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कर्ज नहीं कैश दो के नारे के साथ किसान संगठनों ने घरों व खेत-खलिहानों में किया प्रदर्शन

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अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आव्हान पर कई मुद्दों को लेकर आवाज बुलंद
राजनांदगांव(दावा)। स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश को लागू करने सहित कई मुद्दों को लेकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा देशव्यापी किसान आंदोलन किया जा रहा है। मांगों को लेकर किसान संगठनों द्वारा गुरुवार को खेत खलिहान व घरों से प्रदर्शन कर आवाज बुलंद किया गया। किसान संगठनों ने कर्ज नहीं कैस दो के नारे के साथ राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के मुद्दों को लेकर बैनर पोस्टर के साथ प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में जिला किसान संघ से जुड़े किसानों ने अपनी सहभागिता निभाई। किसानों द्वारा करोनो संक्रमण के चलते सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए मास्क लगा कर प्रदर्शन किया गया।
इस दौरान किसान संगठनों ने केंद्र और राज्य सरकार से किसान विरोधी, गांव विरोधी नीतियों को वापस लेने, गरीबों को खाद्यान्न और नगद राशि से मदद करने के साथ ही प्रवासी मजदूरों के साथ राहत कैम्पों और क्वारंटाइन सेंटरों में मानवीय व्यवहार किए जाने, उनकी भोजन व पोषण आवश्यकताओं को पूरा करने और सभी लोगों का कोरोना टेस्ट करने की मांग जोर-शोर से उठाई।
कई संगठनों ने प्रदर्शन में लिया भाग
छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते और किसान संगठनों के साझे मोर्चे से जुड़े विजय भाई ने बताया कि दो दिन मेंं 20 जिलों के सैकड़ों गांवों में कोविड-19 प्रोटोकॉल के फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए घरों से, खेतों में, मनरेगा स्थलों पर और गांव की गलियों में हजारों स्थानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए। गुरुवार को दूसरे दिन भी किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, हसदेव बचाओ अरण्य संघर्ष समिति, क्रांतिकारी किसान सभा, छग मजदूर-किसान महासंघ, वनाधिकार संघर्ष समिति द्वारा विरोध प्रदर्शन आयोजित किऐ गए। सीटू और छमुमो से जुड़े ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं ने भी इस आंदोलन के समर्थन में एकजुटता दिखाई।
किसानों को नहीं व्यापार करने वाले कॉर्पोरेट को लाभ
इन संगठनों के नेताओं ने स्थानीय स्तर पर भी किसान समूहों को संबोधित किया और केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र के लिए घोषित पैकेज को किसानों और ग्रामीण गरीबों के साथ धोखाधड़ी बताया। उनका मानना है कि इस पैकेज का लाभ खेती-किसानी करने वाले ग्रामीण गरीबों को नहीं, बल्कि कृषि क्षेत्र में व्यापार करने वाली कॉर्पोरेट कंपनियों को ही मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह पैकेज किसानों और प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी, उनकी आजीविका और लॉक डाऊन में उनको हुए नुकसान की भरपाई नहीं करती।
कार्य नहीं कैश से मदद की जरुरत
इस दौरान किसान नेताओं ने कार्य के बदले किसान और प्रवासी मजदूरों को कैश से मदद करने की मांग पर जोर देते हुए ग्रामीण परिवारों को अगले छह माह तक 10000 रुपए की मासिक नगद मदद देने, हर जरूरतमंद व्यक्ति को अगले छह माह तक 10 किलो खाद्यान्न हर माह मुफ्त देने, खेती-किसानी और आजीविका को हुए नुकसान की भरपाई 10000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से करने, किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने, किसानों को बैंकिंग और साहूकारी कर्ज के जंजाल से मुक्त करने और प्रवासी मजदूरों को बिना यात्रा व्यय वसूले उनके घरों तक सुरक्षित ढंग से पहुंचाने और बिना सरकारी सहायता अपने घरों में पहुंच चुके मजदूरों को 5000 रुपए प्रवास भत्ता देने की मांग केंद्र सरकार से की है। किसान नेताओं ने सरकार पर प्रवासी मजदूरों की दयनीय दशा के बारे में झूठा हलफनामा देकर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का भी आरोप लगाया है।
न्याय योजना की राशि एकमुश्त देने की मांग
प्रदेश में आंदोलित 25 किसान और आदिवासी संगठनों ने राज्य में कांग्रेस की भूपेश सरकार से किसान न्याय योजना की राशि एकमुश्त देने और मक्का की सरकारी खरीद किए जाने की भी मांग की है। उनका कहना है कि राज्य सरकार ध्यान राहत के वास्तविक कदमों पर कम, आत्मप्रचार पर ज्यादा है और प्रवासी मजदूरों के साथ प्रशासन का रवैया अमानवीय और असंवेदनशील है। सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते कहा कि प्रदेश के चार लाख गैर-पंजीकृत छत्तीसगढ़ी मजदूर आज भी बाहर फंसे हुए हैं और उन्हें वापस लाने की कोई योजना सरकार के पास नहीं है। जो मजदूर वापस आकर क्वारंटाइन केंद्रों में रखे गए हैं, न तो उनका कोरोना टेस्ट किया जा रहा है और न ही उन्हें ठीक से पर्याप्त खाना दिया जा रहा है। इन मजदूरों को घर से खाना लाने को कहा जा रहा है। किसान नेताओं ने सभी प्रवासी मजदूरों को एक अलग परिवार मानकर काम और मुफ्त राशन देने की मांग की है तथा इसके लिए बजट में अतिरिक्त आबंटन की भी मांग की है।

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