14 अप्रैल याने बाबा साहेब का बर्थ-डे। परम्परागत बर्थ डे संपन्न हुआ। नेताओं ने इस दिन आप का स्तुतिगान किया। यशोगान किया, वह भी अनथक। यूं तो आप के सिद्धान्तों को नेतागण घोलकर पी गए हैं। वे वर्णभेद और वर्गभेद उत्पन्न कर अपने स्वार्थ की रोटी सेंक रहे हैं साहब। चम्पक ने तत्काल फिर इसमें संशोधन करके कहा कि स्वार्थ की रोटी नहीं अब स्वार्थ का पिज्जा सेंक रहे हैं, ऐसा कहना ठीक होगा। कहने को तो यह कहने से नहीं चुकते कि हम वर्णभेद और वर्गभेद जमींदोज नहीं करेंगे, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे। लेकिन, जैसे चुनावी घोषणा-पत्र होता है, वैसे ही इस तरह की प्रतिज्ञा होती है। ठीक से समझने के लिए केवल इतना ही कि इसे चाइनीज प्रतीज्ञा कहना चाहिए।
बाबूलाल भी बाबा साहेब को ईश्वर तुल्य मानता है। उसने बाबा की तस्वीर को देखते हुवे कहा कि साहेब हर छोटा-बड़ा, प्रत्येक नागरिक आप को संविधान का पर्याय समझता है। संविधान का एक-एक पृष्ठ, पृष्ठ का एक-एक शब्द और अक्षर आज भी आप की सूक्ष्म हाजिरी का एहसास कराता है। साहब हम इतिहासकार नहीं है। इसलिए झूठी, असत्य या गलत को उजागर करती तारीख पे तारीख करते जैसे अन्याय से दूर रहते हैं। किन्तु, इतना तो हम अवश्य कहेंगे कि रामायण का अपमान होता है तो वह राम और रघुकुल का अपमान होता है। महाभरत का अपमान होता है तो वह कृष्ण का अपमान है। ठीक, इसी प्रकार अगर संविधान का अपमान होता है तो यह बाबा साहेब डॉ. आम्बेडकर का, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और हमारे बापू-महात्मा गांधी जी का अपमान है। ऐसा हम समझते हैं साहब।
चम्पक भी बहुत भावुक हो गया। उसने कहा – कई सालों से हमें बहुत ही सहनसील बना दिया गया है। हमारी आज की सहनशीलता देख कर हमारे पूर्वज भी सोच रहे होंगे कि हमारे जमाने में ऐसी, ऐसी याने स्वीकार की हुई, सहनशीलता रखी होती तो क्या भारत आज आजाद होता?
बाबूलाल बोला – चम्पक तुम कहीं पालिटिकल पार्टी बनाने की तो नहीं सोच रहे हो? अरे नहीं मित्र, ऐसा कैसे सोच लिया? हमारे में अभी उतना जनता प्रेम, उतनी देशभक्ति, उतनी वर्गभक्ति, वर्णभक्ति या उतना राष्ट्रप्रेम नहीं जागा है। न ही हमारा कोई पालिटिकल बैकग्राउन्ड है।
शहरवासी सीरियस था। उसने कहा- दूरबीन लगा दूर-दूर तक नजर डालो। क्या हमें ऐसा कोई नेता दिखता है, जिसके दिल में जनकल्याण हो? ऐसा कोई नेता जिसे हम दिल-दिमाग से, हमारी आत्मा से एक नेता को भी स्वीकार कर लें? ऐसा एक भी नेता दिखाई नहीं देता, जिसका बोला हुआ शब्द हमारे लिए धर्म बन जाए? दसों दिशाओं में कहीं कोई ‘रोल माडल’ नेता नहीं दिखाई देता, जिसके जरिए ‘नेतृत्व’ और ‘देश सेवक’ शब्दों को श्रेष्ठ अर्थ में एक्सप्लेन कर सके?
आज तो साहब कश्मीर से कन्या कुमारी तक म्युनिसीपाल्टी के स्तर की नेतागिरी देखने को मिल रही है। यहां जवाबदारी से अधिक ‘छिटको’ – ‘चलते बनो’ की वेल्यू अधिक है। जो नेता या अधिकारी या कर्मयोगी बेचारा जवाबदारीपूर्वक काम करता है, उसका मजाक उड़ाया जाता है।
बाबा साहेब, आजादी दिलाने में आप के जैसे राष्ट्रवादी और देशप्रेमी नेताओं के नाम का बड़ा गौरवशाली इतिहास है। आज इसके ठीक उलटा है। आज इतिहास के नाम पर कई नेता महान बनके देश सेवा कर रहे हैं।
नैतिकता आल टाइम लो-लेवल?
दो रंग दुनिया के और दो रास्ते,
दो रूप जीवन के वास्ते,
एक रास्ता मंदिर और जाए एक मयखाने को,
एक हैं ऐसे लोग जो और की खातिर जीते हैं,
दूसरे वे हंै जो अपनी खातिर अपनो के खून भी पीते हैं,
चम्पक का यह गाना बाबूलाल के दिल को छू गया। बोला-चम्पक तुम भी यार समय को खूब पहिचानते हो। वाकई में मित्र-अब आगे की दो लाईन मैं भी सुनाता हूं –
कोई फूल खिलाए,
कोई कांटे बिखराए
दो रंग दुनिया के और दो रास्ते
कोरोनाकाल में एक लोकप्रिय, लोकचिंतित और लोकहितकारक ऐसे नेता जी ने बुद्धिपूर्वक व्यापारियों से अपील की। जानता है चम्पक- नेता कभी-कभार ही अपील करते हैं। क्योंकि, अपील करना उनके एजेन्डा में नहीं होता। किन्तु, अभी चुनाव और कोरोना समानान्तर चल रहा है। अब इनमें से कौन इंफेक्शन फैला रहा है? यह संशोधन का विषय है।
जो जागरूक होते हैं, वे खामोश नहीं बैठते। ऐसे चंद लोग नेता जी से मिलने गए और कोरोनाकाल में जीवन आवश्यक चीज वस्तुओं के बढ़ते जा रहे भावों को नियंत्रित करने के लिए उनसे निवेदन किया। नेताजी ने सर्वप्रथम तो अपने को नियंत्रित किया और धैर्यपूर्वक, शांतिपूर्वक उनका निवेदन सुना। लोग जागरूक थे। समझ गए। चुनाव की देवी को मन ही मन प्रणाम किया और उनका आभार माना।
नेता जी भी इतना तो समझते थे कि ये लोग जनता की ओर से उनका भला करने के लिए निवेदन कर रहे है। इनके निवेदन पर गौर नहीं किया तो माहौल बिगड़ सकता है। चुनाव जीतना सर्वोपरि है। उन्होंने सहज होते हुवे जागरूकों के डेलीगेशन के मार्फत व्यापार जगत से जुड़े व्यापारी समुदाय से जोशिले शब्दों में अपील की।
इसी के साथ कथित बड़े व्यापारियों व उनके प्रतिनिधियों की आपातकालीन मीटिंग बुलवायी। वैसे, समस्या कोई भी हो, मीटिंग हमेशा आपातकालीन ही बुलवायी जाती है। फिर भले ही उसका परिणाम दीर्घकालीन तक न आए। नेताजी ने व्यापारियों को संबोधित करते हुवे कहा कि कोरोना के कहर के बीच जीवन आवश्यक चीज वस्तुओं की कीमतों पर ब्रेक नहीं लगाया तो हमें आवश्यक वस्तु अधिनियम अंर्तगत नियमों का सख्तीपूर्वक पालन करवाना भी आता है। आगामी दिनों में कीमतें कम नहीं हुई तो हमारी सत्ता पर ब्रेक लग सकता है।
तभी एक व्यापारी ने कहा कि चीज-वस्तुओं की कीमतों पर हम कैसे ब्रेक लगाएं ? नेता जी-कोई कार-वार चलायी है या नहीं? उसमें कैसे ब्रेक लगाते हो ? यहां हर सूरत में आपको कीमतें कम करनी है। सौ बात की एक बात महंगाई रूकनी चाहिए। जीवन में थोड़ी बहुत नैतिकता भी होनी चाहिए। हमारी सरकार नैतिकता पर अधिक जोर लगाती हैं। मूल्यवृद्धि नैतिकता पर करो, चीज-वस्तुओं पर नहीं।
एक व्यापारी ने सहमते हुवे पूछा कि साहब एक जानकारी देगें? नेता जी ने कहा – आपने विनम्रता दिखाई है। कहिए, क्या जानना चाहते हैं? साहब – नैतिकता तो आल टाइम लो लेवल हो गई है। हमें लगता है, इसमें आप का एक चौथाई सहयोग तो होगा ही! शटअप नानसेंस, ऐसी बातें की जाती है?
दूसरे व्यापारी ने कहा- सर, हम महंगाई पर ब्रेक लगायेंगे। किन्तु, आप हमें आर्थिक पैकेज दीजिए। सरकार ने पहले 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज देने की बात की थी, उनमें से हमको एक कौड़ी भी नहीं मिली।
नेता जी- बकवास बंद करो, सीटडाउन। हमें ‘चेरिटी बिगिन्स एट होम’ नारे पर चलते हैं।
क्रिकेट के सटोरियों के लिए आईपीएल बना वरदान
आईपीएल सटोरियों और खाकी वालों के लिए लाटरी लगने जैसा है। खिलाने वालों की पांच ऊंगलिया घी में और सिर कढ़ाई में रहता है। बदहाली तो उनकी रहती है जो लोभ लालच में प्रत्येक बाल, ओवर, चौका-छक्का, हार-जीत में अपना भाग्य आजमाने अपनी मेहनत का पैसा इसमें लगाते हैं और बर्बाद होते हैं।
शहर की बड़े होटलों, कालोनियों और चंद घरों में सटोरिये सक्रिय हैं। खाकी वालों के पास नामचीन किक्रेट जगत से जुड़े स्थानीय सटौरियों का रेकार्ड है। किन्तु, सटोरियों की अवैध कमाई का एक हिस्सा लेव्ही के रूप में उन तक भी पहुंचता है। राज-नेताओं के वरदहस्त के बिना ऐसा संभव ही नहीं है। एक हिस्सा उन तक भी पहुंचता है। बहरहाल लाकडाउन में सभी व्यापार छोटा-बड़ा बंद है। किन्तु, खिलाने और खेलने का धंधा अबाध गति से चल रहा है।
डरने से काम नहीं चलेगा, जान पे बन आयी है तब साथ मिल ‘जंग करें’
धनपत अचानक तीनों मित्रों के सामने एकाएक आ टपका। वह बड़ा टेंशन में था। चम्पक बोला – ये क्या रोनी सूरत बना रखी है। वह बोला – आप नहीं मानोगे, मैं आज कल प्रत्येक सांस में टेंशन ले रहा हूं और सांस छोड़ता हूं तब भी टेंशन में रहता हूं। ग्लास में भी टेंशन लेकर पानी पीता हूं और नाश्ते-खाने में भी टेंशन के सिवाय कुछ लेता नहीं। मैं बहुत-बहुत टेंशन में हूं।
चम्पक समझ गया, धनपत को कोरोना का भय सता रहा है। वह बोला- क्यों फिजूल का टेंशन ले रहा है। तेरी सांस आ रही है, जा रही है। देख हम गर्मागर्म भजिए खा रहे हैं। तेरे को भजिए की खुश्बू आ रही है ? धनपत- आ रही है। चम्पक – ले भजिया खा। धनपत ने भजिया मुंह में डाला। चम्पक- टेस्ट आया। धनपत – आया, बढिय़ा है, टेस्टी है। फिर काहे को टेंशन ले रहा है? डर मत, डर-डर के ही मर जाएगा। जा घर जा। घर में ही रह।
बाबूलाल बोला- यार डर का माहौल तो है। कोरोना के कहर ने अधिकांश लोगों को भीतर से मार डाला है। जिनमें मानवीय संवेदना है, जो सक्षम है, वे लोग कोरोना पीडि़तों की सहायता में आगे आए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह (विधायक), संतोष पांडे (सांसद), मो. अकबर (प्रभारी मंत्री) के अलावा शहर की अनेक समाजसेवी संस्थाएं कोरोना के प्रहार से पीडितों को बचाने बढ़-चढक़र काम कर रहे है।
उदयाचल, शांति विजय सेवा समिति, लोहाणा समाज, सिन्धु समाज, प्रेस क्लब कोविड सेंटर, अग्रवाल समाज, गणेश मंडल वगैरह-वगैरह के अलावा जिला प्रशासन, चिकित्सा-स्वास्थ्य विभाग यथाशक्ति कोरोना मरीजों को बचाने प्रयासरत हैं। अब ज्यादा जरूरी है कि लोग भी कोविड नियमों का गंभीरतापूर्वक पालन करें। घर में रहें। भयभीत होने से तो न मरने वाला भी मर जाएगा। सभी मिलजूल कर कोरोना से जंग करेगें तो कोरोना निश्चित रूप से पराजित होगा।
निदा फाजली ने फरमाया है-
मुझे मालुम है चारों तरफ
जो ये तबाही है
हुकूमत में सियासत के
तमाशे की गवाही है।
– दीपक बुद्धदेव