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कोरोना संकट से तेन्दूपत्ता का व्यापार भी प्रभावित

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ठेकेदारों ने एग्रीमेंट निरस्त करने की मांग की
राजनांदगांव (दावा)। प्राकृतिक सीजनिंग होने वाला तेन्दुपत्ता का व्यापार भी कोरोना संकट से जूझ रहा है। आदिवासी अंचलों के लाखों परिवार तेन्दूपत्ता संग्रहण करके अपना साल भर का खर्च निकालते हैं। ऐसा ही समान चित्र तेन्दूपत्ता के ठेकेदारों का है। राज्य लघु वनोपज व्यापार एवं विकास समिति के द्वारा वर्ष 2020 के लिए सम्पन्न निविदा प्रक्रिया के बाद निर्धारित तेन्दूपत्ता के मानक बोरों का लक्ष्य के अनुसार अग्रिम विक्रय किया जा चुका है। किन्तु, अब लाकडाउन ने तेन्दूपत्ता ठेकेदारों को हताश कर दिया है। वनों की फड़ों में तेन्दूपत्ता तैयार पड़ा है। परम्परागत आगामी माह के प्रथम सप्ताह में ठेकेदारों के द्वारा क्रय किए गए इकाइयों में तेन्दूपत्ता की तोड़ाई का काम शुरू करना है। तेन्दू के एक-एक पत्ते को संभालकर, फिर उसकी गड्डी बनाना, बोरा भरती करने से लेकर ढुलाई का काम अनुभवी मजदूर ही कर सकता है। ऐसे मजदूर प्राय: तेन्दूपत्ता ठेकेदारों के द्वारा अन्य राज्यों से ही लाये जाते हैं। किन्तु, अन्य प्रान्तो में भी कोरोना संक्रमण बढ़ते जा रहा है। ऐसे में वहां से मजदूरों को लाना शत्प्रतिशत जोखिम से भरा हुआ है। सरकार इसकी अनुमति भी नहीं देगी।
इस बात की गंभीरता को छत्तीसगढ़ के तेन्दुपत्ता ठेकेदार भलिभांति समझते हैं। इस कारण, अनेक ठेकेदारों ने राज्य लघु वनोपज व्यापार एवं विकास समिति एव राज्य सरकार को निविदा के जरिए लिए तेन्दूपत्ता इकाइयों को क्रय करने के बाद जो उनसे एग्रीमेंट किया है, उसे निरस्त करने का आवेदन दिया है। वे वनग्रामों के स्थानीय मजदूरों से काम लेकर कोई जोखिम उठाना नहीं चाहते। कोरोना महामारी को लेकर नि:संदेह तेन्दूपत्ता चुनौती सदृश्य है। इसी के साथ आदिवासी मजदूर परिवारों पर भी आय का संकट मंडरा रहा है।

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