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तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो…

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चम्पा ने चम्पक को इशारे से बुलाया, जो अपने मित्रों के साथ घर में चाय का लुफ्त ले रहा था। उसने चम्पक से धीरे से कहा- लाकडाऊन लम्बा चलेगा और तुम्हारे सब मित्रों की गुफ्तगु हर दिन यहीं होती है। कभी-कभी दो-दो मर्तबे चाय का दौर चलता है। घर का बजट गड़बड़ा गया है। आमदनी 50 पैसा और खर्चा रूपैया जैसा है। चम्पक ठीक है, देखता हूं, बोलकर, फिर मित्रों के पास आ गया। उसके माथे पर बल देखते हुए, मित्रों ने जानना चाहा, क्या हो गया? चम्पक मित्रों से कोई पर्दा नहीं रखता था, उसने जो सच था, वह बता दिया। शहरवासी को यह सुनकर अपनी भूल समझ में आयी और उसने बाबूलाल से कहा- हमें-तुम्हे अब कन्ट्रीब्यूट करना है और चाय पर चर्चा भी जरूरी है। जब तक होटलें बंद हैं, हमें मिलते रहना है। चम्पक पुत्र-टप्पू को बुलाकर बाबूलाल ने उसे 500/- दिए और कहा- टप्पू दूध, चाय, बिस्किट, शक्कर लाने का काम अब तुझे करना है। चम्पक बोला-अब तुमने टप्पू को पैसे दे दिए और टप्पू को सामान लाने पैसे देते हैं तो बचे चिल्लर पैसे वह खुद ही रख लेता है। उसे वह अपनी जेब खर्ची मानता है। थोड़ी देर बाद घर भीतर से टप्पू के भजन की आवाज सुनाई दी।
वह गा रहा था-
तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो,
तुम्ही हो बन्धु, सखा तुम्ही हो।

तीनों ही मित्र कौतूहलवश वहां पहुंचे, जहां टप्पू अपने सामने रखे दो फोटो के सामने यह भजन गा रहा था। निकट जाकर देखा तो पुट्ठे में चिपकायी हुई पेपर कटिंग की हुई कलेक्टर और एसपी की फोटो थी। बाबूलाल को सब्र नहीं हुआ और पूछा- टप्पू तू अगरबत्ती जलाकर इन अफसरों के फोटो के सामने क्यों ये भजन गा रहा है? टप्पू बोला- अंकल, अभी तो शहर में इनकी हुकुमत है और हमारी मांग ये माता-पिता सदृश्य ये अफसर ही पूरा कर सकते हैं। शहरवासी ने पूछा- क्या मांग है? वह बोला- हमें घर भीतर अब बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। हमारे मोहल्ले के मित्रों को क्रिकेट खेलना है। स्पोटर््स दुकान से क्रिकेट किट खरीदनी है। हम कलेक्टर-एसपी को इसके लिए निवेदन करेंगे और जिले के ये पैरेंट उनकी बात मान ले, इसलिए उनका भजन गा रहा था।
यह सुनकर चम्पक ने लाल आंखें करते हुए कहा कि अव्वल तो ये अफसर परमिशन नहीं देंगे और दे भी दिए तो जानता है ना, लाकडाऊन चल रहा है। बहुत कडक़ी है। टप्पू बोला- पप्पा आप गुस्सा मत करो। हम मित्र लोग कन्ट्रीब्यूट करेंगे और मैं मेरा कन्ट्रीब्यूशन अपनी जेब खर्ची से करूंगा।
दुर्बल को न सताइये…
शहरवासी ने चम्पक को शान्त किया और फिर वे अपनी चर्चा में मशगुल हो गए। बाबूलाल बोला- टप्पू का यह कहना तो सच है कि कलेक्टर और एसपी जिले के मालिक हैं। जो भी वे सोचते हैं, उसे निर्णय में बदल आदेश जारी कर देते हैं। देखो न कलेक्टर का अचानक त्वरित लिया निर्णय कि सोमवार को पूर्ण लाकडाऊन रहेगा। न ही कोई दुकान खुलेगी और न कोई घर से बाहर निकलेगा। उनका आदेश का अक्षरश: पालन हो, इसके लिए एसपी ने शहर के स्थान-स्थान पर पुलिस के जवानों को तैनात कर दिया। फिर क्या था- दूध वाले, साग भाजी वाले, दवा दुकान वाले, किराना अनाज वाले, फल वाले न दुकान खोल सके और न ही बाहर निकल सके। जो भी निकले, पुलिस ने डांट फटकार कर बलपूर्वक उन्हें वापस कर दिया। कईयों की परेशानी, दु:ख चरम सीमा पर था। रोजाना कमाने-खाने वालों का उस एक दिन का खर्चा निकालना तो दूर, बल्कि उन्हें नुकसान झेलना पड़ा। उस दिन सख्तीपूर्वक पुलिस ने लाकडाऊन ‘बंद’ का पालन करने हर किसी को विवश कर दिया था।
चम्पक बोला- यार कमजोरों, गरीबों, निर्दोषों, ऐसे जन जो पूर्ण बंद को लेकर अनजान थे, उनके लिए वाकई बहुत बुरा दिन था। एक फिलासफर ने कहा है-
आप की तलवार की धार, कितनी तीक्ष्ण है,
आप कहां तक, हमारी गर्दन काटते रहेंगे?
संत कबीर न कहा है-
दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय,
बिना जीव की सांस से लोहा भस्म होय जाय।
शुक्रिया भगवान! सोमवार बंद
वाला आदेश रद्द हुआ
कहावत है, शीघ्रता भी धीरे से करो। अतिशय शीघ्रता भी भूलों को आमंत्रित करती है। मुझे ये अचानक हर सोमवार को पूर्ण लाकडाऊन का आदेश ठीक नहीं लगा, चम्पक ने कहा। नहीं चम्पक, सप्ताह में एक दिन पूर्ण रूप से लाकडाऊन का निर्णय गलत नहीं है। आपत्ति लोगों, व्यापारियों को ‘सोमवार’ को बंद रखने को लेकर थी। सप्ताह में एक दिन बंद रहे, इससे किसी को एतराज नहीं है।
देख चम्पक, रविवार बाजार का दिन है, उस दिन लोग बाग जरूरी खरीदी कर सोमवार को घरों में कैद रहेंगे, इसलिए जिले के शीर्ष अधिकारी ने सोमवार को चुना होगा। हां मित्र, ऐसा हो सकता है। इसके अलावा शायद यह भी संभव है, अधिकारी शिव भक्त हों और सोमवार भोलेनाथ का दिन माना जाता है, इसलिए सोमवार को तय किया होगा ?
दोनों ही मित्रों को चम्पक का लाजिक भाया और हंस पड़े। शहरवासी ने कहा- अरे भई, शहर के अधिकांश लोग तो विष्णु भक्त हैं और विष्णु का दिन गुरूवार है। हर गुरूवार को वैसे भी दुकानें बंद रहती हैं। इस दिन लोग खरीदी के लिए बाहर भी नहीं निकलते। गुरूवार का दिन पूर्ण लाकडाऊन के लिए बेहतर होता। उत्तमता को विकसित करने की सच्ची रीत यह कि जनभावना की कद्र कर उनकी हौसला अफजाई करना। सुखद समाचार भी ऐसे समय आया कि अब सोमवार को भी निर्देशानुसार दुकानें खुली रहेंगी।
एक नई मुसीबत- हेलमेट
गुफ्तगु के दौरान ही टप्पू चाय-बिस्किट लेकर आया और आते ही चम्पक से बोला- पप्पा आपने जो नया जूता खरीदा है, वह काटता है। अरे तो उसके भीतर थोड़ा पावडर लगा ले, चम्पक ने कहा। अचानक ऐसे ही समय, बाबूलाल हंस पड़ा, बोला- मित्र नया पर ध्यान दो।
अब हेलमेट को लेकर शहर में कोहराम बना है। हेलमेट पहनने का कानून पुराना है। कभी यह कानून कोमा में चला जाता है तो कभी अचानक कोमा से बाहर आ जाता है। लोगों का मानना है कि जब हेलमेट मैन्युफेक्चरर्स और डीलरों के पास उसका भारी स्टाक जमा होता है, तब वे किसी सत्तासीन राजनेता को सेट कर पुलिस महकमे के जरिए लोगों को दोपहिया चलाते समय हेलमेट पहनना अनिवार्य कर देते हैं। और! जब हेलमेट का स्टाक खत्म होने आता है तब इस कानून को इशारों-इशारों में ही शिथिल करने कहा जाता है। इस डील में भारी कमीशनबाजी रहती है। नोट के बाद वोट भी जरूरी है और जब त्रस्त जनता की गुहार राजनेता तक पहुंचती है, तब हेलमेट पहनने को ऐच्छिक कर दिया जाता है, बाबूलाल ने कहा।
देखो बाबूलाल, इस बात को प्राय: हर कोई जानता है, किन्तु लाकडाऊन ने लोगों को आर्थिक रूप से बेदम कर दिया है। मिडिल क्लास बमुश्किल अपने वाहन में पेट्रोल डलवाता है। आनलाइन वर्चुवल स्टडी स्कूल वालों ने शुरू कर दी है। इसके लिए बच्चों के पालकों-अभिभावकों के पास मोबाइल खरीदने पैसे नहीं हैं। आनलाईन स्टडी में मोबाईल अनिवार्य हो गया है। व्यापार-उद्योग ठप्प है। ऐसे में हेलमेट को फिर कानूनी अमलीजामा पहनाना, वह भी तब जब लोगों को शहर के भीतर ही रहना है, जरूरी काम से ही बाहर निकलना है। ऐसी त्रासदी के समय हेलमेट की अनिवार्यता व्यवहारिक तो नहीं है।
आम आदमी पर सख्ती और नेताओं पर नजरें इनायत
कहते हैं जिस समाज में सर्वदर्शी जागृत व्यक्ति नहीं हैं, वह समाज मृतप्राय है, जिस समाज में प्रयोगवीर नहीं हैं, वह समाज भी बूढ़ा हो गया है। कोरोना महामारी के कारण मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरूद्वारे बंद हैं। सोशल डिस्टेंसिंग रहे, फिजिकल डिस्टेंसिंग रहे, पीएम ने अभी-अभी ही ग्रामीणजनों से कहा है कि वे एक-दूसरे से दो-दो गज की दूरी से मिलें। धार्मिक-शोक समारोह पर पाबंदी लगी है। समूह में न रहें, इसके लिए धारा 144 लागू है।
आम आदमी पर लाकडाऊन के नियम का सख्तीपूर्वक पालन कराने पुलिस सक्रिय है। किन्तु नेताओं के प्रति लगता है, लाकडाऊन के नियम अलग हैं। मोहला व डोंगरगांव विधायकों ने लाकडाऊन के नियमों की धज्जियां उड़ाई, किन्तु जिला व पुलिस प्रशासन अपने कर्तव्य से विमुख बना रहा। नेताओं पर कार्यवाही करने से शायद ट्रांसफर हो जाने के भय ने उन्हें सताया होगा। कर्तव्यनिष्ठ अभय बने रहने वाले अफसर ट्रांसफर से कतई विचलित नहीं होते और हर समय उनका बोरिया-बिस्तर अपने स्थानांतरित गंतव्य स्थान में जाने के लिए तैयार रहता है।
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लाकडाऊन में अपने मृत पिता के दाह संस्कार में शामिल न होकर समाज में अपनी जागरूकता का परिचय दिया है और देश में रोल माडल बने।
धारा 144 में जुंबा डांस
लाकडाऊन और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उडऩे की एक और घटना ने संस्कारधानी जनता की भावनाओं को तार-तार कर दिया है। धारा 144 में ही गत दिनों की शाम एएसपी के नेतृत्व में तिरंगा चौक, भरकापारा और भारत माता चौक पर स्पीकर बजाकर ‘जुंबा डांस’ का आयोजन हुआ, जिसमें भांगड़ा हुआ। महिला एएसपी ने इसमें शिरकत की। तकरीबन सौ मीटर के भीतर ही बड़ी संख्या में इस मनोरंजक डांस को देखने भीड़ जुट गई। इस आयोजन का ध्येय शुरूआत में लोगों में जागरूकता लाना था, किन्तु बाद का आयोजन मस्ती से सराबोर रहा। कोरोना से बचने की सावधानी गौण हो गई। चेहरों से मास्क हटा दिए गए।
प्रबुद्धजनों में इस अजुबे आयोजन को लेकर संदेश अच्छा नहीं गया है। अधिकांश लोग नाराज हैं। जब पुलिस आम लोगों पर नियमों का उल्लंघन करने पर उन्हें दंडित करती है और स्वयं ही कोरोना से उत्पन्न गंभीर परिस्थिति में नियमों की अवहेलना करती है तो इसे आदर्श प्रस्तुति तो नहीं कह सकते। मीडिया समाज का दर्पण होता है। उसके सामने जो भी प्रिय-अप्रिय घटनाएं समाज में होती है, उसे ही मीडिया दिखलाता है। इसे झूठलाने वाले वास्तव में स्वयं से ही छल करते हैं।
अब दान करने दवा दुकानदार आगे आयेंगे?
सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनकर कोरोना से बचा तो जा सकता है। फिर भी असावधानीवश कोरोना किसी को पकड़ ही ले तब चिकित्सा क्षेत्र को सज्ज करना यह पहली प्राथमिकता होनी ही चाहिए। इसी ध्येय से कलेक्टर ने जिले के दानदाताओं को अस्पताल उपयोगी वस्तुओं को दान में देने की अपील की है। अस्पताल से जुड़ी वस्तुओं की बखूबी जानकारी दवा दुकानदारों व वहां रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट के पास स्वाभाविक रूप में रहती है। यूं भी सीएम या पीएम केयर फण्ड में जिला दवा संघ ने योगदान किया हो ऐसी कन्फर्म जानकारी नहीं है। जिले भर में दवा दुकानें कुकुरमुत्ते की तरह खुली हैं। इन सभी दवा दुकानों की वैधता या अवैधता पर फिलहाल तो कुछ नहीं कहना। किन्तु कलेक्टर की अनुमति के बगैर एक भी दवा दुकान नहीं खुल सकती, यह पक्की बात है। कोरोना चिकित्सा से जुड़ी सभी सामग्रियां दान स्वरूप प्रदाय करने में दवाओं के थोक व खुदरा विक्रेता आर्थिक रूप से सक्षम भी हैं। लाकडाऊन के समय में दवाओं का व्यापार अप्रभावित रहा है, यह भी गौरतलब है। अब कलेक्टर की अपील यहां योग्य असर करेगी, ऐसा मानना गलत तो नहीं है।
उर्दू के शायर फैज कहते हैं-
कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो।
बाजु भी बहुत, सर भी बहुत,
चलते भी चलो कि अब,
डेरे मंजिल ही पेे डालेंगे।। -दीपक बुद्धदेव

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