राजनांदगांव(दावा)। दो दशक पहले तक बहुतायत में पाए जाने वाले उल्लू की प्रजाति अब विलुप्त होने की कगार पर है। खासतौर पर सफेद उल्लू बहुत ही कम देखने को मिल रहे हैं। लेकिन जिले में पहली बार बुधवार को छुरिया ब्लाक के ग्राम चिरचारी कला (गैंदाटोला) में एक किसान नरेन्द्र दमोह के घर के पटाव में सफेद उल्लू के एक नहीं, बल्कि सात बच्चे देखे गए। सफेद मुंह वाला उल्लू काफी दुर्लभ प्रजाति का होता है, जिसे देखने के लिए लोगों में कौतूहल बना हुआ है।
जानकारी के अनुसार चिरचारी कला की बसाहट पहाड़ी व जंगल के पास ही है, इसलिए जंगल में तमाम तरह के पक्षी व अन्य जीव हैं। इस आधार पर माना जा रहा है कि मादा उल्लू द्वारा नरेन्द्र दमोह के घर के पटाव को ही सुरक्षित जगह मानकर अंडे दिया गया होगा, जिससे सात बच्चे हुए हैं। किसान को जब किसी काम से अपने घर के पटाव में जाना हुआ तब मादा उल्लू की गुर्राहट सुनकर वह भी चौंक गया। बताया जाता है कि मादा उल्लू एक बार में अधिकतम सात अंडे दे सकती है, किंतु यहां एक साथ सात बच्चे होना भी हैरत की बात है। खास बात यह है कि उल्लू के सभी बच्चे सफेद रंग के हैं, जो कौतूहल का विषय है। प्राय: काले व भूरे रंग के उल्लू यदा-कदा नजर आ ही जाते हैं। इस उल्लू का वैज्ञानिक नाम टाइटो अल्बा और वनीय समूह पक्षी के रूप में बार्न हाउल प्रजाति के नाम से जानते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार यह पक्षी रात्रि में विचरण करने वाला और मानव मित्र है। चूहे व फसल को नुकसान पहुुंचाने अन्य छोटे जीव इसके प्रिय भोजन होते हैं। जंगलों की कटाई और मानवीय दखल से इस प्रजाति के पक्षी कम हो रहे हैं। लंबी आयु वाले बार्न हाउल की लंबी चोंच, गोल चेहरा और आंख, चोंच को घेरते दिल के आकार में भूरे रंग के रोएं इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देते हैं। इसका आकार 40-45 सेंटीमीटर होता है। आमतौर पर इस प्रजाति के पक्षी बड़े-पुराने खंडहर, ऊंचे वृक्ष के कोटर और चट्टानों के दरार में दिन में आराम करते हैं और रात को आहार के लिए निकलते हैं। इस दौरान इनके पंख आवाज नहीं करते। इससे शिकार करने में आसानी होती है।
विश्व में लगभग 200 प्रजाति के हैं उल्लू
पूरी दुनिया के अंदर लगभग 200 उल्लू की प्रजातियां पाई जाती हैं और यह तेज तर्रार शांत और अधिक दूरी तक देखने वाला पक्षी होता है। उल्लू ज्यादातर छोटे स्तनधारियों कीड़ों और अन्य पक्षियों का शिकार करते हैं, हालांकि कुछ प्रजातियाँ मछलियों का शिकार करने में माहिर होती हैं। वे ध्रुवीय बर्फ के छल्लों और कुछ दूरदराज के दीपों को छोड़कर पृथ्वी के सभी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। उल्लू को निशाचरी पक्षी माना जाता है। इस वजह से यह रात के अंदर अधिक देख सकता है और दिन के अंदर यह आराम करता है। रात में जब किसी छोटे जानवर की कहीं पर हलचल होती है तो यह उसे दबोच लेता है और उसके बाद उसे अपने पंजों से मार डालता है। चूहे उल्लू के प्रमुख भोजन होते हैं। उल्लू के बारे में यह धारणा है कि यह बहुत ही बुद्धिमान होता है। उल्लू अपने सिर और गर्दन को 270 डिग्री तक घुमा सकते हैं। उल्लुओं के पास मनुष्यों में सात की तुलना में 14 गर्दन की कशेरुका होता है, जो उनकी गर्दन को अधिक लचीला बनाती है।
लक्ष्मी माता का वाहन है उल्लू
ग्रामीण क्षेत्रों में जानकार एवं तांत्रिकों द्वारा बार्न हाउल या सफेद उल्लू को शुभ मानते हुए पूजा की जाती है। ग्रामीणों की मान्यता है कि यह लक्ष्मी माता का मुख्य वाहन है और इसे मारना पाप है। यदि किसी के हाथ सफेद उल्लू की मौत होती है तो उससे लक्ष्मी भी रुष्ठ हो जाती है और परिवार में विपन्नता व विपत्तियां शुरू हो जाती है, यह मानकर ग्रामीण उल्लू को नहीं मारते। गौरतलब है कि उल्लू तंत्र विद्या में प्रयोग किया जाने वाला पक्षी है। लोगों की मानें तो तंत्र साधना सीखने वाले इस पक्षी को पकड़कर पहले इसको पालते हैं। इसी तरह दीपावली और नवरात्रि के समय अक्सर इस पक्षी की जरूरत तांत्रिकों को पड़ती है। गौर करने वाली बात यह है कि सफेद प्रजाति का उल्लू तंत्र विद्या में प्रयोग किया जाता है। ऐसे में इसकी कीमत दस हजार से एक लाख रुपए तक मानी जाती है। बताया गया है कि तंत्र साधना के दौरान इस पक्षी से तांत्रिक जो कुछ भी जानकारी हासिल करना चाहता है, वह बता देता है। कहा जाता है कि सफेद उल्लू किसी की मौत को भी बता सकता है। इसी डर से तांत्रिक अपने उपयोग की चीजें पूछने के बाद जब उनको ऐसा लगता है कि यह अब मौत बताने वाला है तो उसको मार देते हैं। यही वजह है कि यह प्रजाति पूरी तरह से विलुप्तता की कगार पर है।
कहीं पर सफेद रंग के उल्लू मिले हैं तो कोई बड़ी बात नहीं है। जैसे कोई आदमी गोरा या सांवला होता है, वैसे ही सफेद उल्लू के बारे में समझा जा सकता है। सफेद उल्लू के कहीं बच्चे मिले हैं तो बड़े होने पर वे खुद ही उड़कर चले जायेंगे।
-बी.पी. सिंह, डीएफओ राजनांदगांव