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ऐसा संयोग 165 साल बाद पितृ-पक्ष के एक महिने के बाद शुरू होगी नवरात्रि

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3 से शुरू होकर 17 सितंबर तक चलेंगे पितृपक्ष के सभी श्राद्ध
राजनांदगांव (दावा)।
पितृ-पक्ष इस साल 3 सितंबर से प्रारंभ होगा। सर्व पितृमोक्ष अमावस्या 17 सितंबर तक चलेंगे। ज्योतिषियों की माने तो 165 वर्ष बाद ऐसा हो रहा है कि पितृपक्ष के बाद एक महीने का अंतराल है और उसके बाद नवरात्रि शुरू होगी। ऐसा अधिकमास पडऩे की वजह से हो रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके तर्पण के निमित्त श्राद्ध किया जाता है। यहां श्राद्ध का अर्थ श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान प्रकट करने से है।

देवऋण, ऋषित्रण और पितृऋण से मुक्ति
हिंदू धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। ज्योतिषाचार्य कालू शर्मा ने बताया कि शास्त्रों द्वारा मनुष्य के लिए तीन प्रकार के ऋण अर्थात कर्तव्य बताए गए है- देवऋण, ऋषित्रण और पितृऋण। अत: स्वाध्याय द्वारा ऋषिगण से, यज्ञों द्वारा देवऋण से और श्राद्ध व तर्पण द्वारा पितृ ऋण से मुक्ति पाने का रास्ता बताया गया है। इन तीनों ऋणों से मुक्ति पाए बिना व्यक्ति का पूर्ण विश्वास व कल्याण होना असंभव है। अपने पूर्वजों से मनुष्य का आत्मिक संबंध बना रहे और उनकी शिक्षाओं का समय-समय पर स्मरण आता रहे।

15 दिन पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त का
इसी दृष्टिकोण से पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक के 15 दिन पितरों यानी पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए रखे गए है। इसे पितृ पक्ष का नाम दिया गया है। वहीं 165 वर्ष बाद ऐसा हो रहा है कि पितृ पक्ष के बाद एक महीने का अंतराल है और उसके बाद नवरात्रि शुरू होगी।

पक्ष के प्रत्येक दिन है महत्वपूर्ण
यदि आपको अपने पूर्वजों के देहावसान की तिथि नहीं मालूम है तो इसके लिए पितृपक्ष में कुछ विशेष तिथियां नियत की गई है। जिस दिन श्राद्ध करने से हमारे सभी पितृजनों की आत्मा को शांति मिलती है।
3 सितंबर, प्रतिप्रदा श्राद्ध – यह तिथि नाना-नानी के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है।
7 सितंबर, पंचमी श्राद्ध – इस तिथि पर अविवाहितों का श्राद्ध करने का महत्व है।
11 सितंबर, नवमीं श्राद्ध – यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है।
13 सितंबर, एकादशी व 14 को द्वादशी श्राद्ध – इस दिन संन्यासी लोगों का श्राद्ध करने का प्रावधान है।
15 सितंबर त्रयोदशी व 16 चतुर्दशी श्राद्ध – इस दिन दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से अकाल मृत्यु होने वालों सदस्यों का श्राद्ध किया जाता है।
17 सितंबर सर्व पितृमोक्ष अमावस्या – पितृपक्ष की सभी तिथियों पर पितरों का श्राद्ध चूक जाए या पितरों की तिथि याद न हो तब इस दिन सभी पि तरों का श्राद्ध कर सकते है।

मंत्र:
ऊँ ऐं पितृदोष शमनं हीं ऊँ स्वधा ऊँ क्रीं क्लीं ऐं सर्वपितृभ्यो स्वात्म सिद्धये ऊँ फट
ऊँ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नो भव ऊँ
ऊँ पितृ्भ्य: स्वधायिभ्य:स्वधानम:पितामहेभ्य:
स्वाधायिभ्य: स्वधानम:
प्रपितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: अक्षन्न पितरो मीमदन्त पितरोतीतृ्पन्त पितर:
पितर:शुन्दध्वम ऊँ पितृ्भ्यो नम:

पितृदोष से मिलेगी मुक्ति
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य, चंद्र की पाप ग्रहों जैसे राहु और केतु से युति को पितृ दोष के रूप में व्यक्त किया गया है। इस युति से मनुष्य जीवन भर केवल संघर्ष करता रहता है। मानसिक और भावनात्मक आघात जीवन पर्यंत उसकी परीक्षा लेते रहते हैं। पितृ पक्ष में अधोलिखित मंत्रों से, या किसी एक मंत्र से काली तिल, चावल और कुशा मिश्रित जल से तर्पण देने से घोर पितृ दोष भी शांत हो जाता है।

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