कोरोना की तीसरी लहर आ रही है। कई राज्यों में कोविड-19 बाबत गठित टास्क फोर्स ने भी कोरोना की तीसरी लहर आने के संकेत दिए हैं। पहली और दूसरी लहर के बीच अनुमानित 100 दिनों का गेप था। अब दूसरी लहर का प्रकोप कम हुआ है। तभी कलेक्टर ने पूजा एवं धार्मिक स्थलो के संचालन की अनुमति कोविड-19 के प्रोटोकाल व नियमों के शर्तों के साथ दी है।
चलो बाबूलाल, यह तो अच्छी बात है। कलेक्टर धीरे-धीरे सब अनलाक कर रहे हैं। जनजीवन और बाजार जैसा कि अनुमान था, धीरे-धीरे गति पकड़ रहा है। लेकिन चिन्ताजनक यह कि कोरोना वायरस का स्ट्रेन सतत् बदल रहा है। जिससे भी मुश्किलियों का अन्त नहीं हो रहा है। एक ओर, दुनिया भर में कोरोना के विरूद्ध वैक्सीनेशन का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है। तब कोरोना वायरस रूप बदल कर फिर लोगों को धोखा देने प्रयासरत है। अमेरिका के ही सीडीसी के द्वारा कोरोना के नए स्वरूप डेल्टा बाबत चिन्ता व्यक्त की गई है। यह बड़ी तेजी से बहुत से देशों में पहुंच चुका है और भारत भी इसमें शामिल है। भारत और इंग्लैण्ड में इसके अनेक केसेज सामने आ गए हैं। चिन्ता केवल यही तक सीमित नहीं है। अब डेल्टा का नया रूप डेल्टा प्लस आ गया है। हालाकि, अभी देश में इसके केस अधिक नहीं हैं। किन्तु, जितने भी हैं, वह बहुत भयानक हैं। ऐसी परिस्थिति में लोग और प्रशासन लापरवाह रहे और एहतियात जरूरी सावधानी नहीं रखी तो फिर जिलेवासियों को फिर जन-धन की भारी हानि का खामियाजा भुगतने तैयार रहना होगा। तीसरी लहर मेें इस नए वाइरस स्ट्रेन की भूमिका बड़ी जबर्दस्त होगी, चम्पक ने कहा।
स्वागत प्रिय नेता और स्वागतोत्सुकों ने प्रोटोकाल की धज्जियां उड़ाई
लेकिन, डीयर चम्पक नो डाउट- तुम्हारी बातों में दम है। लोगों को याने जनता को जिला व पुलिस प्रशासन अपना कानूनी शस्त्र का उपयोग कर नियंत्रित कर लेगी। जो व्यापारी या दुकानदार कोविड-19 के नियमों का उल्लंघन याने सोशल डिस्टेंस, मास्क व सेनेटाइजर का उपयोग नहीं करता है, उसे अर्थदण्ड भी मिलता है। लेकिन नौकरशाहों को तब भारी दुविधाओं का सामना करना पड़ता है जब जिनकी सरकार है, वे ही कांग्रेसी कोरोना महामारी फैलाने नियमों की धज्जियां उड़ाने में कोई संकोच नहीं करते। यहां कलेक्टर की पोजिशन भी आकवर्ड हो जाती है।
इतिहास में दर्ज है कि कोटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में लिखा था कि राजा का जो शील होता है, वही प्रजा याने जनता का होता है। राजा में यह गुण होना अति जरूरी हो जाता है कि वह भी जनहित व शासन हित में बनाए नियमों का पालन सख्ती से करें। क्योंकि, शासन व न्याय संबंधी पुलिस शासन संबंधी शक्तियां सरकार याने मालिक याने राजा के हाथों में होती है। अगर वह खुद ही नियमों के विरूद्ध कार्य करता पाया जाता है तो जनता में इसके विरूद्ध संदेश यह जाता है कि सरकार ही लोक कल्याण को बलाए ताक रखे हुवे है।
इसका जीता जागता उदाहरण यह कि शहर में जब नए प्रभारी मंत्री अमरजीत भगत पहली मर्तबे पधारे तब उनका स्वागत करने कांगे्रसियों का हुजूम उमड़ पड़ा था। ऐसे समय, कोरोना प्रोटोकाल का ख्याल न ही प्रभारी मंत्री ने रखा और न ही कांग्रेसियों ने। ऐसा ही काम जब विपक्ष में रहे भाजपाई करते हैं तो कांग्रेसी आपत्ति उठाते हुवे उन पर एफ.आई.आर. दर्ज करने की मांग करते हैं। सरकार में आसीन प्रभारी मंत्री भगत भी प्रतीत हुआ कि स्वागत प्रिय हैं। वे भी भूल गए कि कोरोना किसी से भेदभाव नहीं करता और वे स्वयं भी इसके चपेट में आ सकते हैं। भगवान ऐसा कुछ भी न करें। किन्तु, प्रशासन का भी इस ओर से मुंह फेरे रखना, उचित तो नहीं था। यहां प्रशासनिक दक्षता का तकाजा था कि प्रशासन सख्तीपूर्वक पेश आता और कोविड-19 के प्रोटोकाल का पालन करवाने सभी को बाध्य करता। आजादी के 70 सालों के बाद भी प्रशासनिक कार्यों में सुधार नहीं दिख रहा है, यह न केवल विडम्बना है बल्कि दुर्भाग्यजनक है। इस बात को शासन, प्रशासन व जनता को गंभीरता से लेना होगा कि बेकाबू भीड़ ही कोरोना महामारी को आमंत्रित कर रही है।
योग, योगासन के मायने बदले : प्रभारी मंत्री भी बदले
हाल ही अभी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस सम्पन्न हुआ। कहीं-कहीं आम आदमी भी योग आसान करते दिखाई दिए। हमारा देश स्वप्न प्रधान देश है। स्वप्न को जितनी प्रधानता, प्राथमिकता देते हैं, उतनी प्रधानता-प्राथमिकता स्वप्न के सरकारीकरण को नहीं देते। इसे लोगों की नहीं, अपितु स्वप्न की करूणाजनक स्थिति कहना चाहिए। लोकतंत्र में तो बहुत अस्वाभाविक भी स्वाभाविक बन जाता है। जिले के प्रभारी मंत्री मो. अकबर थे। उनके स्थान पर अमरजीत भगत बन गए। दोनों ही मंत्रियों की मेष राशि है। राशि में समानता है। अगर दिमाग लगाए तो प्रभारी मंत्री का बदलना का कारण यहा हो सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के विधानसभा क्षेत्र में मो. अकबर न आक्रमक थे और न ही आलोचक थे। मो. अकबर रमन सिंह की गृहनगरी कवर्धा विधानसभा के विधायक हैं। रमन सिंह न वहां कोई हस्तक्षेप करते हैं और न ही अकबर यहां कोई हस्तक्षेप करते थे। राजनैतिक नूरा कुश्ती के दर्शन यहां होते थे। अब सुबे के मुखिया भूपेश बघेल ने शायद भगत पर भरोसा करके उन्हें जिले का प्रभारी मंत्री बनाया है। इस निर्णय से नब्बे प्रतिशत कांग्रेसी खुश दिखाई दे रहे हैं।
अब वापस योग और योगासन की ओर चलते हैं। भगवद् गीताकार व्यास मुनी ने अठ्ठारह प्रकार के योग बताए हैं और भगवान पतंजलि ने आठ प्रकार के योगासन बताए हैं। किन्तु, हुआ यह कि उनके शिष्यों ने इसमें अनेक प्रकार के योग के आसनों को जोड़ दिया है। जिसमें पहला अध्याय अर्जुन विषाद योग है। अर्जुन स्वयं विषाद से ग्रसित थे। आज ऐसा नहीं है। आज का आम आदमी विषादयोग हैं। खास व्यक्ति बहुत सुखी और साधनसम्पन्न क्यों हैं? इस सवाल ने आम आदमी को विषाद में डाल दिया है। अर्जुन का विषादयोग केवल उसके तक सीमित था और आज के इंसान का विवाद योग अन्य के लिए है। इसका एक अर्थ यह भी होता है कि आज का आदमी बेहद परमार्थी हो गया है।
दूसरा अध्याय सांख्य योग को बताता है। इसमें स्थितप्रज्ञ याने कि स्थिर बुद्धि, जो पुरूषों के लक्षण हैं। आज सांख्य योग की परिभाषा बदल गई है। आज औसतन आदमी अस्थिर बुद्धिवाला है। वह ‘‘चाइनीज कमीटमेंट’’ करता है। याने कि जो कमिटमेंट करता है, उसे पूरा करने में रूचि नहीं लेता। आज के समय में ऐसे सांख्य योग की महिमा बढ़ी है।
तीसरा योग कर्मयोग है। कृष्णा ने अर्जुन से कहा था कि तू केवल कर्म कर, फल देनें वाला मैं तो बैठा हूं। फलस्वरूप, अर्जुन कर्मयोगी बन गए। वैसे, कर्मयोगियों की तो आज भी कोई नहीं है। अर्जुन ने अपना कर्म स्वयं किया। किन्तु, आज का कर्मयोगी अर्जुन जैसा स्वार्थी नहीं है। वह अपने हिस्से में आया कर्म, बगैर किसी हिचकिचाहट के अन्य लोगों के पास से करा लेता है। इस प्रकार वह कर्म का फल भी दूसरों को मिले, ऐसा सोचता है।
ऐसे तो अन्य योगों में ज्ञान कर्म सन्यास योग, कर्म सन्यास योग, आत्मसंयंम योग, ज्ञान विज्ञान योग, अक्षर ब्रह्म योग, राज विद्याराज गुह्ययोग, विश्वरूप दर्शन योग, भक्तियोग, क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग, गुणत्रविभाग योग, पुरूषोत्तम योग, मोक्ष सन्यास योग आदि हैं। किन्तु, वर्तमान समय के परिपे्रक्ष्य में सुदर्शन चक्रधारी के द्वारा बताए गए उक्त सभी योगों के भावार्थ बदल गए हैं।
वैसे ही, श्रद्धात्रय विभागयोग में भगवान श्री कृष्ण ने आहार, तप, यज्ञ और दान के अलग-अलग भेद कुरूक्षेत्र में बताए हैं। किन्तु, आज के कडु क्षेत्र के भगवानों ने अपना विराट रूप दर्शाकर अन्यों का सुख नहीं पचने से सत्य का आहार करके निष्ठा, वफादारी तथा प्रमाणिकता का दान करने छह प्रकार का अनुष्ठान शुरू किया है। मोक्ष सन्यास योग में 21 वीं सदी में जो व्यक्ति यह योग करेगा, वह सत्य का त्याग करके, झूठ की दीक्षा लेकर और सभ्यता से सन्यास लेने संयोग उत्पन्न करता है।
श्री कृष्ण ने तो अपनी विभुतियों और योगशक्ति का गान किया है। किन्तु वर्तमान में समाज के अनेक क्षेत्रों में कई नानाप्रकार की विभुतियों के पुनीत दर्शन आज हमको हो रहे हैं। आज की विभुतियां स्वयं ही अपनी कथा-गाया के साथ स्पर्धात्मक भूमिका में रहती हैं। बेशक आज के सत्ता इच्छुक, पद वांछित भक्त करते तो हैं सैकड़ों प्रश्न, किन्तु, आज के सूटबुटेड तथा खादीधारी भगवान उसके उत्तर भी देते हैं। किन्तु, ये सारे उत्तर ‘‘आफ द रिकार्ड’’ होते हैं।
किसी अनाम ने कहा है-
राजनीति एक शब्द,
जिससे मन में कभी जागता था श्रद्धाभाव,
अब हो गए हैं इसके मायने,
बड़ा कारोबार,
पार्टी के दफ्तर बन गए हैं बाजार,
सच, राजनीति बन कर रह गई है गंदा खेल।
बदलने होंगे हमें ये हालात,
बदलनी होगी राजनीति की बदरंग तस्वीर,
कहीं ऐसा न हो, हिमालय की यह गंगा
गंदगी के भंवरजाल में डूब जाए, समा जाए।
- दीपक बुद्धदेव