकडाऊन के नियमों, सीएम भूपेश बघेल की फिजिकल डिस्टेंसिंग और पीएम नरेन्द्र भाई की कोरोना संदर्भ में सप्तपदी की धज्जियां उड़ी या नहीं? ‘समरथ को नहीं दोष गोसाई’, इसे तो समझता है ना चम्पक? शोकाकुल परिवार हेतु संवेदना है, लेकिन एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि का ऐसा गैर जिम्मेदाराना प्रदर्शन कोरोना फैलाने में सहायक बन सकता है। कोरोना से बचाव करने की विधि अपनी जगह है, किन्तु विधिवत निमंत्रण देकर समूह में सार्वजनिक आयोजन करना यह समझदारी का काम तो नहीं है। जनता में इस घटना का अच्छा संदेश नहीं गया है। भूपेश सरकार इसे कितनी गंभीरता से लेती है? इस पर लोगों की नजर है। देश और देश की जनता कोरोना को लेकर बेहद चिंतित है, तब सत्तासीन विधायकों का पालिटिकल ग्लैमर में रचपच होना अच्छा तो नहीं कहा जा सकता। इसे मुल्ला नसरूद्दीन के किस्से से समझा जा सकता है।
कोरोना आम व खास के लिए भेद नहीं करता
देखो मित्रों, कोरोना के नियम व प्रावधान में व्ही.आई.पियों को छूट मिलेगी, ऐसी सोच रखना ही व्यर्थ है। कोरोना आम व खास में भेद नहीं करता। ऐसी सारी गड़बड़ ब्यूराक्रेसी में बहुतायत में होती है। उनकी कार्यवाही ‘आम’ लोगों के लिए अलग तो ‘खास’ लोगों के लिए अलग होती है। देख रहे हो ना? आम आदमी लाकडाऊन के नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे सडक़ पर पुलिस कान पकड़वा कर, गैर जरूरी काम से बाहर निकलने वालों के वाहनों की थोक में जप्ती करती है। प्रशासन नियम प्रतिकूल खुली दुकानों या वहां जमी भीड़ के मद्देनजर दुकानों को ‘सील’ कर देता है और हजारों का जुर्माना भी कर देता है। आमजनों के परिवारों ने ‘लाकडाऊन’ के कारण पूर्व निर्धारित वैवाहिक आयोजनों का इन्वीटेशन देने के बावजूद स्थगित कर दिया। लाकडाऊन के कारण जिन घरों मेें किसी सदस्य का निधन हुआ है, वहां बमुश्किल चार-छह लोगों ने नियमों का पालन करके दाह संस्कार किया। आम जनता घर भीतर है। ग्रामवासी अपने गांव में हैं। एक गांव से दूसरे गांव तक, एक शहर से दूसरे शहर जाने पर लोगों को मनाही है। ऐसी गंभीर परिस्थिति में विधायक के गांव आलीवारा में आयोजन और जनसमूह की हाजिरी को क्या कहें?
यमराज और चित्रगुप्त ने किया जागरूक
विधायक साहू के हेडक्वार्टर डोंगरगांव में ही ज्ञानचंद लोढ़ा ने यमराज और योग महाराज ने चित्रगुप्त की वेशभूषा में कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए लोगों को काल के देवता यमराज की भाषा में समझाईश दी, हिदायतें देकर उन्हें जागरूक किया और घर पर ही रहने का संदेश दिया। यमराज और चित्रगुप्त का प्रासंगिक नुक्कड़ ड्रामा लोगों ने पसंद किया और उसे खूब सराहा। आलीवारा के कारूणिक चिंतनीय चित्र के उलट यह दृश्य बहुत कुछ सोचने व विचार करने विवश तो करता ही है। क्योंकि वस्तुत: विचार ही जीवन है और विचार ही कर्म का बीज है।
लाक डाऊन में बढ़ रही चोरी की घटनाएं
लाकडाऊन के दौराना रोजाना सुबह सात बजे से पांच घंटे तक दैनिक जरूरतों के सामानों के लेनदेन के लिए लोगों को छूट अवश्य दी गई है। इसके बावजूद पुलिस के जवानों की ड्यूटी सुबह से ही शुरू हो जाती है। जवान इस बात पर नजर रखते हैं कि कहीं कोई सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है? कोई आदमी भीड़ बढ़ाने बेवजह घूम तो नहीं रहा है? ऐसी ही तमाम बातों पर नजर रखने और व्यवस्था बनाने के लिए शहर के प्राय: अंदरूनी और बाहरी क्षेत्रों में पुलिस के जवानों की रोजाना ड्यूटी रहती है। जब से कोरोना संक्रमण और उसके कारण लाकडाऊन लागू हुआ है, तब से पुलिस का पूरा ध्यान सिर्फ भीड़ को कंट्रोल करने में ज्यादा है। पुलिस के ये जवान सुबह से रात 10-11 बजे तक ड्यूटी करके दौरान लोगों से उलझकर अपने-अपने घरों को चले जाते हैं। फिर क्या? रात में 10-11 बजे के बाद पूरा शहर भगवान भरोसे। कोरोना और लाकडाऊन के चलते कई ऐसे लोग हैं, जो बेरोजगार हो चुके हैं, कइयों को खाने के लाले पड़े हैं, ऐसे में रातों के सन्नाटे में शहर में चोरी की घटनाएं बढऩे लगी हैं। शहरवासी इस बात को बार-बार कहते आ रहा है कि जिस तरह से दिन में जवानों की तैनाती की जाती है, उसी तरह रातों में भी प्रमुख चौक-चौराहों पर जवानों की ड्यूटी लगाई जाए और रात्रि गश्त की पुरानी परंपरा को पुन: शुरू कराई जाए। पुलिस कप्तान को चाहिए कि अपने जवानों की ड्यूटी बारी-बारी से शिफ्ट में शुरू कराएं, ताकि लोग रातो को खुद को महफूज महसूस कर सकें।
दारू-गांजा का अवैध धंधा
दारू पीने वाले पहले एक-दूसरे को चियर्स कह कर ग्लास मिलाते हैं, उस तरह वे एक-दूसरे के स्वास्थ्य की कामना कर ड्रिंक लेते हैं और अंत में अपना ही स्वास्थ्य बिगाड़ते हैं। दारू बनाने और बेचने वालों को दारू से बहुत फायदा होता है, यह तो तयशुदा है। प्रत्येक विभिन्न धर्मों के ग्रंथों में दारू और जुआ व्यसन व्यसनी को शैतान बनाता है। एक-दूसरे से लड़वाता है। घृणा फैलाता है, इसलिए इससे व्यक्ति को दूर रहने के लिए लिखा है। आदमी पहले दारू प्याली से पीता है, दूसरी मर्तबे पैग बढ़ाने लगता है और तीसरे चरण में तो दारू ही आदमी को पीने लगती है। कोरोना वायरस और इस कारण लगे लाकडाऊन में भले ही सब उद्योग-धंधे, व्यापार बंद हों, सरकारी दफ्तरों में ताला लगा हो, सडक़ें सूनी हों, लोग बाग घरों में हों, किन्तु दारू और गांजा के तस्करों का धंधा निर्विघ्र चल रहा है। इक्का-दुक्का मामले पुलिस पकड़ती है, किन्तु इससे तस्करी करने वालों के हौसलों पर कोई असर नहीं पड़ा है। तस्कर अपना काम करते ही रहेंगे, जब तक इस गोरख धंधे के पीछे रहने वाले महानुभावों पर प्रभावशाली कार्यवाही नहीं होगी।
ट्रेजडी में भी कामेडी
कहा जाता है जो विचार करते हैं, चिंतन करते हैं, उनके लिए जीवन एक दु:ख की करूणान्तिका (ट्रेजडी) जैसा होता है और जब जो बगैर कुछ विचार किए जीवन जीता है, उसके लिए जीवन हास्य (कामेडी)की रेलमपेल जैसा है। गांवों में अधिकांशत: परिवारों के नाम बीपीएल सूची में हैं और इसका कोई भी लाभ लेने से वे नहीं में चूकते। फिलहाल ऐसे गरीबों को मुफ्त रसोई गैस, चावल, रियायत में केरोसीन, शक्कर, गेहूं उपलब्ध हो रहा है। इसके बाद उन्हें कुछ विचार ही नहीं करना है। वे मजे से जीवन जी रहे हैं। यहां ये दो लाइनें फिट बैठती हैं-
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम,
दास मलुका कह गए, सबके दाता राम।
ऐसे परिवारों के कई गरीबों को इस बात की भी खुशी है कि वे जब शहर में काम पर लौटेंगे, तब उन्हें घर बैठने का भी पैसा मिलेगा।
दुर्भाग्य का सामना कर रहे लोगों का मनोबल बढ़ाएं
हिन्दी के मशहूर कवि अब्दुल रहीम खानखाना ने कहा है-
रहिमन चुप हो बैठिए,
देख दिनन के फेर,
जब नीके दिन आई हैं,
बनत न लगी हैं बेर।

याने कि बुरे दिनों के दरम्यान धीरज रखकर दिनों को गुजरने देना चाहिए। अच्छे दिन आयेंगे तब सब कुछ अच्छा होते समय नहीं लगेगा।
जिले के अनेक स्थानों शहरों व गांवों में कई लोग, जो अन्य प्रदेशों के हैं, क्वारन्टाईन सेंटर में बदहाल हैं। सुविधाओं के नाम पर उनके पास केवल बिस्तर है। अन्य जरूरी सुविधाएं अनुपलब्ध हैं। बड़ी दिक्कत यह है कि वे भोजन-पानी के लिए भी तरस रहे हैं। राहत शिविरों में जो पनाह लिए हुए हैं, उन्हें भी पर्याप्त खाना नहीं मिलता। ऐसे दुर्भाग्य का सामना कर रहे लोगों का मनोबल बनाए रखना जरूरी है। नि:संदेह दुर्भाग्य के समय मित्र भी साथ छोड़ देते हैं। ऐसी ट्रेजडी में ‘रहीम’ की उक्त लाइनें मनोबल बनाए रखने में सहायक हो सकती है। दानवीरों से अपील है कि सच्चा दान वही है, जिसमें बगैर कुछ हासिल करने की इच्छा-अपेक्षा के नि:सहाय लोगों की सहायता करने तत्पर रहें।
आउटर उद्योगों में रौनक आएगी?
थोड़ी राहतें क्या समाधान कारक बनेगी? गांवों में रोजी-रोटी की समस्याओं से जूझ रहे ग्रामीणों के लिए ‘मनरेगा’ अंतर्गत काम शुरू हो गया है। राजनांदगांव आरेंज जोन में है। 21 से याने मंगलवार से उद्योग जगत के रौनक होने की संभावना है। शहर से आउटर में लगी फैक्ट्रियों के खुलने के समाचार हैं। पोहा, दाल, राइस मिलों में काम शुरू होगा। लेकिन ये छूटछाट सशर्त मिली है। शर्तों का पालन फैक्टीरियों में होगा, सोशल डिस्टेंस रहेगा, सीमित घंटों तक काम करना होगा। लंबा चल रहा लाकडाऊन वास्तव में बहुत बोरियत दे गया। घर काटने लगा है। कई निठल्ले होते जा रहे हैं। कइयों को घर खर्चा निकालना मुश्किल हो रहा है। कोरोना से बचना भी है और काम भी करना है। दूरियां बनाए रखें, बार-बार हाथ धोएं, मास्क लगाएं।
शायर फिराक गोरखपुरी ने कहा है-
मौत का इलाज भी हो शायद,
जिन्दगी का कोई इलाज नहीं।
– शहरवासी

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