शहरवासी गंभीर था। उसे साहिर लुधियानवी की उन अमर पंक्तियों का ख्याल आया। एकाएक उसके ओठों को उन पंक्तियों ने छू लिया और वह गुनगुनाने लगा-
ये महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया,
ये इन्सां के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है-
बाबूलाल ने भी इसे सुना। उसे वो काजी याद आ गया। उसके दुबलेपन को लेकर अक्सर लोग कहा करते थे कि उसे तो दुनिया की सारी चिन्ताएं सताए रहती है, इसीलिए वह दुबला है। उसने आखिर शहरवासी से पूछ ही लिया-व्हाई आर यू सिरियस ? तभी शहरवासी ने उसे झिडक़ी दी। हिन्दी में बोल ना..। अभी-अभी ही ‘हिन्दी दिवस’ गया है। कम से कम, इसका तो ख्याल कर। तभी बाबूलाल बोला- सारी। शहरवासी- फिर अंग्रेजी बाबूलाल। बाबूलाल… सहम गया… बोला- अरे भाई माफ करना। अब बताओं- तुम इतने गंभीर क्यों हो?
शहरवासी- प्रत्येक क्षेत्रों में आयी गिरावट चरम सीमा पर पहुंच रही है। पहले राजनीति को ही देख लें। किस नेता ने कितने हजार का शर्ट पहिना है? किसने लाखों रूपयों का शूट पहिना था? अब पक्ष-विपक्ष में इस बात को लेकर झगड़ा हो रहा है। इन नेताओं के कटपीस जैसे मुद्दे की मुर्गी सदृश्य लड़ाई के बदले पीसफूल पालिटिक्स के लिए एक सर्वदलीय बैठक आयोजित होनी चाहिए। बैठक में यह प्रस्ताव सर्वानुमति से पारित होना चाहिए कि भले ही हम ऊपरी तौर पर एक दूसरे के विरोधी हैं। किन्तु, 75 सालों के अनुभव पर से पब्लिक का कहना है कि भीतर से सभी पक्ष-विपक्ष के नेता एक ही हैं और अब रिसोर्ट की राजनीति के बाद तो सभी एक-दूसरे से काफी घुलमिल गए हैं।
अगर ऐसा है तो शहरवासी सभी के लिए एक ही ‘यूनिफार्म’ तय कर लेना चाहिए, बाबूलाल ने कहा। तभी एक वयोवृद्ध नेता ने इसे सुनते ही कहां-हमारी गांधी टोपी कौन सी गलत थी? पास ही खड़े एक यंग नेता ने कहा- अंकल सभी ने गांधी टोपी को रिजेक्ट कर दिया है। बल्कि, एक-दूसरे को टोपी पहिनाने में मजा आ रहा है। एक सीनियर नेता ने खंखार कर कहा- बाकी, नेहरू जैकेट को दाद देनी पड़ेगी। घुम फिरकर यही फैशन वापस आ रही है, जो यह दर्शाती है कि नेहरू के सिवाय उद्धार नहीं है।
तभी पंचशील जैसा शांति समझौता ऐसा बिगड़ा कि दो चार नेता तो एक-दूसरे के कपड़े फाडऩे में भिड़ गए। उनको यह कहकर शांत किया गया कि, हम जो इस प्रकार लड़ेंगे तो कपड़े के चिथड़े हो जाएंगे और चिथड़ों का यूनिफार्म तय करना पड़ेगा, जिससे चड्डी-बनियान ही बन सकेगा। वैसे इस यूनिफार्म का परिणाम यह नजर आयेगा कि नेताओं और जनता में कोई फर्क नहीं रहेगा।
चुनाव निकट नहीं आता तब तक महंगाई बर्दाश्त करनी होगी
एक ओर शेयर मार्केट ऊंचे सतह पर से नीचे धड़ाम से गिर गया। दूसरी ओर, महंगाई छज्जे पर चढक़र मध्यम वर्ग को हैरान परेशान किए हुवे है। रिटेल मार्केट में रोजाना चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। दूसरी ओर, ई-कामर्स की साइटों पर त्यौहारों के सेल लग रहे हैं। पैसा मंद गति से आता है और राकेट गति से जा रहा है। कहा जा रहा है कि त्यौहारों के दिनों में पेट्रोल-डीजल सस्ता करके सरकार संवत् के नए साल में जनता को गिफ्ट देगी। लेकिन, यह सब कहने की बातें हैं। आज क्रूड की कीमतें कम हैं, इसके बावजुद लोगों को पेट्रोल -डीजल की बढ़ी कीमतें चुकानी पड़ती हैं। मोदी सरकार के सामने हर सुबह महंगाई का राक्षस मुंह फाड़े खड़ा हो जाता है। सरकार के समर्थक महंगाई के मुद्दे पर मौन हैं। महंगाई और बेरोजगारी की समस्या के कारण लोगों की नींद हराम हो गई है। कामन मैन का मासिक बजट गड़बड़ा गया है। किराने व खाद्यानों की कीमतों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। सागभाजी, दूध व दूध से बनी चीजें महंगी है। सरकार के पास गोदामों में अनाज भरा पड़ा है, इसके बावजुद, अनाजों की कीमतें बढ़ रही हैं।
बाय द वे, लाखों निराशा में अमर आशा छुपी हुई होती है। जैसे कि, बिहार में चुनाव था, तब आईल कम्पनियां दाम बढ़ाना ही भूल गई थी। अब जब फिर 2023 और 2024 में चुनाव है, तब पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़े हुवे नजर तो नहीं आयेंगे। संक्षिप्त में यह कि चुनाव निकट नहीं आता तब तक महंगाई बर्दाश्त करनी पड़ेगी। यूं तो राजनीति से लेकर मीडिया, साहित्य और कलाओं के क्षेत्रों में चारों ओर निराशा का माहौल है। इस निराशा को आशा में बदलना हो तो प्रबुद्ध नागरिकों को हर बाबतों में सरकार की ओर नजर रखने के बदले स्वतंत्र विचारधारा को विकसित करना पड़ेगा। देश में चारों ओर भ्रष्टाचार का साम्राज्य फैल गया। इसे दूर करना हो तो भ्रष्टाचार से दूर रहने का संकल्प करना होगा।
च्छता मिशन पर कमीशन हावी
स्वच्छता अभियान के मद्देनजर मुखिया भूपेश बघेल का फोन में रेकार्डिंग सुना। घर-घर, गांव-गांव, शहर-शहर साफ सफाई का संदेश देकर प्रत्येक वर्ग के लोगों को सीएम ने प्रोत्साहित किया। यूं भी झाडू अब सेलिब्रिटि से कम नहीं है। देश के दो राज्यों में ‘झाडू’ को लोगों ने पसंद किया और अपनी मोहर लगा दी। खैर, शहरी क्षेत्रों को कचरा मुक्त करने का कांग्रेस सरकार का लक्ष्य है। जिसमें शहरी क्षेत्रों में कचरे के निपटारे एवं रिसाइक्लिंग हेतु एसएलआरएम कार्यक्रम को मजबूत बनाया जाएगा। शायद, इसी परिप्रेक्ष्य में सूबे के मुखिया ने संदेश देना उचित समझा होगा।
नगरीय निकायों अंतर्गत नगर पालिक निगम का अनिवार्य कार्य नालियों, सडक़ों व गलियों का निर्माण करवाना भी है। नगर निगम में कांग्रेस की सरकार है किन्तु अभी तक न सडक़ों की मरम्मत हुई है और न ही बिगड़ी गलियों का उद्धार हुआ है। जिले में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान अंतर्गत केन्द्र व राज्य सरकार हर साल नगर निगम को करोड़ों रूपए आबंटित करती है। जिसमें शालेय, निजी शौचालयों, आर.एस.एस. आदि कार्यों में राशि खर्च कर शहर को स्वच्छ व सुन्दर बनाने का लक्ष्य निर्धारित होता है।
शहरवासी ने जब अपनी यह जानकारी अपने मित्रों से साझा की तब बाबूलाल ने कहा कि स्वच्छता मिशन में ‘कमीशन’ ने तो साफ-सफाई का बेड़ागर्क कर दिया है। प्राय: अनेक पार्षदों के पास इनडायरेक्टली सफाई का ठेका है और उसमें भारी घालमेल कर मोटी राशि उदरस्त कर ली जाती है। प्रदेश मुखिया को यहां पर ध्यान देकर सफाई व्यवस्था पर कड़ी निगरानी को प्राथमिकता देनी होगी। नहीं तो वही कहावत चरितार्थ होगी- ‘आगे पाठ, पीछे सपाट’।
पितृ पक्ष: महादेव में भी पितृदेव के लक्षण हैं
‘मातृ देवो भव’ ‘पितृ देवो भव’ और ‘आचार्य देवो भव’, यह उपनिषद के सूत्रों में मातृ चरण, पितृचरण और आचार्य चरण का महिमा गान है। पितृ पक्ष चल रहा है। ‘तस्यै स्वधार्ये नम:’ के मंत्र से दादा, परदादा, माता-पिता, दादा-दादी तथा परिवार जन में किसी भी संबंधों के नाम से जलाजंलि के द्वारा तर्पण करना संभव हो तो यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। महादेव श्री विष्णु का पूजन करना, पीपल में दीया प्रज्जवलित कर पितृओं की सद्गति करने में धर्म की जानकारी रखने वाले श्रद्धापूर्वक श्राद्ध कर रहे हैं। अपने बुजूर्गों के द्वारा बतायी गई परम्परा पर चल रहे हैं। पुराण कहते हैं भगवान महादेव में भी पितृदेव के लक्षण हैं।
पितृ पक्ष समाप्त होते ही इसके बाद, शक्ति की आराधना का नौ दिवसीय पर्व नवरात्र शुरू होगा। आद्य शक्ति की उपासना का यह समय होगा। शहर में कई स्थानों में ‘‘गरबा’’ गुजरात के लोक नृत्य की भी धुम रहेगी। नवरात्र का सामाजिक महत्व भी है।
साहिर लुधियानवी द्वारा
रचित गीत की चंद पंक्तियां-
वो सुबह कभी तो आयेगी,
इन काली सदियों के सर से,
जब रातकाआंचल ढलकेगा
जब दु:ख के बादल पिघलेंगे,
जब सुख का सागर छलकेगा
जब अम्बर झुम के नाचेगा,
जब धरती नग्में गायेगी
वो सुबह कभी तो आयेगी
- शहरवासी