Home समाचार किसानों आंदोलन को माओवादी कहना सांसद की पूंजीवादी सोच और असंवेदनशीलता-विवेक वासनिक

किसानों आंदोलन को माओवादी कहना सांसद की पूंजीवादी सोच और असंवेदनशीलता-विवेक वासनिक

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राजनांदगांव(दावा)। राजगामी सम्पदा न्यास के अध्यक्ष विवेक वासनिक ने जारी बयान में कहा है कि देश के किसानों के जन आंदोलन को नक्सल माओवादी कह कर सांसद संतोष पांडेय ने अपने पूंजीवादी और असंवेदनशील होने का परिचय दिया है।

श्री वासनिक ने कहा कि सर्वप्रथम हम यह जान लें कि आज किस जमीनी हकीकत पर पैर जमा कर कांग्रेस काम कर रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य को भूपेश बघेल सरकार ने 2500 रुपये किया, बोनस दिया, बकाया बोनस दिया। नरवा, गरवा, घुरवा, बारी के सफल क्रियान्वयन से गौठान आज केंचुआ खाद बना और बिक्री कर रहे हैं। पौनी पसारी योजना में कारीगरों को दुकान देकर उनकी आय बढ़ाने की योजना बनाई गायी है। लेकिन पूंजीवादी समर्थक बीजेपी की इस प्रोपोगंडा की नीति पर चलते हुए सांसद संतोष पांडेय ने मगरमच्छ के आंसू बहाये, जिन किसानों को रमन सरकार ने अपने 15 साल के कार्यकाल में पूछा तक नहीं, बोनस नहीं दिया, अपना 2100 का न्यूनतम मूल्य का वादा पूरा नहीं कर पाये, उस किसान विरोधी बीजेपी के किसान विरोधी मोदी सरकार के सांसद एक किसान की दुखद मृत्यु पर राजनीति खेल कर सहानुभूति बटोरना चाहते हैं। जिन किसानों को कल नक्सली कह कर अपनी असंवेदनशीलता का परिचय दिया, वह किसान की मृत्यु का राजनैतिक लाभ लेना चाह रहे हैं। वे अवगत हो की बीजेपी कार्यकाल में असंवेदनशील हुए प्रशासन और ऐसे अधिकारियों को कांग्रेस बख्शेगी नहीं, कांग्रेस सरकार जनता की, जनता के सम्प्रभुता की प्रतिनिधि है, प्रशासन को जन-सेवक के रूप में पुनस्थपित करना जिसका दायित्व है।

श्री वासनिक ने कहा कि भाजपा की सच्चाई है कि यह बड़े उद्योगपतियों के पैसे से चलती है, इसलिए उद्योगपतियों के विकास के लिए बीजेपी योजना बनाती है और किसानो से मजदूरों से उसका काम लेती है, सस्ते में उनकी मेहनत और उपज को उद्योगपतियों को उपलब्ध कराती है। ताजा उदाहरण है तीन कानूनों में किसानों के हानि और उद्योगपतियों के लाभ के लिए संशोधन करना, आवश्यक वस्तु अधिनियम में ऐसे संशोधन किया, जिसके लाभ से जमाखोर और बड़े उद्योगपति अब करोड़ों टन अनाज अपने गोदाम में भंडार कर ले और बाजार में अनाज की आपूर्ति रोक कर उसके दाम बढ़ा दें। इसमें उद्योगपतियों और जमाखोरों पर मेहरबान होते हुए बीजेपी सरकार ने उद्योगपतियों और जमाखोरों अपने नियंत्रण की शक्ति का स्वयं त्याग कर दिया है। किसानो के विरोधी पूंजीवादियों के पैसे से पोषित बीजेपी के प्रोपोगेंडा शाखा का यही कार्य है कि जन आंदोलनों को कभी देशद्रोही, कभी अर्बन नक्सल, कभी खालिस्तानी कह कर जन आंदोलन की मर्यादा को भंग किया जाये।

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