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कोरोना का पर्यावरण पर पड़ा ‘पॉजिटिव’ असर

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राजनांदगांव (दावा)। आज 5 जून, शुक्रवार को विश्व पर्यावरण दिवस है। इस बार का पर्यावरण दिवस बीते कई वर्षों की तुलना में कुछ बेहद खास और अलहदा है। असल में हर साल पर्यावरण दिवस पर देश व दुनिया में तमाम जो स्वर सामने आते हैं, वे खराब पर्यावरण की दुहाई के होते हैं लेकिन इस बार तो ऐसा कुछ है ही नहीं। इस बार तो पर्यावरण एकदम साफ-सुथरा, दिलकश और नया नवेला हो गया है। ये बातें अतिश्योक्ति नहीं हैं। भारत सहित दुनिया में ऐसे कई उदाहरण सामने आ रहे हैं। कोरोना वायरस के चलते पूरी दुनिया में लंबे समय तक लॉकडाउन रहा। इसके चलते प्रकृति में मनुष्य का
दखल एकदम बंद हो गया। नतीजा, प्रकृति खुलकर, निखरकर अपने नैसर्गिक स्वरूप में आ गई। कोरोना वायरस से मानवता को जरूर बड़ा नुकसान हुआ है लेकिन पर्यावरण पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। चंद उदाहरणों से जानिये कैसे।
0 पानी की क्वालिटी सुधरी : चूंकि कहीं भी पानी पर तैरती नावें नहीं थीं, चाहे वे मछली पकडऩे की हो या सैर-सपाटे, ऐसे में नदियों का पानी साफ हो गया है। वेनिस जैसे क्षेत्रों में, पानी इतना साफ हो गया कि मछलियों को साफ देखा जा सकता है और पानी का प्रवाह भी पहले से बेहतर है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इंसान की आवाजाही कम होने के कारण अब समुद्र के भी हाल सुधर रहे हैं। समुद्री जीवन संपन्न हो रहा है।
0 वन्यजीवों पर यह पड़ा प्रभाव : लॉकडाउन में मछली पकडऩे के क्रम में में गिरावट देखी गई है, जिसका अर्थ है कि मछली पकडऩे के बाद बायोमास में वृद्धि होगी। इसके अलावा, जानवरों को स्वतंत्र रूप से घूमते हुए देखा गया है जहां वे मनुष्य के रहते तो एक बार भी सामने आने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे। यहां तक कि समुद्री कछुओं को उन क्षेत्रों में लौटते देखा गया है जहां वे एक बार अपने अंडे रखने से बचते थे। यह सब मनुष्य की मौजूदगी से होता था।
0 वनस्पति पर प्रभाव : स्वच्छ हवा और पानी के कारण पौधे बेहतर तरीके से बढ़ रहे हैं, और क्योंकि अभी तक फिर से कोई इंसान की दखलअंदाजी जैसी चीज़ नहीं है। एक ठहराव आ गया है और इसके साथ ही पौधों को पनपने और बढऩे और अधिक कवरेज और ऑक्सीजन का उत्पादन करने का मौका मिल रहा है। कम कूड़े का मतलब भी नदी के सिस्?टम के लिए सुधार है। ये हालात लांग टर्म में पर्यावरण के लिए शुभ हैं।
यह 1974 में पहली बार आयोजित किया गया था और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूकता और कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 5 जून को मनाया जाता है। यह पर्यावरण से संबंधित मुद्दों जैसे वायु प्रदूषण, समुद्री प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, जनसंख्या बढ़ोतरी आदि के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था।
0 …लेकिन मनुष्य के लौटते ही खो जाएगी यह रौनक : निष्कर्ष में यह कहा जा सकता है कि हालांकि लॉकडाउन के कारण पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है लेकिन अब यह भी डर है कि एक बार लोग फिर से यात्रा करना शुरू कर देंगे। वे जो कर रहे हैं उसे करने के लिए वापस चले आएंगे तो ये सारे सकारात्मक प्रभाव भी गायब हो जाएंगे।

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